Patriarchal Society and Rape Culture : पितृसत्तात्मक समाज और बलात्कार संस्कृति
जब समस्या जड़ में हो तो तनों पर कुल्हाड़ी चलाने से घंटा न कुछ होने वाला, वो तो फिर से पनप ही जाएंगे क्योंकि जड़ें तो सलामत ही हैं।
इस समाज में होने वाले हर एक रेप का जिम्मेदार हर एक मर्दवादी मानसिकता का व्यक्ति है, और मर्दवादी सोच होने के लिए मर्द होना जरूरी नहीं, वो किसी भी जेंडर का हो सकता है।
सभ्यता के विकास के दौर में पुरुषों ने इस समाज में एक ऐसी व्यवस्था बनाई जहाँ अपने वर्चस्व को स्थापित रखने के लिए महिलाओं को अपनी संपत्ति बना कर, उनका वस्तुकरण करके उन्हे अपनी अधीन रखना शुरू कर दिया।
आज हालत ये है कि महिलाएं इस पितृसत्ता नाम के वायरस की सबसे बड़ी वाहक बन चुकी हैं और जाने - अनजाने इस रेप कल्चर को बढ़ाने में अपनी हिस्सेदारी दे रही, इसमें उनकी भी कोई खास गलती नहीं उनके संस्कारों में ही ये virus inject किया जा चुका है इस समाज द्वारा।
रेप कल्चर को बढ़ावा तो उसी वक्त से मिलने लगता है जब माँ- बाप अपने बच्चों को एक खास तरीके से ट्रीट करना शुरू कर देते हैं, जब लड़के और लड़की को उसके लड़का या लड़की होने का अहसास कराया जाता है, जब उनके अधिकारों के दायरे बनाए जाते हैं, जब उनके कपड़ो की size, बोलने और चलने के ढंग, उनके सोचने के ढंग को एक खास तरीके से तैयार किया जाता है, कौन घर के अंदर रहेगा कौन बाहर सब कुछ तय किया जाता है। किसी को समाज का एसेट और किसी को लायबिलिटी बना दिया जाता है।
ये सब कौन कर रहा है? रेपिस्ट्स को तैयार करने वाले कौन हैं?
माँ - बाप? पूरा परिवार? या ये पूरा समाज?
सभी ही शामिल हैं इसमें।
पूंजीवाद ने भी बढ़ चढ़ कर इसमें हिस्सेदारी निभाई है, एक दाँत का मैल छुड़ाने वाले मंजन से लेकर मर्द का बनियान तक किस तरह महिलाओं का आकर्षित करता है या एक साधारण फेस क्रीम से लेकर किचन का कूकर सेट तक किस तरह मर्दों को आकर्षित करता है महिलाओं की तरफ ये सब उसी ने तो सिखाया है। और सच तो ये है कि आज महिलाओं का objetification करने में दिन दूनी और रात चौगनी तरक्की की है इस पूंजीवाद ने।
ये जितने भी कुल्हाड़ी लेकर तने काटने में लगे हुए हैं, उनसे आग्रह है, कृपया अपने आस - पास का माहौल देखे और खुद आपके और आपके opposite gender के साथ किस तरह का व्यवहार हो रहा वो देखे और समझे की जड़ कहाँ है।
ये तो तय है कि कानून इस रेप कल्चर का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इस culture पर हथौड़ा चलाना है तो इस मानसिकता पर हथौड़ा मारिये और वर्तमान तथा भविष्य में जितने भी माता पिता हैं या होंगे , ये आप पर अब निर्भर करेगा कि आप समाज को किस ओर ले जाएंगे।
अपने बच्चों को सामाजिक,मानसिक और आर्थिक हर तरह से सशक्त करके जड़ को उखाड़ फेकना चाहते हैं या फिर..... तने पर कुल्हाड़ी मारते रहिए।
लगेगी आग तो जद में आएंगे घर कई... यहाँ किसी एक का मकां थोड़ी है।
भाग्य श्री (Bhagya Shree)
हैदरनगर, झारखंड
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