Premchand Birth Anniversary Special 2025 : प्रेमचंद जयंती के बहाने - प्रदीप जैन

Dr. Mulla Adam Ali
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भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता परिसर में स्थापित प्रेमचंद की मूर्ति। चित्र सौजन्य Ravi Shankar Sharma
Munshi Premchand Jayanti Special

प्रेमचंद जयंती के बहाने

डॉ. प्रदीप जैन

31 जुलाई हर साल आती है और विश्वविद्यालय स्तर के स्वयंसिद्ध विद्वान् प्रोफेसर वर्ग के महानुभाव अपने अपने विशिष्ट अन्दाज में प्रेमचंद को स्मरण करते हैं। लेकिन यह स्मरण स्थायी नहीं होता, मात्र एक दिन का और अधिकांशत: केवल गोष्ठी या सेमिनार की अवधि तक ही सिमट कर तिरोहित हो जाता है, पूरे एक साल के लिये! 

ऐसे में प्रश्न उभरता है कि प्रेमचंद को आखिर याद कैसे करना चाहिए। प्रेमचंद को केवल उनकी रचनाओं के माध्यम से ही याद करना, या प्रेमचंद जयन्ती पर किसी आधुनिक कथाकार की कहानी में प्रेमचंद का चित्र खोजना मनोविलास से अधिक कुछ नहीं। हाँ, प्रेमचंद को याद करना है तो अन्याय, अत्याचार, शोषण और उत्पीड़न की निर्मम चक्की में पिसते हुए उनके पात्रों को याद कीजिए। जी हाँ, याद कीजिए शोषण करने वाले उन बेरहम हाथों को जिनकी गर्दन के ऊपर टँगे क्रूर चेहरे आज तक नहीं बदल पाए। याद कीजिए कोर्स में लगी प्रेमचंद की उन कालजयी रचनाओं को जिनके क्रान्तिकारी विचारों से भयभीत स्वतन्त्र भारत के महान् विचारक उनको गाहे बगाहे कोर्स से बाहर कर देने के दुष्चक्र रचते रहते हैं। याद कीजिए प्रेमचंद की उन अनेक रचनाओं को जो आज भी हिन्दी उर्दू पत्र पत्रिकाओं के धूल अटे बोसीदा पृष्ठों में कैद पड़ी अपने दुर्भाग्य पर अरण्य रोदन करती हुई रिहाई की प्रतीक्षा करने पर विवश हैं। याद कीजिए प्रेमचंद के जीवन के उन गुमनाम पृष्ठों को जो न जाने किस किस अभिलेखागार में अभिशप्त जीवन व्यतीत करने पर मजबूर कर दिए गए हैं। याद कीजिए प्रेमचंद साहित्य और जीवन के उन उपाधि निरपेक्ष शोधकर्ताओं को जिनके समस्त महत्त्वपूर्ण शोध को समझते हुए भी प्रेमचंद के कुछ व्यापारी अखण्ड मौन धारण कर लेते हैं। 

प्रेमचंद जयन्ती पर यह जानना भी कम रोचक नहीं कि प्रेमचंद सरीखे हिन्दी-उर्दू के द्विभाषी लेखक के विशेषज्ञ होने का दावा करने वाले हमारे सबसे बड़े माहिरे प्रेमचंद हिन्दी-उर्दू में से केवल एक भाषा ही लिखने-पढ़ने में सक्षम हैं। यह प्रेमचंद के जीवन और साहित्य के साथ एक खूबसूरत मजाक ही तो है! 

आइये, इस बार कुछ अलग हट कर सोचने और संकल्प लेने का साहस करें ताकि सम्पूर्ण विश्व में भारतीय साहित्य का पर्याय स्वीकार किए जाने वाले मुंशी प्रेमचंद पर कुछ सकारात्मक, सार्थक और ठोस कार्य किया जा सके।

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डॉ. प्रदीप जैन
प्रेमचंद के रचनाओं पर हिंदी और उर्दू में अध्ययन करने वाले केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वरिष्ठ फेलोशिप, उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा 'प्रेमचंद एवार्ड', अनेक साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थानों द्वारा सम्मान।

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