Bihari Lal Ke Niti Dohe : तू रहि हौं हीं सखि, लखौं चढ़ि न अटा बलि बाल - बिहारीलाल के नीति के दोहे
Bihari Ke Dohe with Meaning : बिहारी के दोहे अर्थ सहित
तू रहि, हौं हीं, सखि, लखौं; चढ़ि न अटा, बलि, बाल।
सबहिनु बिनु हीं ससि-उदै दीजतु अरघु अकाल।।
Tu Rahi, haun hin sakhi, lakhai chadi na ataa, bali baal.
Sabhinu binu hin sasi-udai dijatu araghu akal..
भावार्थ; प्रसंग यह है कि नायिका ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया है और चंद्रमा को देखने के लिए वह बार बार अटारे (छत) पर चढ़ती है। सखी उसका श्रम बचाने के निमित्त उसको फिर चढ़ने से रोकती है। किंतु यह कहकर नहीं तू निराहार रहने के कारण श्रम होगा। क्योंकि वह यदि वह यह कहकर रोकती नायिका कदाचित कहकर कहती नहीं मुझे श्रम नहीं होगा फिर तू भी तो निराहार ही है। वह यह कहती है की तू छत पर चढ़ने से अन्य स्त्रियां दोष दे देती है। अर्थात नायिका का मुंह चंद्रमा के समान है नायिका छत पर चढ़ने से यह भ्रम हो जाता है की चंद्रोदय हो गया है। जिससे शशि के उदय के बिना ही जो निराहार है वह व्रत तोड़ देंगे।
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