स्तुति राय की कविता
⛄ ठंड की दोपहरी ⛄
सच बताऊं तो
ठंड की दोपहरी
सबसे खूबसूरत होती है
बिल्कुल हल्की
गुलाबी धुप
हल्की ठंडी
चलती हवा
जो शरीर में
सिहरन पैदा कर दे
और बहुत दूर
देखने पर
ऐसा लगता है कि
अभी भी कुहरा
छाया हुआ है
धुप हवाओं के साथ
खेलती हुई
पहले पेड़ों पर
उतरती है
और फिर
पूरे छत पर बिखर
जाती है
और वहां से
उतरकर
हमारी खिड़कियों
और दरवाजों तक
चली आती है
खुशी की दस्तक देने
ये कहने की
अपनी उदासी से
बाहर निकलो
देखा मुझे
मैं तुम्हारा इंतज़ार
कर रहा हूं
सच में,
ठंड की ये धूप
बहुत उम्मीदों भरी
होती है।
स्तुति राय
शोधार्थी (एमफिल)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी
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