Munshi Premchand : साहित्य सम्राट : प्रेमचंद
साहित्य क्षेत्र में प्रेमचंद का नाम अत्यंत प्रसिद्ध हैं। मुंशी प्रेमचंद जमीन से जुड़े एक सच्चे इंसान थे और उस से भी अच्छे संवेदनशील महान साहित्यकार थे। प्रेमचंद एक सर्वश्रेष्ठ कहानीकार थे। ये उपन्यास सम्राट भी कहे जाते है। इन्होंने अपने कलम से कभी फायदा नहीं उठाया, मुंशी प्रेमचंद कलम के सिपाही भी थे और कलम के मजदूर भी। उन्होंने अपने समय की परिस्थितियों में जो देखा और भोगा, उसे ही अपने कलम से उतारा है।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय:
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के वाराणसी शहर के निकट लमही गाँव में हुआ था। पिता का नाम अजायबराय था जो लमही गाँव में ही डाकघर के मुंशी थे। छोटी उम्र में ही उनकी माता का देहांत हो जाने के पश्चात विमाता के व्यवहार से उनके बचपन की कोमलता शीघ्र ही समाप्त हो गयी। सोलह वर्ष की आयु में पिता का स्वर्गवास होने से सहज ही सौतेली माँ के स्नेह व प्यार से वंचित प्रेमचंद ने परिवार का भारण-पोषण, अर्थभाव, पीड़ा आदि समस्याओं को देख लिया था। मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था लेकिन इन्हें मुंशी प्रेमचंद और नवाबराय के नाम से ज्यादा जाना जाता है। मुंशी प्रेमचंद ने लगभग 300 कहानियाँ, 12 उपन्यास, 4 नाटक, 2 निबंध लिखा है तथा चार पत्रिकाओं का सम्पादन किया।
प्रेमचंद के उपन्यास:
हिन्दी उपन्यास साहित्य को प्रेमचंद की देन अनेक मुखी है। प्रथमतः उन्होंने हिन्दी कथा साहित्य को ‘मनोरंजन’ स्तर से उठाकर जीवन के सार्थक रुप में जोड़ने का काम किया। चारों ओर फैले हुए जीवन और अनेक सामयिक समस्याओं, पराधीनता, जमींदारों, पूंजीपतियों और सरकारी कर्मचारियों द्वारा किसानों का शोषण, निर्धनता, अशिक्षा, अंधविश्वास, दहेज की कुप्रथा, घर और समाज में नारी की स्तिथि, वेश्या ओं की जिंदगी, विधवा समस्या, साम्प्रदायिक वैमनस्य, अस्पृश्यता, मध्यवर्ग की कुंठाएं आदि ने उन्हें उपन्यास लेखन के प्रेरित किया था। उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद का योगदान अद्वितीय है। वे अपनी महान प्रतिभा के कारण युग प्रवर्तक के रूप में जाने जाते है।
प्रेमचंद के उपन्यास:- सेवासदन (1918), प्रेमाश्रय (1922), रंगभूमि (1925), निर्मला (1927), कायाकल्प (1926), गबन (1931), कर्मभूमि (1933), गोदान (1935), मंगलसूत्र (अपूर्ण) आदि।
‘गोदान’ भारतीय किसान के जीवन संघर्ष की दुःखभरी गाथा है। इसकी कहानी का केन्द्रबिन्दु किसान है। गोदान का ‘होरी’ भारतीय किसान का प्रतिनिधि है। इसमें लेखक की सम्पूर्ण चेतना की अभिव्यक्ति हुई और उसने प्रौढ़तम अनुभवों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयत्न किया है। गोदान हिंदी साहित्य की एक युग-प्रवर्तनकारी रचना है। गोदान के युग के नारी यह मानने को तैयार नहीं की संसार में स्त्रियों का क्षेत्र पुरुषों से बिलकुल भिन्न है। गोदान की ‘सरोज’ नारी-स्वतंत्रता आंदोलन का पक्ष लेती है और कहती है युवतियां अब विवाह को पेशा नहीं बनाना चाहती। वह अब केवल प्रेम के आधार पर विवाह करेंगी। यह सरोज जागरित चेतनशील नारियों का प्रतीक है।
‘सेवासदन’- यह स्त्री की दीन समस्या को लेकर लिखा गया सामाजिक उपन्यास है। जिसमें वेश्या समस्या पर प्रमुख रूप से प्रकाश डाला गया है।
‘प्रेमाश्रय’- हिंदी का पहला राजनीतिक उपन्यास है। इसमें प्रेमचंद किसान आंदोलन से जुड़जाते है।
गबन- मध्यवर्ग के जीवन से संबंधित और नारी के आभूषण प्रेम की समस्या पर आधारित है।
प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास को एक नई यथार्थवादी दृष्टि प्रदान की थी, अपने उपन्यासों में वस्तु चित्रण, कथोपकथन एवं सरल तथा प्रौढ़ भाषा-शैली के कारण प्रेमचंद ‘उपन्यास सम्राट‘ कहलाते है।
प्रेमचंद की अमर कहानियाँ:
प्रेमचंद कहानी-लेखन कला के अग्रदूत थे। उनकी ‘मानसरोवर’ के 8 भागों में निहित कई कहानियाँ साहित्य की अमर निधि हैं।
बेटों वाली विधवा, अन्तिम शान्ति, स्वामिनी, ठाकुर का कुआँ, बड़े घर की बेटी, जीवन का शाप, दो बहनें, गृह-दाह, सती आदि नारी जीवन पर आधारित प्रमुख कहानियाँ हैं। यथार्थ जीवन की कलात्मक रचना का प्रथम प्रयास उनकी ‘बड़े घर की बेटी’ में मिलता है।
‘ठाकुर का कुआँ’ कहानी में एक दलित स्त्री द्वारा अपने बीमार पति के लिए ठाकुर के कुएँ से पानी लेने का असफल प्रयास इस घटना के माध्यम से दलित और निम्न वर्गीय लोगों के प्रवंचना से पूर्ण त्रासद जीवन का हृदयस्पर्शी अंकन किया गया है।
‘कफन’ प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानी है। कफन केवल घीसू और माधव की कहानी नहीं है प्रत्युत यह बुधिया के जीवन की करुण गाथा है।
‘घासवाली' दलित जीवन संदर्भों को एक नवीन दृष्टिकोण से देखने और उभारने वाली कहानी है। यह कहानी दलित जाति की एक घासवाली के चरित्र को समूची ऊर्जा तथा उन्मेष के साथ उद्घाटित करती है।
‘बेटों वाली विधवा' स्त्री-केंद्रित कहानी है, जिसमें लेखक ने भारतीय संयुक्त परिवार की विसंगतियों का, उसके भीतर मानसिक क्षुद्रता का, स्वार्थ और लोभ से लिप्त पारिवारिक सम्बंधों का, विघटन का तथा संस्कृति के अपसरण का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया हैं।
“हम आखिर में इतना कह सकते हैं कि प्रेमचंद जी आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी लेखक थे जिन्होंने अपने राष्ट्र की प्रायः सभी समस्याओं का चित्रण पूरी सच्चाई के साथ किया है। जीवन के अंतिम समय तक कई संघर्ष एवं गरीबी का जीवन गुजारते हुए और साहित्य साधना में लगे रहे परंतु इनके शारीरिक प्रकृति ने उनका साथ नहीं दिया अक्तूबर 1936 ई.में इस संसार से हमेशा के लिए विधा हो गये।"
संदर्भ:
1. प्रेमचंद और उनका युग - डॉ. रामविलास शर्मा
2. हिंदी साहित्य का इतिहास - डॉ. नगेंद्र
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