Hindi Ghazal "Sakoon-E-Dil" by Ashok Srivastava "Kumud"
कविता कोश में आज आपके समक्ष प्रस्तुत है अशोक श्रीवास्तव कुमुद " जी द्वारा रचित हिंदी ग़ज़ल "सकून-ए-दिल"। पढ़े और आनंद लें।
सकून-ए-दिल
मन मदन महका रहा क्यों, जब सकूने दिल नहीं।
तन बदन दहका रहा क्यों, जब सकूने दिल नहीं।
क्यों फिजा छेड़े तराने गूँजता संगीत अब,
ये समां बहका रहा क्यों जब सकूने दिल नहीं।
धड़कनें खामोश देखें नैन की वीरानियाँ,
ख्वाब फिर भटका रहा क्यों जब सकूने दिल नहीं।
मुस्कराया जख्म कहकर दर्द में आता मजा,
रंज गम हल्का रहा क्यों जब सकूने दिल नहीं।
उन दयारों में "कुमुद" क्या ढूंढता बेज़ार दिल,
कश्मकश अटका रहा क्यों जब सकूने दिल नहीं।
अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
राजरूपपुर, प्रयागराज (इलाहाबाद)
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