पारिवारिक और सामाजिक जीवन पर सांप्रदायिकता का प्रभाव और हिंदी कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Effect of communalism on family and social life and Hindi story

Effect of communalism on family and social life and Hindi story

पारिवारिक और सामाजिक जीवन पर सांप्रदायिकता का प्रभाव और हिंदी कहानी

अरस्तु महाशय की एक उक्ति है कि “मानव एक सामाजिक प्राणी है”। सामाजिक प्राणी होने के कारण उसे समाज में फैले रीति-रिवाज, आचार-विचार, संस्कृति व सभ्यता आदि से प्रेरित एवं प्रभावित होने पड़ता है जबी मानव सामाजिक प्राणी कहलाता है।

  समाज से तात्पर्य:- समाज का अर्थ विकिपीडिया में इस तरह दिया गया है की “समाज एक से अधिक लोगों के समुदाय को कहते है जिसमें सभी व्यक्ति मानवीय क्रिया कलाप करते है। मानवीय क्रिया कलाप में आचरण, सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि कि क्रियाएं सम्मानित है।“ यह परिभाषा से स्पष्ट होता है की मानव समाज में रहना होगा और सामाजिक सुरक्षा की बात हमें इस परिभाषा से पता चलता है।

  सांप्रदायिकता से तात्पर्य:- सांप्रदायिकता परिभाषा विकिपीडिया में “किसी विशेष प्रकार की संस्कृति और धर्म को दूसरों पर आरोपित करने की भावना या धर्म अथवा संस्कृति के आधार पर पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने की क्रिया साम्प्रदायिकता है।“ साम्प्रदायिकता समाज में वैमनस्य उत्पन्न करती है और एकता को नष्ट करती है। साम्प्रदायिकता के कारण समाज को दंगे और विभाजन जैसे कुपरिणामों को भुगतना पड़ता है। साम्प्रदायिकता सामाजिक सद्भावना के लिए घातक है।

 समाज और साम्प्रदायिकता:- अरस्तु के अनुसार मानव सामाजिक प्राणी है, समाज में होने के कारण उसे समाज में फैले रीति रिवाजों, आचार-विचार, संस्कृति व सभ्यता आदि से प्रभावित होना पड़ता है, साम्प्रदायिकता के तात्पर्य में धर्म अथवा संस्कृति के आधार पर पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने की क्रिया साम्प्रदायिकता है। इससे स्पष्ट होता है कि समाज पर साम्प्रदायिकता का प्रभाव किस तरह गहरा असर दिखाता है।

  राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि जहाँ एक ओर मानव और समाज में अलगाववादी प्रवृत्तियों का भयंकर रूप से विकास हुआ है वही धार्मिक कट्टरता भी बढ़ी है। ज्ञान विज्ञान के उन्नत स्तर पर पहुँचकर मानव में संकीर्णता तथा भोगवादी प्रवृत्ति और दृष्टि व्यापक होती रही है, परिणाम स्वरूप जो भारतीय समाज में धर्म, भाषा, जाति, वर्ण और क्षेत्रीयता इत्यादि के आधार पर समाज कई हिस्सों में बाँटा हुआ था, वह खाई बढ़ती जा रही है। अलगाववादी प्रवृत्ति के चलते हमने देश को, समाज और परिवार तक को टुकडों-टुकडों में विभाजित एवं खण्डित कर संतोष की साँस नही ली है। अपितु संकीर्ण मानसिकता और कट्टर धार्मिकता के कारण देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंक कर मानवता को लज्जित किया है। साम्प्रदायिकता वास्तविक रूप में मानव जाति के लिए किसी कलंक से कम नही है। साम्प्रदायिकता का जहर कभी उतरता नही है। साम्प्रदायिकता विषय के व्यापक अध्ययन और गहन विश्लेषण द्वारा ही देश, समाज और मानव जीवन को त्रासदी से मुक्ति किया जा सकता है।

   सांप्रदायिकता और हिंदी कहानी:- कहानीकारों ने समय के प्रति संवेदनशीलता दिखाकर साम्प्रदायिकता से जुड़े कई महत्वपूर्ण कहानियाँ लिखी है। साम्प्रदायिकता का विश्लेषण करनेवाली कहानियों के रूप में हमने मोहन राकेश की ‘मलबे का मालिक’, भीष्म साहनी की ‘अमृतसर आ गया’, प्रदीप पन्त की ‘रामपुर-रहीमपुर’, चतुरसेन शास्त्री की ‘रजील’, कृष्ण सोबति की ‘सिक्का बदल गया’, नमिता सिंह की ‘राजा का चौक’, विष्णु प्रभाकर की ‘मेरा वतन’, ‘मैं जिन्दा हुँ’, उपेन्द्रनाथ अश्क की ‘चारा काटनेवाली मशीन’, ‘टेबल लैंड’, अमृतराय की ‘व्यथा का सरगम’, ‘कीचड़’, महीप सिंह की ‘पानी और पुल’, रांघेय राघव की ‘तबेले का धुंधलका’, अज्ञेय की ‘शरणादाता’, बदी उज्जमाँ की ‘अन्तिम इच्छा’, आदि जैसे साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ उल्लेखनीय है।

   उपसंहार:- संकीर्ण मानसिकता और कट्टर धार्मिकता के कारण देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंक कर मानवता को लज्जित किया है। साम्प्रदायिकता मानवता के नाम पर कलंक है। साम्प्रदायिकता का भयंकर रूप इन कहानियों से समझकर आम आदमी उन स्थितियों को दूर करने का प्रयास करना है।

डॉ. मुल्ला आदम अली

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