Ghazal Ek Nazar by Nidhi Mansingh : निधि मानसिंह की ग़ज़ल एक नजर
कविता कोश में आज आपके समक्ष निधि मानसिंह की ग़ज़ल "एक नजर" पढ़े और आनंद लें। Ek Nazar Ghazal by Nidhi Mansingh
एक नजर
गली से मेरी रोज तुम,
गुज़रते क्यों हो?
देखकर एक नज़र मुझकों,
बिखरते क्यों हो?
गर नही दिल मे कुछ
हमारे लिए।
मिलते ही नाखूं कुतरते
क्यों हो?
कसम है तुमकों मेरी,
सच बताना
राहों से हमारी रोज
निकलते क्यों हो?
नजरें मिलाके हमारी
नजरों से
बन के खंजर दिल में
उतरते क्यों हो?
वास्ता गर नही मुझसे कोई
तो देखकर हमकों आहे!
भरते क्यों हो।
निधि 'मानसिंह'
कैथल, हरियाणा
nidhisinghiitr@gmail.com
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