Premchand Ghar Me : Shivrani Devi
प्रेमचंद घर में - शिवरानी देवी
इस पुस्तक में प्रेमचंद स्वयं एक किरदार के रूप में उपस्थित है।
स्तुति राय
मेरे जीवन की सबसे बहुमूल्य पुस्तक जिसे पढ़ने के बाद मेरा सोचने का या किसी को भी देखने का नजरिया बदल गया। यह पुस्तक जीवनी और आत्मकथा दोनों हैं। एक तरफ यह प्रेमचंद की जीवनी है और वही दुसरी तरफ शिवरानी देवी की आत्मकथा।
यह पुस्तक प्रेमचंद की जीवनसंगिनी शिवरानी देवी द्वारा लिखा गया है। यह पुस्तक सन् १९४४ ई में प्रकाशित हुई थी तथा इसे दुबारा २००५ में संशोधित करके प्रकाशित की गई। इस काम को उनके नाती प्रबोध कुमार ने अंजाम दिया।
यह पुस्तक प्रेम में डूबकर लिखा गया है। एक पत्नी अपने पति से कितना प्रेम करती है यह पुस्तक उसका प्रमाण है। शिवरानी देवी ने इस पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि "मैं यह सबकुछ बिना लिखे नहीं रह सकती। मेरे भीतर एक बेचैनी हो रही है इसलिए मेरा लिखना ज़रूरी है।"
इस पुस्तक को पढ़ते समय उस बेचैनी, उस दर्द और तकलीफ को हर संवेदनशील पाठक महसूस कर सकता है। इस पुस्तक में कलात्मक ढंग से कुछ भी नहीं लिखा गया है। शिवरानी देवी को जैसे-जैसे घटनाएं याद आती गई है वहीं लिखती चली गई है, कितनी जगह तो एक ही घटना को दो बार लिख दिया गया है। लेकिन भावों के स्तर पर यह आपको द्रवित कर देगी। इतने साधारण ढंग से लिखा गया है लेकिन इतना भावविभोर हो कर लिखा गया है कि शिवरानी देवी का प्रेम प्रेमचंद के प्रति और प्रेमचंद का प्रेम शिवरानी देवी के प्रति हर पाठक महसूस कर सकता है। ऐसे कितने ही मोड़ आएंगे जब जहां आपकी आंखें सजल हो जाएंगी। कहीं कहीं तो आपको पता ही नही चलेगा कि आप रो रहे हैं। पता तब चलेगा जब किताब के पन्ने भींगने लगेंगे।
शिवरानी देवी ने एक घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि तब वह लखनऊ में थी। यह १९३० की बात है। वहां पर शिवरानी देवी स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही थी तथा वहीं महिला आश्रम में काम कर रही थी।एक दिन शिवरानी देवी को पता चला कि प्रेमचंद जेल जाने की तैयारी कर रहे हैं तब शिवरानी देवी ने तय किया कि वह प्रेमचंद की जगह जेल जाएंगी लेकिन उन्होंने ने प्रेमचंद को यह बात बताई नहीं। जब प्रेमचंद लखनऊ से कुछ दिन के लिए काशी आए तो उधर शिवरानी देवी ने खुद को गिरफ्तार करा लिया और उन्हें दो माह की सजा हुई। जब प्रेमचंद लखनऊ पहुंचे तो उन्हें पता चला कि शिवरानी देवी गिरफ्तार हो चुकी है तुरंत प्रेमचंद जेल मिलने चले गए।
प्रेमचंद और शिवरानी देवी दोनों कि आंखों में आंसू थे। प्रेमचंद ने शिवरानी देवी से कहा कि मैं जाने वाला था तुम क्यों चली गई? शिवरानी देवी ने कहा इसलिए तो आए हैं। आपकी सेहत खराब है और खराब हो सकती थी। प्रेमचंद की आंखों से आंसू बह रहा था। वो लौट आए।जब दो माह बाद शिवरानी देवी जेल से घर लौट कर आई उस समय प्रेमचंद आंगन में बैठे थे शिवरानी देवी ने आते ही उनका पैर छुआ और फिर दोनों पति-पत्नी एक दूसरे के गले मिलकर खूब रोए, फिर बच्चों ने बताया कि प्रेमचंद ने इतने दिनों में एक भी दिन पेट भर खाना नहीं खाया है और नाही किसी दिन हंसे या मूस्कूराए, वह पूरे दिन उदास रहते थे।
इस तरह एक पति के रुप में प्रेमचंद यह रुप हर सहृदय पाठक का दिल जीत लेगा।
इस पुस्तक के माध्यम से प्रेमचंद के एक लेखक से इतर अन्य भूमिका भी देखने को मिलता है, एक पति, पिता, भाई, नाना, दोस्त, अधिकारी, और संपादक आदि। प्रेमचंद की यह सारी भूमिकाओ के बारे में हमें यह पुस्तक पढ़ने के बाद पता चलता है।
प्रेमचंद के जीवन की एक और खूबसूरत झांकी-
जब प्रेमचंद मुम्बई में थे उसी समय उन्हें 'हिंदी प्रचार सभा' ने मद्रास आने के लिए निमंत्रित किया। जब वह स्टेशन पर पहुंचे तो हजारों की भीड़ लगी हुई थी, सभी उन्हें माला पहना रहे थे, जब प्रेमचंद की निवास स्थान पर पहुंचे तो उन्होंने वह माला निकाल कर शिवरानी देवी के गले में, शिवरानी देवी ने कहा, यह क्या, यह तो आपको मिला है, इस पर प्रेमचंद ने कहा कि वो मुझसे प्रेम करते थे इसलिए मुझे पहनाई और मैं तुम्हें प्रेम करता हूं इसलिए तुम्हें पहना रहा हूं।
इस तरह के अनेक दृश्यों से पता चलता है कि प्रेमचंद अपने वास्तविक जीवन में अत्यन्त भावूक और संवेदनशील व्यक्ति थे।
उसी समय प्रेमचंद को लंदन यात्रा के लिए भी प्रस्ताव आया था, जिसमें उन्हें १०००० रुपए मिलने थे। जब उन्होंने ने शिवरानी देवी से पूछा तो उन्होंने कहा कि इतने दिनों से लगातार यात्रा कर रहे हैं, बच्चों की याद आ रही है तब प्रेमचंद ने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया।
शिवरानी देवी लिखती हैं कि प्रेमचंद के लिए उनका परिवार सर्वोपरि था, उन्होंने ने अपने जीवन में धन को कभी महत्त्व नहीं दिया। न जाने कितनी बार उन्होंने बड़े बड़े प्रस्ताव अपने स्वाभिमान और आत्मसम्मान के लिए ठुकरा दिया।
प्रेमचंद उस समय हिंदी साहित्य के ऐसे पहले लेखक थे जिन्हें सिर्फ पूरे भारत में ही नहीं बल्कि अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति मिल चुकी थी।
१९३६ का समय है शिवरानी देवी बताती है कि वह अपने कमरे में बैठी गोदान पढ़ रही है और रो रही है, तभी अचानक प्रेमचंद आते हैं और उन्हें रोते हुए देखकर बोलते हैं कि रानी मैंने तुम्हें रोने के लिए यह पुस्तक नहीं लिखा है, तब शिवरानी देवी कहती हैं कि "बताइए आपने धनिया को विधवा क्यों किया?" इस पर प्रेमचंद हंसने लगते हैं और कहते हैं कि रानी फिर तो तुम समझी ही नहीं इतना अत्याचार के बाद कोई अपने सपनों के साथ कैसे जीवित रह सकता है?
वहीं एक दुसरी घटना है जब प्रेमचंद बीमार पड़ चुके थे अब उनका अंतिम समय चल रहा था और यह बात दोनों लोगों को पता है। प्रेमचंद के सिर में भयानक पीड़ा हो रही है फिर भी वह रातभर जागकर अपना नया उपन्यास मंगलसूत्र लिख रहे हैं। उनके साथ शिवरानी देवी भी जागी है वह मना करने पर प्रेमचंद कहते हैं कि" रानी मुझे मत रोको मुझे लिखने दो। शिवरानी देवी कि आंखों से आंसू बह रहे है,वह बार बार उठकर जाती है और प्रेमचंद का सिर सहलाती है, प्रेमचंद लिखे जा रहे हैं। यह दृश्य इतना करुणा भरा है कि आप चाहकर भी अपने आंसू नहीं रोक सकते। फिर वह अंतिम दृश्य जब प्रेमचंद बिस्तर पर लेटे हुए हैं और शिवरानी देवी उनके पास बैठी है। प्रेमचंद उनसे कहते हैं कि रानी "अब मैं थोड़ी देर में चला जाऊंगा" और फिर शिवरानी देवी का वह करुण चीत्कार जिसे सुनकर उस शुन्य आकाश की छाती भी फट जाए। प्रेमचंद स्वयं रो रहे हैं और वह प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु! अगर मैं दोबारा जन्म लूं तो रानी को ही मेरी पत्नी बनाना और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।
यह पुस्तक प्रेमचंद तथा शिवरानी देवी के प्रेम को एक सहृदय पाठक तथा एक संवेदनशील व्यक्ति ही समझ सकता है।यह पुस्तक बहुत ही साधारण ढंग से लिखा गया है लेकिन शिवरानी देवी ने अपने हृदय के संपूर्ण भावों को इस पुस्तक में उड़ेल कर रख दिया है।वह कुछ भी नहीं छुपाती।
वह बार बार कहती हैं कि "वह मेरे थे और मैं उनकी, वह मुझसे प्रेम करते थे और मैं उनसे।"
कल मैं उनसे प्रेम करती थी और आज असीम श्रद्धा।
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