Ashok Srivastav Kumud Ghazal
धड़कनों के लफ्ज़ बदले जिस्म भी बेदम रहा
धड़कनों के लफ्ज़ बदले जिस्म भी बेदम रहा।
राह में छूटे मुसाफिर मंजिलों पे गम रहा।
ढूंढता अब जिस्म कंधे चाव ना आगोश का,
लालसा दीदार फिर क्यों साँस भी जब थम रहा।
कुछ न आया साथ तेरे कुछ नहीं ले जायगा,
भ्रम भरी दुनिया भ्रमित सब खो गया क्यों भ्रम रहा।
राह मिलती सब उसी से है वही पथ अंत हर,
भुल भुलैय्या में फँसा क्यों भोग लिप्सा रम रहा।
चित्र बनते फिर बिगड़ते नित नये अंदाज में,
रोज बदले दृश्य दुनिया नैन क्यों हो नम रहा।
जो मिला प्रभु राह चलते वो मुकद्दर "कुमुद" का,
ना शिकायत जिंदगी से ना समझता कम रहा।
अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
राजरूपपुर, प्रयागराज
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