Stuti Rai Hindi Poetry : कविता कोश में आज आपके सामने प्रस्तुत है स्तुति राय जी द्वारा लिखित कविता "गाँव (Gaon Kavita)", पढ़े और आनंद लें।
गांव
वो रात का समय
वो घर का छत
वो माथे पर अम्मा का हाथ
वो छत पर चांद का प्रकाश
वो अम्मा की कहानियां
कहानियों में फिर से एक गांव
उस गांव में एक गुड़िया
बिल्कुल मेरी तरह
हर रात का ये सुकून
क्यों छिन गया,
वो नीम का पेड़
वो चांद का प्रकाश
वो अम्मा का हाथ
वो रात का सुकून
क्यों छिन गया,
वो गांव का कुआं
जहां बचपन में
कभी अम्मा नहलाती थी
वो शिव का मंदिर
वो पीपल का पेड़
वो आंगन की तुलसी
सब छूट गया,
तुम्हारे हाथ से खाना
तुम्हारी वो डांट
और जब रोने लगूं
तो आकर मनाना
अब ऐसा नहीं होता
क्योंकि अब वो गांव नहीं है
क्योंकि अब तुम नहीं हो,
गांव का वो घर
घर की वो खिड़की
खिड़की से मुझे बुलाना
क्यों छूट गया,
कभी चांद की कहानी सुनाना
कभी तारों का राज़ बताना
वो ठंडी हवा के झोंके
और अपने आंचल से
मुझे ढंक लेना
क्यों छूट गया
वो गांव क्यों छूट गया,
वो सांझ की बेला
वो जुगनूओं की जगमगाहट
वो अपराजिता की खुशबू
क्यों छूट गया,
वो आम का बागीचा
वो खेत वो खलिहान
वो पगडंडियों का रास्ता
जहां से होकर हम
मेला देखने जाते थे
वो सब क्यों छूट गया,
वो आंगन की चिड़िया
वो मुंडेर पर बैठा कौआ
और फिर उन पर
कोई कहानी बताना
क्यों छूट गया,
वो ममता भरी आंखें
वो जादू भरा हाथ
वो स्नेहिल आवाज
वो मीठी मुस्कान
क्यों छूट गया,
वो सुबह का प्रकाश
वो सांझ का दीया
वो रात की कहानियां,
वो गंगा का स्नान
वो मंदिर की घंटी
वो आशीर्वाद में उठे हाथ
वो प्यार भरें रास्ते,
गर्मियों में छत पर सोना
सप्तर्षियों की कहानी सुनाना
वो समय बताने वाला तारा दिखाना,
जब ठंड लगने लगे
तो अपने आंचल से ढंक लेना
सब छूट गया
क्योंकि तुम छूट गई।
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