उसका चेहरा, मेरी तमन्ना
उसके चेहरे से मैने
आंचल को सरकते देखा।
काली घटा से जैसे,
चांद को निकलते देखा।
बेइन्तहा हुस्न को उसमें,
मैने सिमटते देखा।
जब उसने मुस्कुरा कर
मुझसे नजरे मिलाई।
तो मैने पतझड़ मे,
फूलों को खिलते देखा।
बरसों बाद निकला जो
उसकी गली से।
तो मैने गुजरे जमाने को
हंसते देखा।
दिल के दर्द की दवा
ही नही मिली आखिर,
जख्मों को अपने
बिखरते देखा।
तुझे पाने की तमन्ना थी
इस दिल मे,
लेकिन, तमन्नाओं को
दिल ही मे मरते देखा।
उसके चेहरे से मैने
आंचल को सरकते देखा।
निधि "मानसिंह"
कैथल हरियाणा
nidhisinghiitr@gmail.com
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