Hindi Kavita : Ek Kisan Ki Vyatha
कविता : एक किसान की व्यथा
टूटे छप्पर से टपकें पानी,
वह रिमझिम सी बरसात लिखों ।
याद आया फिर हल्कू मुझकों,
वह पूस की ठिठुरती रात लिखों।
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सबका है वह अन्नदाता
फिर भी उसका भाग्य सोता है।
गरीबी और लाचारी को देख
उसका टूटा झोपडा रोता है।
नही जला जिस घर में चूल्हा,
उस घर के हालात लिखों।
याद आया फिर हल्कू मुझकों,
वह पूस की ठिठुरती रात लिखों।
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एक खालीपन सा रहता है,
हरदम उसकी सूनी आंखों मे।
थमा दिया हल उसने उनको
कलम देनी थी जिन हाथों में।
ह्रदय से उठती चीत्कार लिखों,
या उसके रोते जज्बात लिखों।
याद आया फिर हल्कू मुझकों
वह पूस की ठिठुरती रात लिखों।
निधि "मानसिंह"
कैथल, हरियाणा
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