महिला लेखिकाओं की आत्मकथा और उपन्यासों में नारी जीवन की समस्याएँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Problems of women's life in biographies and novels of women writers

महिला लेखिकाओं की आत्मकथा और उपन्यासों में नारी जीवन की समस्याएँ

नारी जो माँ है, बहन है, पत्नी है। माँ का दर्जा संसार में सबसे ऊँचा माना जाता है। मनुष्य जाति में सबसे पहले माँ की ही मूर्ति बनाया था। कारण वह जननी है। आज भी भरत वर्ष में विभिन्न स्थानों पर माँ की पूजा अर्चना होती है। वह दुर्गा के रूप में है, वैष्णों माता के हो या सात देवियों के रूप में हो। उनकी स्तुति होती है और मुरादें माँगी जाती है। बहन एक पवित्र रिश्ते का नाम है। बेटी एक आदर्श है और पत्नी अर्धांगिनी के रूप में मानी जाती है। कई जगह शिव के चित्र और अर्धनारीश्वर और आधा पुरुष के रूप में दिखाया जाता हैं। यह मानव के पुरातन चिंतन का ही रूप है, परन्तु बड़े दुःख से कहना पड़ता है कि कुछेक लोग नैतिक मूल्यों से इतने नीचे गिर जाते है कि सोचकर भी शर्मिंदा होना पड़ता है।

  भारतीय समाज पुरुष प्रधान है। भारतीय पुरुष प्रधान संस्कृति में नारी को गौण स्थान दिया गया है किंतु भारतीय नारियाँ की स्थिति पश्चिमी नारी की तुलना में कई मायने भिन्न है। आजादी के बाद भारतीय नारी को घर से निकलने का अवसर मिला। स्वतंत्रता के बाद उसे वैधानिक समानाधिकार मिले, परिणामतः ग्रामीण खेतिहर नारियों में ही नही बल्कि आम शहरी और कस्बाई स्त्रियों को भी परिवर्तन की अच्छी पार्श्व भूमि मिली।

 वैदिक कालीन समाज में नारी को महिमामय स्थान प्राप्त था। नारी शब्द ‘नृ’ से उद्भव हुआ है, जिसका अभिप्राय ‘वीरता’ का काम करने, दान देने या नेतृत्व करने से है। नारी- भाव में यही अर्थ सन्निहित है। शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की कल्पना भारतीय समाज में प्राप्त नारी की समादरणीय स्थान का घोषक है।

  “यात्रानार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” जहाँ स्त्रियों की पूजा होती वहाँ देवता रहते है। वास्तव में नारी श्री है, शक्ति है। एक ओर तो स्त्री के मातृ रूप का दैवीकरण कर भारतीय समाज उसे पूजनीय तथा वंदनीय घोषित करता है तो, दूसरी ओर वही समाज उसे माया, भ्रम का कारण बताया है। रहस्यवादी सन्तों ने स्त्री को माया कहा, जिससे ध्वनित होता है कि वह पुरुष को पथभ्रष्ट करनेवाली षड्यंत्रकारी शक्ति कहा है। स्त्री की पारिवारिक स्थिति सदा से अधीनस्थता की ही रही है, पुत्री, बहन, पत्नी, माता के रूप में वह सदैव पिता, भाई, पति और पुत्र के रूप में पुरुष के आधीन ही रही है। उसे आर्थिक रूप से समाज ने सदैव पुरुष के आधीन और आश्रित ही रखा गया।

  भारतीयों के सभी आदर्श नारी रूप में पाए जाते थे, जैसे विद्या के लिए आदर्श रूप में माँ सरस्वती, धन के रूप में लक्ष्मी, शक्ति के रूप में माँ दुर्गा, सौंदर्य के रूप में माँ रति, पवित्रता के रूप में गंगा, और इतना ही नहीं सर्वव्यापी ईश्वर के रूप में जगत जननी आदि।

  पुरुष शासित समाज में स्त्रियों के अधिकार और नारी मुक्ति को लेकर चाहे जितने बड़े-बड़े दावे पेश किये जाए, नारे लगाए जाए और कितनी ही बातें क्यों न की जाए पर स्त्रियों की दुर्दशा का चित्रण आज भी साहित्य समाज और मीडिया में हर जगह द्रष्टव्य है, स्त्री भोग्या मात्र है, और धर्मशास्त्रों ने भी उसे आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया है। समाज में अनेक कुप्रथाओं ने भी जन्म ले लिया था जैसे, सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, अनमेल विवाह आदि।

  नारी ने अपनी सफलताओं की सीढ़ियों का रुख हर दिशा की ओर घुमाया। चाहे वह राजनीति का हो, चाहे साहित्यिक का, समाज का कोई रूप ऐसा नही जिसमें नारी ने अपनी पहचान बना एक अभीष्ट निशाना छोड़ा हो।

महिला आत्म-कथाकारों के आत्मकथा में नारी जीवन:

 हिंदी गद्योत्तर साहित्य में आत्मकथा साहित्य का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। आत्मकथा साहित्य में साहित्यकार स्वयं अपने जीवन के अतीत को अभिव्यक्ति देता है। उसी विधा में पुरुष आत्म-कथाकारों के साथ महिला आत्म कथाकारों ने भी अपने भोगे हुए जीवन को शब्द बद्ध किया है।

 जिसमें शिवानी-‘सुनहु तात यह अकथ कहानी’, पद्मा सचदेव-‘बूँद बावड़ी’, मैत्रेयी पुष्पा-‘कस्तूरी कुंडल बसै’ तथा ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’, रमणिका गुप्ता-‘हादसे’, सुशील राय-‘एक अनपढ़ कहानी’, प्रभा खेतान-‘अन्यथा से अनन्या’, मुन्नू भंड़ारी-‘एक कहानी यह भी’ कौशल्या बैसंत्री-‘दोहरा अभिशाप’, कृष्णा अग्निहोत्री-‘लगता नहीं है दिल मेरा’, चंद्रकिरण सौनरेक्स-‘पिंजरे की मैना’, सुशील टाकभौरे-‘शिकंजे का दर्द’, अमृता प्रीतम-‘रसीदी टिकट’ आदि आत्मकथा कारों एवं उनके आत्मा-कथाओं के नाम गिनाये जा सकते है। जिन्होंने अपने आत्मा-कथा के माध्यम से अपने व्यक्तिगत जीवन को एक बाइस्कोप की भांति खोलकर रख दिया है साथ ही तत्कालीन परिवेश एवं नारी जीवन के त्रासदी को भी उसमें अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है।

 कृष्णा अग्निहोत्री की ‘लगता नही है दिल मेरा’ पुरुष निर्मित पितृसत्ताक नैतिक प्रतिमानों की धज्जियां उड़ाकर रख देती है। कृष्णा जी ने एक ऐसे समाज में आँख खोली जहाँ पुत्र के सामने पुत्री कुछ भी नही। यह आत्म-कथा लिंग भेद की पक्षपात पूर्ण नीति के दुष्परिणामों की ओर संकेत करती है। सुंदर स्त्री के प्रति कामुक पुरुषों की दूषित निगाहें उनके जीवन को संकटग्रस्त बनाती है। यह आत्म-कथा पुरुष अहं और स्वार्थ से पीड़ित नारी का काँटोभरी जिंदगी की दस्तान है।

 मैत्रेयी पुष्पा का ‘कस्तूरी कुंडल बसै’ आत्म-कथा है। लेखिका लिखती है यही है हमारी कहानी। मेरा और मेरी माँ की कहानी। आपसी प्रेम, लगाव और दुराव की अनुभूतियों से रची कथा में बहुत सी बातें ऐसी है, जो मेरे जन्म के पहले ही घटित हो चुकी हैं। आत्मकथा के प्रथम खंड में कस्तूरी और उसकी बेटी मैत्रेयी(लेखिका) के बीच मनोवैज्ञानिक द्वन्द्व का वर्णन है।

 पद्मा सचदेव की ‘बूंद बावड़ी’ एक ऐसी आत्मकथा है जो पाठकों को अंदर तक दहला देती है। इस आत्मकथा में पद्मा जी ने कई सवाल उठाये है जैसे- क्या समाज की परंपरा टूटेगी?, क्या महिलाओं को पुरुष रूपी पति समझ पायेंगे?, क्या सभी इस रूप में बुरे ही होते है?, शीर्षक के अंतर्गत उन्होंने लिखा है मेरी ये स्मृतियाँ आत्म कथात्मक होने पर भी अपने से ज्यादा दुनियाँ से जुड़ी है। इसमें आप बीती भी है और जग बीती भी दुनिया की कहानी ही कहानी है। बूंद और बावड़ी का प्रतीक व्यक्ति में समष्टि के संबंध को सफलता प्रदान करता है। परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन हो लेखिका डिगती नही है। लेखिका आत्मविश्वासी, दृढ़प्रतिज्ञ एवं अदम्य जिजीविषा लेकर उपस्थित हुई है।

 महिला आत्म कथाकारों ने नारी पर हो रहे अत्याचारों को निःसंकोच ढंग से अपने आत्मकथा में अभिव्यक्ति दी है। पति के द्वारा पत्नी पर किये जाने वाले अत्याचारों के संदर्भ में कृष्णा अग्निहोत्री अपने आत्मकथा में कहती है ‘और हो गई धुलाई, रईसी धुनाई, इनके बाद बलात्कार की पुनरावृत्ति’।

 आज भले ही आधुनिक शिक्षा के कारण लोग पढ़-लिखकर आगे बढ़ रहे है किंतु उनकी मानसिकता में अभी भी पूरी तरह परिवर्तन नही हुआ है। नारी की ओर एक भूख की दृष्टि से देखते हैं। भले ही वह उसके आयु में बेटी जैसा भी क्यों न हो, ऐसा ही बात का जिक्र कृष्णा अग्निहोत्री ने ‘लगता नही दिल मेरा’ इस आत्मकथा में किया है।

महिला उपन्यासकारों की उपन्यासों में नारी जीवन:

 हिंदी साहित्य संसार में महादेवी वर्मा, महाश्वेता देवी, अमृत प्रीतम, सुभद्राकुमारी चौहान, कृष्णा सोबती, डॉ.प्रभा खेतान, उषा प्रियंवद, ममता कालिया आदि ने भी नारियों की स्थिति में सुधार एवं नारी-स्वतंत्रता के लिए साहित्य जगत में अपनी कलम चलाई।

 ‘रुकेगी नही राधिका’ उपन्यास में उषा प्रियंवदा ने आधुनिक परिवेश से उदित नारी ही उसका विषय है। लेखिका स्वयं लिखती है एक ऐसी स्त्री का, जो कि अपने में उलझ गई है और अपने को पाने की खोज में उसे अपने ही अंदर बैठकर खोज करनी है। राधिका का निपट अकेलापन और भारत में अपने को उखड़ा-उखड़ा जीना मेरी अपनी अनुभूतियाँ थी; जिन्हें कि मैं बेहद लाड़-प्यार के बावजूद नकारा नही सकी।

 ममता कालिया जी का एक उपन्यास ‘एक पत्नी के नोट्स’ में वह कहती है बाहरी दुनिया के दबाव और शक्ष्वत दायित्व आज नारी को जटिल आत्म संघर्ष का पाठ पढ़ा रहे है।

 कृष्णा सोबती जी के उपन्यास ‘सूरज मुखी अंधेरे के’ में नारी के व्यक्तित्व के सुनसान जंगल, मानवीय मन की नितांत उलझी हुई चाहत और जीवन भरे संघर्ष का दस्तावेज दर्शाया गया है।

 मंजुल भगत ने अपने उपन्यास ‘अनारों में’ जीवन यथार्थ को प्रस्तुत किया है। इसकी नायिका निम्न वर्गीय नारी है जो महत्वाकांक्षी है तथा समय और परिस्थितियों के अनुसार वह अपने को झट बदल लेती है। इतना ही नहीं, वह आधुनिकता और परंपरा दो छोर के बीच झुजती है। अनारों ने अपने वर्ग की समस्त विद्रूपता ओं एवं महत्वाकांक्षाओं के साथ जीवन के तीखे यथार्थ को रेखांकित किया है।

 महादेवी वर्मा ने सच ही कहा है- ‘ भारतीय नारी भी जिस दिन अपने सम्पूर्ण प्राण प्रवेश से जाग सके उस दिन उसकी गति रोकना किसी के लिए संभव नहीं। (श्रृंखला की कड़ियाँ, भूमिका से)

 उपसंहार :

 इस प्रकार महिला आत्म-कथाओं को देखा जाएँ तो यह कहा जा सकता है कि महिलाओं ने अपने उपन्यासों एवं कहानियों के माध्यम से काल्पनिक कथाओं के आधार पर नारी जीवन को अभिव्यक्ति तो दी है, उसी तरह अपने आत्म-कथाओं के माध्यम से अपने व्यक्तिगत जीवन या इसी समाज में घटित घटना के माध्यम से नारी के यातनामय जीवन को भी प्रस्तुत किया है, जो वर्तमान में समय के यथार्थ को बड़े ही सशक्त रूप में अभिव्यक्ति देता है।

डॉ. मुल्ला आदम अली

संदर्भ:-

1. महिला आत्मकथा लेखन में नारी- डॉ.रघुनाथ गणपति देसाई

2. लगता नहीं है दिल मेरा – कृष्णा अग्निहोत्री

3. कस्तूरी कुंडल बसै – मैत्रेयी पुष्पा

4. महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में नारी वादी दृष्टि – डॉ.अमर ज्योति

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