नागार्जुन की कविताओं में व्यंग्य
पूनम सिंह
कबीर के उपरांत हर विध्वंसकारी और जन विरोधी शक्ति को सर्वाधिक खुली चुनौती देने वाले हिंदी के प्रगतिवादी कवियों में नागार्जुन का महत्वपूर्ण भूमिका है। वैद्यनाथ मिश्र इनका मूल नाम है। हिंदी साहित्य में नागार्जुन नाम से चमक रहें हैं। नागार्जुन के कथा साहित्य में उनकी विचारधारा विभिन्न रूपों में प्रति फलित हुई है। नागार्जुन जी के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव राहुल सांकृत्यायन एवं निराला जी का ही पड़ा है उन्होंने अपने काव्य में भारत की गरीबी, भूख, शोषण, अत्याचार, भ्रष्टाचार मुक्तखोरी आदि को आधार बनाकर सशक्त और मार्मिक अभिव्यक्ति दी है। उनका काव्य समाज में घट रही घटनाओं के सापेक्ष है। वे सच्चे अर्थों में युग चेतना एवं जनकवि के रूप में विख्यात थे। वे अपने समय की युगीन परिस्थितियों और समस्याओं से वाकिफ थे वे जनता के हिट में सर्वाधिक काव्य लिखते थे। बाबा नागार्जुन को हम साहित्य का वह स्तम्भ समझ सकते हैं जिन्होंने अपने समय मे साहित्य की हर विधा के पहलुओं को छुआ है। हिंदी के लोक प्रिय कवि डॉ कुमार विश्वास ने कहा है कि "बाबा नागार्जुन ने अनुरक्ति और विरक्ति , प्रेम और पीड़ा, श्रृंगारऔर विद्रोह, बाबा ने अपनी जीवन यात्रा में इन विपरीत ध्रुवों का सब कुछ जिया है।"
बाबा नागार्जुन ने स्वयं को हिंदी साहित्य के सबसे बड़े व्यंग्यकार के रूप में खुद को प्रतिष्ठित किया है। उन्होंने अपने विद्रोही तेवर और आक्रोश को दिखाने के लिए व्यंग्य को ही अकाट्य धारदार हथियार बनाया ।उनकी कविताओं में निराला जैसी सहजता, आक्रोश, व्यंग्य, अक्खड़ता, विद्रोह, हुंकार एवं ललकार है। शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने एवं जनता के प्रति सहानुभूति दिखाकर तथा अन्याय एवं अत्याचार के विरुद्ध कविता करने की क्षमता है। नागार्जुन के विषय मे डॉ नामवर सिंह जी ने 1982 ईस्वी में लिखा था कि" व्यंग्य की विदग्धता ने ही नागार्जुन की अनेक तत्कालिक कविताओं को कालजई बना दिया है। जिसके कारण वे कभी बासी नहीं हुई और अब भी तत्कालिक बनी हुई है -------- इसलिए यह निर्विवाद है की कबीर के बाद हिंदी कविता में नागार्जुन से बड़ा व्यंग्यकार अभी तक कोई नहीं हुआ। नागार्जुन की इतने व्यंग्यचित्र हैं कि उनका एक विशाल अलबम तैयार किया जा सकता है।"1।
नागार्जुन वस्तुनिष्ठ यथार्थवाद के कवि हैं। उनकी प्रकृति विषय कविताएं हो या राजनीतिक व्यंग्य पर उदबोधन सर्वत्र वे आंखों देखा चित्र मालूम पड़ती हैं। नागार्जुन की कविता जनसामान्य की सामान्य आंखों देखी कविता है। नागार्जुन का व्यंग्य निसंदेह तार्किक और पैना है पर केवल व्यंग्य से कार्य कारण संबंध समग्रता से उद्घाटित नहीं हो सकता है। व्यंग को एक नया रूप और विस्तृत आकार देने का काम नागार्जुन जी ने किया है। नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल को हिंदी के महान व्यंग्य परंपरा से जोड़ा गया है। डॉक्टर नामवर सिंह ने 1960 के दशक में लिखा है कि-" हिंदी कविता में व्यंग्य काव्य का जितना सुंदर विकास प्रगतिवाद में हुआ है ,उतना कहीं नहीं नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल के नुकीले व्यंग्य कितने प्रभावशाली हैं, इसे जनता के दुश्मनभी जानते हैं। हिंदी कविता में व्यंग्य निराला ने लिखे या फिर नागार्जुन या केदार ने ।2।"
व्यंग्य नागार्जुन के काव्य और उनके असली व्यक्तित्व की पहचान है। तत्पश्चात नागार्जुन ने व्यंग्य विधा को कबीर, भारतेंदु, निराला के बाद एक नई पहचान दी है। इसलिए नागार्जुन के विषय में डॉक्टर नचिकेता जी लिखते हैं कि "व्यंग्य विदग्धता नागार्जुन की कविता की असली जमीन है ।कबीर के बाद नागार्जुन ही हिंदी कविता के सबसे बड़े व्यंग्यकार हैं।"3। नागार्जुन ने तत्कालीन समस्याओं पर करारा व्यंग्य किया है।उनकी कलम केवल समस्या का चित्रण ही नहीं करती थी बल्कि उस समस्याओं को कुदरती भी है ।लोग जितना समझते हैं नागार्जुन का साहित्य उससे कहीं अधिक महान और विशाल है।जितनी व्यंग्य रचनायें नागार्जुन ने हिंदी साहित्य को दी हैं उतनी शायद ही किसी अन्य रचनाकार ने दी हो। नागार्जुन की व्यंग्य मार से कोई भी वर्ग नहीं बच सका है, चाहे वह भ्रष्ट नौकरशाही, स्वार्थी राजनेता, अफसर, सूदखोर, कामचोर, अधिकारी, भिखारी, सत्ता परस्त नेता, फैशन और विलासिता में डूबी औरतें आदि पर उनका करारा व्यंग्य सभी को नंगा करता है। नागार्जुन के व्यंग्य का सबसे प्रखर रूप उनकी राजनीतिक कविताओं में अधिक निखर कर आई। भ्रष्ट नेताओं के कारण भ्रष्टाचार देश के हर क्षेत्र में प्राप्त हो चुका है। गांधी जी की मृत्यु के बाद आज नेताओं के बीच सत्ता की भूख और धन लोलुप्ता के कारण राजनीतिक पतन हुआ है बड़े-बड़े उद्योगपति और धन्ना सेठ दोनों हाथों अपना घर भरने में लगे थे। 'रामराज' की कविता में नागार्जुन ने रामराज्य की कल्पना के विरुद्ध फैले भ्रष्टाचार के लिए 'रावण' को प्रतीक के रूप में चुनकर उस पर व्यंग्य किया--
रामराज में अबकी रावण नँगा होकर नाचा है,
सूरत शक्ल वही है भैया, बदला केवल बदला ढांचा है।
नेताओं की नीयत बदली फिर तो अपने ही हाथों,
भारत माता के गालों पर कसकर लगा तमाचा है।4।।
नागर्जुन जी भ्रष्ट लोगों पर अपना विषरूपी व्यंग्य बाण छोड़ने में पीछे नहीं हटते हैं । वे जनता के सच्चे हितैषी हैं।नागार्जुन सत्ता व्यवस्था एवं पूंजीवाद के प्रति आक्रोश व्यक्त करने में निरंतर अग्रणी रहे हैं ।उनकी कविता में राष्ट्र प्रेम और आजादी के बाद के भारत की यथार्थ चित्र व्यंग रूप में किए हैं ।झूमे बाली धान की नामक कविता में नागार्जुन ने व्यंग्य किया है।
देश हमारा भूखा नँगा, घायल से बेकारी है
मिले न रोजी रोटी भटके, दर दर बने भिखारी से।5।
इसीलिए डॉक्टर बरसाने लाल चतुर्वेदी ने लिखा है कि "नागार्जुन एक सफल एवं सिद्धहस्त व्यंग्यकार हैं ।इनकी कविताएं आग के गोले हैं, वे दाहक और दंशक हैं कवि ने राजनीति पर भी सतर्क दृष्टि रखी है और निर्भीक होकर उस पर लेखनी चलाई है।"6 स्वतंत्रता पूर्व भारतीय प्रजा ने जो सुनहरे सपने देखे थे स्वतंत्रता के पश्चात कुछ ही समय मे टूटकर बिखरने लगे।जो समस्याएं पहले थीं, वे अब और भी विषम बन गयी थीं।नागार्जुन ने अपने काव्य में यथार्थ का चित्रण पूरी नग्नता एवम सच्चाई के साथ किया था।उन्होंने जो भी लिखा यथार्थ को लिखा कुछ भी छिपाने का प्रयास नहीं किया।इसी कारण नागार्जुन जी हिंदुस्तान की साधारण जनता में अपना स्थान बना लिए। नागार्जुन ने कविता में व्यंग्य की जो धार पैदा की,वैसा शायद ही कोई कवि कर पाया हो। वह व्यंग्य व्यवस्था की विद्रूपताओं औरउसके प्रति आक्रोश से उतपन्न होता है। नागार्जुन ने समाज मे निरन्तर चले आ रहे महाजनी सभ्यता के ठेकेदारों, पूंजीपतियों, अफसर और नए नए आये उद्योपतियों पर भी तीक्ष्ण व्यंग्य किया है।
नागार्जुन ने मोरारजी, जवाहरलाल, सुभाष, विनोबा, राजगोपालाचारी, जय प्रकाश नारायण, गांधी जी, चौधरी चरण सिंह, संजय, राजीव गांधी से लेकर इंदिरा गांधी तक पर क्षोभपूर्ण व्यंग्यात्मक कविताएं लिखीं।नागार्जुन के व्यंग्य का शिकार सर्वाधिक इंदिरा गांधी जी हुई हैं।नागार्जुन ने उन्हें कभी जगत तारिणी, कभी दुर्गा औरकाली तो कभी बाघिनी कहकर व्यंग्य किया है। नागार्जुन ने जयप्रकाश नारायण जी के साथ मिलकर देश पर इंदिरा गांधी द्वारा थोपी गयी इमरजेंसी का भी विरोध किया था।इंदिरा गांधी द्वारा अपने महत्वाकांक्षाओं के आगे अपने पिता के सुकर्मों पर पानी फेर जाने पर नागार्जुन ने एक क्षोभपूर्ण व्यंग्यात्मक कविता लिखी थी- इंदु जी, इंदु जी, क्या हुआ आपको, सत्ता के मद में भूल गयीं बाप को।
बेटे को तार दिया बोर दिया बाप को, छात्रों के लहू का चस्का लगा आपको।7।
आपातकाल से पहले भारत देश में असहिष्णुता का जो माहौल पैदा हो रहा था। राजनीतिक एकाधिकार वाद और भ्रष्टाचार जो बढ़ रहा था, उसपर नागार्जुन ने कविता के माध्यम से नुकीले व्यंग्य किए थे। 1972 ईस्वी में जब पश्चिम बंगाल में सत्ता दल ने गुंडागर्दी के बल पर चुनाव जीते तो नागार्जुन एक व्यंग्यपूर्ण हुंकार भरी कविता लिखी 'अब तो बंद करो हे देवी यह चुनाव का प्रहसन।' नागार्जुन जी ने स्वतंत्र भारत की सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों को अच्छे ढंग से अध्ययन किया, और उसे व्यंग कविता का विषय बनाया। हमारी वर्तमान राजनीति अत्यंत भ्रष्ट हो चुकी है। स्वतंत्रता का वरदान केवल उन लोगों को ही मिला है जो नेताओं की चमचागिरी करते हैं। आजादी के बाद भी हमारे भारतीय शासक अंग्रेज शासकों से जुड़े हुए थे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा अन्य भ्रष्ट पूंजीवादी नेता ब्रिटेन की राजसत्ता और रानी एलिजाबेथ के हाथों की कठपुतली बने हुए थे। एलिजाबेथ के स्वागत में भारतीय शासकों की नीति पर नागार्जुन ने 'आओ रानी ' कविता में व्यंग्य लिखा है-
आओ रानी, हम ढोये पालकी। यही हुई है राय जवाहरलाल की।
आओ शाही बैंड बजाएं, आओ बन्दरवार सजाएँ।8।
भ्रष्ट नेताओं के कारण आज देश के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार बढ़ गया है।कामनवेल्थ को असफल होते देख उन्होंने कामनवेल्थी दुनिया क्या है? बूचड़का बाजार है कह कर व्यंग्य किया था जो कि अशोक की तीलियों में है' भारतेंदु 'नामक कविता में उन्होंने लिखा है कामनवेलथी महाभंवर में फंसी बेचारी। बिलख रही है भारत माता प्यारी ।9।
स्वतंत्र भारत, क्षुधा, अशिक्षा, अज्ञानता, रोग,रूढ़ि,अंधविश्वास से ग्रस्त है। आज भी भारत की अधिकांश जनता भूख और गरीबी से मर रही है।नेता, मंत्री मौज कर रहें हैं।भ्रष्ट नेता , नौकरशाह, चाटूकारिता, चुगलखोरी, गद्दारी करने में व्यस्त हैं।सत्ता मिल जाने पर नेता लोग जनता को भूल जाते हैं। इन ढोंगी नेताओं पर नागार्जुन जी ने 'अच्छा किया, उठ गए दुष्ट 'नामक कविता में लिखा है कि- तृप्ति और सुख की वैयक्तिक डोंगियो में बैठे।
इत्मीनान का आनन्द भोग रहें हैं मुट्ठी भर लोग।10।
कवि नागार्जुन ने युगीनयथार्थ एवं समसामयिक परिस्थितियों का वर्णन किया। भ्रष्ट नेता अपनी सत्ता, लालसा, स्वार्थ परता, दोगलापन, छल, कपट, भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी, बलात्कार में मस्त है। नागार्जुन ने अपने काव्य में यथार्थ का चित्रण पूरी नग्नता के साथ किया। नेता केवल 5 साल में जनता के पास एक ही बार वोट मांगने जाते हैं, उसके बाद पता नहीं चलता।भूकंप, बाढ़ जैसी आपदा आने पर सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए नेताओं का जमावड़ा लगता है ,जो कि आज का बिल्कुल सत्य है, नेता केवल वोट बैंक की राजनीति करते हैं, इस पर नागार्जुन ने 'बाढ़: 67 पटना' कविता लिख कर व्यंग्य किया है-
तमाशा है चुनाव इनके लिए, परम् सुशोभन चलती है।
हुकूमत आफसर की तीस पैंतीस साल
रहेंगे मिनिस्टर पांच वर्ष रामलाल श्यामलाल
इसलिये आहुति तरह मंत्री खाते हैं शक्कर।11।
नागार्जुन सच्चे अर्थों में भारत के सबसे बड़े व्यंग्य कवि थे ।जिन्होंने अपने समय की वर्तमान राजनीति पर करारा व्यंग्य किए थे। वास्तव में वे एक निर्भीक कवि थे वह मैदान में बेबाकी से डटे रहे कभी हार नहीं मानें। जनता के सामने भ्रष्ट नेताओं को बेनकाब करते रहे।राजनीति, समाज, धर्म, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, झूठीआजादी, शिक्षा, साहित्य ,जातिवादिता आदि पर भी व्यंग्य किये हैं। नागार्जुन की कविताओं में स्वतंत्र भारत का पूरा समाज उभरकर सामने आता है। नागार्जुन ने जिन्दगी को अपनी आंखों से कबीर की तरह देखा एवम परखा है। अपने स्वतंत्र भारत की कुरीतियों, अन्धविश्वासों, पाखण्डों, भ्रष्टाचार, वर्ग वैषम्य आदि का अच्छी तरह अनुभव कियाऔर उसे अपनी काव्य विषय का कथ्य बनाया। 'प्रेत का बयान'कविता में कवि ने व्यंग्य रूप से स्वाधीन भारत केप्राइमरी स्कूल के भुखमरे शिक्षक के मृत्यु की ओर समाज का ध्यान आकर्षित किये हैं। हमारे देश मे भुखमरी एक साधारण सी बात बन गयी है।जिसका चित्रण नागार्जुन जी ने किया है--
"ओ रे प्रेत
कड़ककर बोले नरक के मालिक यमराज
सच -सच बतलाना कैसे मरा तू? भूख से अकाल से
बुखार, कालाजार से ।12।
आज हमारी वर्तमान शिक्षा इतनी भ्रष्ट हो चुकी है, कि विश्वविद्यालयों, कालेजों में केवल राजनीति, बमबाजी, रैगिंग हो रही है। शिक्षा का स्तर गिर चुका है।ज्ञान रूपी दान आज एक सौदा बनकर रह गया है। आज विद्यार्थियों का लक्ष्य पढ़ने के अतिरिक्त कुछ और हो गया है। स्कूलों में अनुशासन लंगड़ाता हुआ बिललाता है।विश्वविद्यालयों के सीनेट हाल और सिंडिकेट भीआज वांछित मूल्य नहीं रखते हैं। इस पर नागार्जुन जी ने भारतेंदु'नामक कविता में व्यंग्य किया है
-अंडा देती हैं सीनेट की छत पर चींटी
ढूह ईंट -पत्थर की, कह लो यूनिवर्सिटी
तिमिर-तोम से जूझ रहा मानव का पौधा
ज्ञान दान भी आज बन गया है कोरी सौदा।13।
नागार्जुन का साहित्य सिर्फ हिंदी ही नहीं विश्व साहित्य का थाती है।ऐसे साहित्यकार युगों में पैदा होते हैं।नागार्जुन का रचना संसार अत्यंत ही विशाल है। नागार्जुन हिंदी कविता में एक व्यंग्यकार के रूप में जाने जाते हैं।सामाजिक व्यंग्य की जो परंपरा भारतेंदु, निराला बाद अवरुद्ध हुई थी। उसे नागार्जुन ने आगे बढ़ाया। नागार्जुन ने अनेक व्यंग्य कविताएं लिखी-- लाल भवानी, 26 जनवरी, 15अगस्त, बाघिन शासन की बंदूक, सत्य, मंत्र, तीनों बंदर बापू के, राम राज्य,पौने दातों वाली, खटमल, मास्टर प्रेत का बयान, वेऔर तुम, अमलेन्दु एम.एल.के., चीजों की चली बारात, भारतेंदु भूस का पुतला,ओ जन मन के सजग चितेरे, पंडित जी जानेवाले हैं रानी के दरबार में ,आओ रानी आदि राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, आर्थिक व्यंग्य कविताएं लिखी हैं। नागार्जुन की दृष्टि इतनी तेज है कि भारतीय राजनीति की शायद कोई ऐसी विसंगतियों की जो उनके तीक्ष्ण व्यंग्य से बच पाया हो ।डॉ रणजीत -में नागार्जुन के बारे में बिल्कुल सही लिखा है -"एक व्यंग्यकार के रूप में नागार्जुन हिंदी के प्रगतिशील कवियों में ही नहीं ,पूरी आधुनिक हिंदी कविता में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। हिंदी के अनेक समालोचकों ने उनकी व्यंग्य कुशलता की प्रशंसा की है।14।प्रखर व्यंग्य कुशलता के कारण ही नागार्जुन हिंदी के आधुनिक कबीर माने जाते हैं।
संदर्भ ग्रन्थ;
1 प्रतिनिधि कविताएं: नागार्जुन सम्पादक डॉ नामवर सिंह (भूमिका) पृ9
2 आधुनिक साहित्य की प्रवृतियां डॉ नामवर सिंह पृ 97
3 जनकवि के मुखर वैतालिक, नचिकेता, अलाव,नागार्जुन जन्मशती विशेषांक जन.फर.2011सं.रामकुमार कृषक पृ105
4 रामराज कविता, नागार्जुन रचनावली भाग 2 सं शोभाकांत पृ 30
5 झूमे बाली धान की नागार्जुन रचनावली भाग 2 पृ 26 सं. शोभाकान्त
6 नागार्जुन काव्य में व्यंग्यबोध, रमाकांत शर्मा, अलाव,नागार्जुन जन्मशती विशेषांक जन.फर.2011सं. रामकुमार कृषक पृ90
7 इंदु जी क्या हुआ आपको(1974 खिचड़ी विप्लव हमने देखा)
8 आओ रानी , नागार्जुन रचना संचयन सं. राजेश जोशी पृ 150
9 भारतेंदु कविता ,, पृ 69
10 अच्छा किया उठ गए हो दुष्ट,, पृ 80
11 बाढ़ 67 पटना कविता,, ,, पृ 124
12 प्रेत का बयान ,, ,, पृ 158
13 भारतेंदु कविता ,, ,, पृ 68
14 हिंदी के प्रगतिशील कवि -डॉ रणजीत पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस दिल्ली 1973
पूनम सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी विभाग, हिन्दू कन्या महाविद्यालय,
सीतापुर (उत्तर प्रदेश)
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