कबीर दास जी के 20 प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित : Kabir Das Dohe in Hindi - Kabir Amritwani
Kabir Ke Dohe with Hindi Meaning : कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित : कबीर के 20 प्रसिद्ध दोहे हिंदी में अर्थ सहित
संत कबीर दास (Sant Kabirdas) 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। हिंदी साहित्य के भक्तिकाल (Bhaktikal) के निर्गुण शाखा के ज्ञानमर्गी उपशाखा के महानतम कवि हैं। कबीर पंथ (Kabir Panth) नामक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी (Hazari Prasad Dwivedi) ने इन्हें मस्तमौला (Mast Maula) कहा। कबीर के दोहे अपनी सरलता के लिए जाने जाते हैं। इनके दोहे आम बोलचाल के सरल शब्दों में लिखे गए हैं कि इसे पढ़कर आसानी से कोई भी समझ सकता है। ज्यादातर कबीर दास जी के दोहे सांसारिक व्यावहारिकता को दर्शाते हैं। कबीर के दोहे आज भी प्रासंगिक है।
Kabir Ke Dohe : Kutil Vachan Sabse Bura Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - Best of Kabir Das
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।।
अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि अपमानजनक भाषा या कटु शब्द बहुत बुरे होते हैं उन शब्दों के वजह से पूरा शरीर जलने लगता है।
जबकि मधुर वाणी (मधुर वचन) शीतल जल की तरह है जब मधुर वचन बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत वर्ष बरस रहा है। इसलिए हमेशा मधुर वचन का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।
Kabir Amritwani in Hindi : Bura jo Dekhan me chala Bura na Milya koye Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - Hindi Dohe Kabir Das
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में यह कहते हैं कि जब मैंने इस संसार में (दुनियां) में बुराई को ढूंढा तो मुझे कहीं भी बुराई नहीं दिखाई दिया पर जब मैंने अपने मन के अंदर झाँका तो मुझे इस संसार में मुझसे बुरा इंसान नहीं दिखा। कबीर का कहना है कि दूसरों की बुराइयां ढूंढने के बजाय अपनी गलतियों को सुधारना चाहिए।
Sant Kabir Das Dohe in Hindi Meaning : PAHAN PUJE HARI MILE HINDI MEANING - Kabir Motivational
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि पत्थर को पूजने से यदि हरि (भगवान) मिलते हैं, तो मैं पहाड़ की पूजा करना चाहूंगा क्योंकि पत्थर के परिमाण में पहाड़ बड़ा है हो सकता है की पहाड़ की पूजा करने से हरि (भगवान) जल्दी मिल जायेंगे। परन्तु उससे बेहतर यह चक्की होगी जो इस चक्की में पीसा हुआ आटे से बने भोजन को सारा संसार सेवन करता है।
Kabir Das : Guru Kumhar Shish Kumbh Hai Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya- कबीर के ऐसे दोहे जो हमें जिंदगी का फलसफा सिखाते हैं
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि गुरु कुम्हार है और शिष्य मिट्टी के कच्चे घड़े के समान है।
जिस तरह सुंदर घड़े को बनाने के लिए कुम्हार घड़े के अंदर हाथ डालकर बाहर से थाप मारता है उसी तरह गुरु ने अपने शिष्य को अनुशासन में रखकर शिष्य की बुराईयो को दूर करके इस संसार में शिष्य को सम्माननीय बनाता है।
Top 20 Kabir Das Ke Dohe in Hindi : Aisi Vani Boliye Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि हमें ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को शांत करे और उसको अच्छी लगे। इस तरह की भाषा से दूसरे लोगों को सुख, शांति तो मिलती है साथ में खुद (बोलने वाला) को भी सुख मिलता है।
Hindi Dohe by Kabir Das : Sai Mera Baniyan, Sahaji Karai Vyapar Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya
साँई मेरा बाँणियाँ, सहजि करै व्यौपार।
बिन डाँडी बिन पालड़ै, तोलै सब संसार॥
अर्थ: कबीर दास कहते हैं कि परमात्मा व्यापारी के समान है, वह सहज ही व्यापार करता है। बिना तराज़ू एवं बिना डाँड़ी पलड़े के ही वह सारे संसार को तौलता है। कबीर जी का कहना है कि परमात्मा समस्त जीवों के अच्छे, बुरे कर्मों का माप करके उन्हें उसके हिसाब से गति देता है।
UGC NET Hindi Dohe Kabir Das : Bada Hua To Kya Hua Jaise Ped Khajur Arth Evam Vyakhya
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि देखने में खजूर का पेड़ बहुत बड़ा और ऊंचा होता है लेकिन खजूर का पेड़ ना तो किसी को छाया देता है और ना ही फल क्योंकि फल भी बहुत दूर ऊंचाई पर लगते हैं। इसी प्रकार आप जीवन में कितने भी धनवान हो परंतु किसी का भला नहीं कर पा रहे हैं तो उस धन का या बड़े होने का कोई फायदा नहीं है। इसलिए लोगों को सहायता करने में काम ना आनेवाला धन भी व्यर्थ ही है।
NTA NET Hindi Kabir Das Ke Dohe : Sanch Barabar Tap Nahi Jhoot Barabar Paap Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya
साँच बराबरि तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै साँच है ताकै हृदय आप॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि सच बोलने के बराबर कोई तपस्या नहीं है, झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है। सच्चाई तपस्या है और झूठ पाप जिसके हृदय में सच्चाई है भगवान उसी के मन (हृदय) में निवास करते हैं। इसलिए हमेशा सच बोलना चाहिए क्योंकि Truth is God (सच्चाई ही भगवान है).
UGC NET Hindi Sahitya Kabir Das Ke Dohe : Dosh Paraye Dekh Kar Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya
दोस पराए देखि करि , चला हसंत हसंत।
अपने याद न आवई , जिनका आदि न अंत।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि दूसरों की बुराईयों को देखकर उनके दोषों पर हंसता है और व्यंग करता है लेकिन दूसरों के दोषों पर हँसने से पहले खुद अपने बुराईयों को सुधारना चाहिए। इंसान खुद की बुराईयों को नजर अंदाज कर दूसरों पर हँसने लगता है और उसके अपने बुराई का कोई आदि न अंत नहीं है। कबीर का कहना है कि पहले स्वयं को सुधारों न की दूसरों को।
UGC NET JRF Hindi Sahitya Kabir Das Ke Dohe : Nindak Niyare Rakhiye Aangan Kuti Chhavay Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya
निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जो लोग हमारी निंदा करते हैं, हमेशा कमियां निकालते हैं उन लोगों को अपने समीप रखना चाहिए क्योंकि वह लोग बिना साबुन और पानी के आपको निर्मल करते हैं मतलब निंदा करने वाले लोगों के भय से हम कोई बुरा काम नहीं करेंगे। निंदक या कमियां निकालने वाले लोगों के बाते सुनकर हमें स्वयं आत्मसुधार करने का अवसर मिलेगा। वे वो लोग हैं एक आइने की तरह आपको आपके कमियों को बताते हैं।
Kabir Ke Anmol Vachan in Hindi : Jab Main Tha Tab Hari Nahin Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहिं
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि ।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जब तक मैं (अहंकार) था तब तक ईश्वर का साक्षात्कार नहीं हुआ, जब अहंकार अथवा निजपन खत्म हुआ तो ईश्वर (ब्रम्हा) का प्रत्यक्ष साक्षात्कार हो गया।
कबीर के दोहे अर्थ सहित हिंदी में : MAYA MUI NA MAN MUA HINDI MEANING KABIR DOHE - Kabir Vani
माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।
आषा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मानव का शरीर, मन, माया सब नष्ट हो जाता है लेकिन इंसान मन में जागने वाली आषा और तृष्णा कभी भी नष्ट नहीं होती। इसलिए मानव को संसार की मोह तृष्णा आदि में कभी नहीं फंसना चाहिए। मोह मुक्त होकर जीवन जीना चाहिए।
कबीर दास के 20 लोकप्रिय दोहे : Kaga Kako Dhan Hare Koyal Kako Dey Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya
कागा का को धन हरे, कोयल का को देय।
मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि कौआ किसी का धन नहीं चुराता या किसी को चोट पहुंचाता फिर भी लोग कौआ को पसंद नहीं करते। वहीं कोयल किसी को कुछ नहीं (धन) देता लेकिन सब लोग कोयल को पसंद करते हैं। यह फर्क बोली का है कोयल अपनी मीठी बोली (आवाज) से सबके मन को मोह लेती है।
Kabir 20 Famous Dohe with Hindi Meaning : Pothi Padhi Padhi Jag Mua Pandit Bhaya Na Koy Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं कि इस संसार में कितने ही लोग बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़कर मृत्यु के द्वार पहुँच गए, परंतु सभी लोग विद्वान नहीं बन सके। कबीर का यह मानना है कि यदि कोई केवल ढाई अक्षर प्रेम या प्यार को अच्छी तरह से पढ़ ले, इसका अर्थ यह है कि प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वहीं सच्चा ज्ञानी होगा।
लोकप्रिय हिंदी दोहे : Boli Ek Anmol Hai, Jo Koi Bole Jani Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - Lokpriya Hindi Dohe Kabir Das
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यदि कोई इंसान अच्छी वाणी (मधुर वाणी) बोलता है तो वह जानता है कि वाणी एक अनमोल रत्न है। इसलिए वह जब भी बोलता है तो हृदय रूपी तराजू में शब्दों को माप तौल कर मुख से बाहर आने देता है अर्थात सोच-समझकर मधुर वचन का प्रयोग किया करता है।
Kabir Ke Sakhi : Maala to Kar mein Phire, Jeebh Phirai Mukh Maaheen Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya : कबीर के साखी
माला तो कर में फिरे, जीभी फिरे मुख माँहि ।
मनवा तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं ॥
अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि माला फेरना और जीभ से ईश्वर का नाम लेकर भजन करना सच्चा सुमिरन नहीं होता क्योंकि भगवान सुमिरन करते समय मन को एकाग्र करना चाहिए उसके मन को दश दिशाओं में घूमने से रोकना ही भक्ति है। कबीर का कहना है कि भगवान को स्मरण करते समय मन को एकाग्र रखना चाहिए।
Kabir Ki Basha : Kabir is Dictator of Language Kabir Ke Dohe : Jaati Na Puchho Sadhu ki Puchh Lijiye Gyan Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - वाणी का डिक्टेटर कबीर दास के दोहे
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि साधु की कोई जाति नहीं होती। साधु से जाति न पूछकर केवल हमें उनके द्वारा ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए। जात पात से साधु परे है। किसी भी व्यक्ति की विद्वता उसका ज्ञान जात पात के बंधनों से मुक्त होता है। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का। इसलिए साधु की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए।
पाखंड पर कबीर के दोहे : Prem Na Badi Upaje Prem Na Hat Bikay Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - Kabir Inspirational Dohe
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा सो रुच, शीश देय ले जाय।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि सच्चा प्रेम खेतों में उगता नहीं है और न ही बाजार में बिकता है। जिसको प्रेम चाहिए उसे अपने काम, क्रोध, भय को त्यागना चाहिए।
जिंदगी के उद्देश्य पर कबीर जी के दोहे : Guru Govind Dou Khade Kake Lagu Paay Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - Kabir Amritvani
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय।।
अर्थ: कबीर दास जी ने इस दोहे में गुरु की महिमा का वर्णन किया है। कबीर का कहना है कि जीवन में कभी भी ऐसी परिस्थिति आ जाए जब गुरु और गोविंद (ईश्वर) एक साथ खड़े मिले तब हम किसको प्रणाम करना चाहिए? गुरु को या गोविन्द को.? इसी परिस्थिति में हम गुरु को पहले प्रणाम करना चाहिए क्योंकि गुरु ने ही गोविंद से हमारा परिचय कराया (अर्थात : ईश्वर को समझने का ज्ञान दिया) इसलिए गुरु का स्थान गोविंद (ईश्वर) से भी ऊंचा है।
Kabir Das All time Famous Dohe in Hindi Meaning :Kabir Aisa Yahu Sansaar Hai Jaisa Saibal Phool Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - कबीर वाणी
कबीर ऐसा यहु संसार है, जैसा सैंबल फूल।
दिन दस के व्यौहार में, झूठै रंगि न भूलि॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यह संसार सेमल के फूल की तरह क्षण-भंगुर तथा अज्ञानता में डालने वाला है। जैसा कि सेमल का फूल देखने में बड़ा आकर्षक और सुंदर दिखता है जब तोता उसके अंदर चोंच मारता है तो कुछ भी हाथ नहीं लगता है। इसी प्रकार यह संसार भी बाहर से बहुत सुंदर और आकर्षक है परंतु कुछ भी हाथ लगने वाला नहीं है।
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