Guru Shishya Relationship Essay in Hindi : गुरु और शिष्य का संबंध कैसा होना चाहिए

Dr. Mulla Adam Ali
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Guru Shishya Relationship Essay in Hindi : शिक्षक और छात्र का संबंध निबंध

गुरु और शिष्य का संबंध पर निबंध हिंदी में : भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान महत्वपूर्ण है, बिना किसी स्वार्थ के गुरु अपने छात्र को निस्वार्थ भाव से शिक्षा प्रदान करता है। इसके बदले में शिष्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने गुरु को गुरु दक्षिणा देता है। शिक्षा प्राप्ति के बाद शिष्य अपने गुरु के द्वारा बताए गए मार्गदर्शन पर चलकर समाज की सेवा करता है। शिक्षक-छात्र संबंध बहुत सम्मानजनक है। प्रत्येक छात्र को अपने शिक्षक को उचित सम्मान देना चाहिए। हम इस व्यक्ति (गुरु) से सब कुछ जान और सीख सकते हैं। इसलिए हम सभी को इस रिश्ते की गहराई को देखना चाहिए। इसलिए आज का लेख शिक्षक और छात्र के बीच संबंधों के बारे में है।

Essay on Teacher Student Relationship in Hindi गुरु शिष्य का संबंध पर निबंध हिंदी में

माता-पिता हर किसी के जीवन में पहले शिक्षक होते हैं। ये वही हैं जो आपको ईमानदारी से चलना सिखाते हैं। हम अपने माता-पिता से अच्छे इंसान बनना सीखते हैं। इसके बाद स्कूल कॉलेज की अकादमिक डिग्री आती है। वहां हमें नए शिक्षक मिलते हैं। वे हमें सबक सिखाते हैं।

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एक शिक्षक हर छात्र के जीवन में भगवान के आशीर्वाद के समान होता है। हम ईश्वर को अपनी आँखों से नहीं देख सकते। लेकिन, माता-पिता के बाद, हमारे शिक्षक हमारे सम्मान के स्थान पर हैं। एक छात्र के जीवन में शिक्षक की भूमिका अद्वितीय होती है।

शिक्षक सिर्फ शिक्षक नहीं हैं वे हमारे लिए भगवान का स्वरूप है, लेकिन हम में से ज्यादातर लोग उन लोगों के बारे में सोचते हैं जो अकादमिक रूप से शिक्षक के रूप में पढ़ाते हैं। लेकिन, यह सही नहीं है। अगर हम एक दिन के लिए भी किसी इंसान से कुछ अनजान सीखते हैं, तो वह इंसान हमारा शिक्षक है। उसके कारण हम उन चीजों को जानते हैं जो हम पहलेे नहीं जानते थे। तब हम सिर्फ शिक्षार्थी हैं। तो, हम किसी भी समय, किसी के भी छात्र हो सकते हैं और उनके साथ हमारे शिक्षक-छात्र संबंध विकसित होते हैं।

प्रत्येक छात्र और शिक्षक के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध होना चाहिए। यदि कोई शिक्षार्थी कुछ सीखते समय समझ में नहीं आता है या गलती करता है, तो उसे बिना किसी डर के अपने शिक्षक को बताने के लिए जुड़ना चाहिए। इस तरह, छात्र विषय को और अधिक तरीकों से समझने के लिए तैयार होता है। गुरु उसे विषय भी सिखा सकते हैं।

गुरू अपने छात्र को निरहंकार बना कर उसे उत्थान की तरफ ले जाता है, गुरु के बिना प्रगति असंभव है। गुरु इतना निस्वार्थ है कि शिष्य को अपने से भी श्रेष्ठ बनाने की कोशिश करता है। हर पल शिष्य का ध्यान रखते हुए, उसके जीवन में आए कठिनाइयां को किस तरह सामना करना है यह ज्ञान शिष्य को अपने गुरु से ही प्राप्त होती है। इसलिए गुरु ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर का दर्जा दिया गया है। गुरु हमारे अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर हमारे जीवन में ज्ञान की ज्योति को जागृत करते है। गुरु के शरण में ही शिष्य सुख जीवन की प्राप्ति कर सकता है।

आजकल गुरु शिष्य के संबंध में बदलाव आ चुके हैं, बढ़ती तकनीकी और नए शिक्षा प्रणाली के चलते ज्यादातर छात्र गुरु पर निर्भर न रहकर तकनीकी का सहारा ले रहे हैं। इससे गुरु और शिष्य के बीच दूरियां बढ़ती जा रही है। साथ में कई सिनेमा और अन्य कार्यक्रमों में गुरु को मजाक के रूप में बताने लगे है तो बच्चे अपने बचपन से ही इस तरह के कार्यक्रमों द्वारा गुरु को कम नजरिया से देखने लगे है। गुरु का कितना भी मजाक उड़ाया जाए गुरु तो गुरु ही है, गुरु के बिना शिष्य अपनी मंजिल को पाना, लक्ष्य को हासिल करना न मुमकिन है। इस संसार में अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए सहायक एकमात्र विकल्प गुरु ही है। इसलिए हमें अपने गुरु का सम्मान करना और उनकी सेवा करना चाहिए।

यह रिश्ता दोनों तरफ से बराबर होना चाहिए। जैसे छात्र शिक्षक का सम्मान करता है, वैसे ही शिक्षक को छात्र के प्रति स्नेह और प्रेम दिखाना चाहिए। तभी शिक्षक-छात्र का बंधन पूर्ण होगा।

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