शिशिर ऋतु में मनाई जाती है बसंत पंचमी
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बसंत पंचमी से एक महीने बाद शुरू होती है बसंत ऋतु।
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हिंदी के कई अखबार, पत्रिकाएं और चैनल बसंत पंचमी से ही बसंत ऋतु की शुरुआत बताने लगते हैं।
कई लोग हेमंत के बाद बसंत ऋतु का आगमन भ्रम वश मान लेते हैं।
शिवचरण चौहान
बसंत पंचमी शिशिर ऋतु में मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को विद्या की देवी सरस्वती का जन्म माना जाता है और कामदेव के पुत्र बसंत का जन्म भी माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ माना गया है। इसलिए बसंत पंचमी बसंत ऋतु शुरू होने से एक महीने पहले शिशिर ऋतु में मनाई जाती है।
बसंत पंचमी से ही होली गायन की शुरुआत हो जाती है। ध्रुपद धमार और बुंदेलखंड, अवध क्षेत्र, भोजपुरी, राजस्थान हरियाणा मध्य प्रदेश फागुन की फागें शुरू हो जाती हैं। बसंत पंचमी को ही होली के लिए जगह तय करके विधिवत पूजन अर्चन के बाद होली का जाल रखा जाता है। कंडे सूखी लकड़ियां रखी जाती हैं जिनमें हर दिन वृद्धि होती जाती है। कुछ दिन बाद गोबर के बल्ले और उपले बनाए जाने लगते हैं।
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से भारती य नव संवत्सर की शुरुआत होती है। इसी दिन से हिंदुओं का नया वर्ष प्रारंभ होता है। इसी ऋतु में वासंतिक नवरात्र मनाए जाते हैं।
शिशिर ऋतु पतझड़ का मौसम है। शरद हेमंत और शिशिर में पौधे पेड़ फूल पशु पक्षी मनुष्य जड़ चेतन ठिठुर जाते हैं। बसंत पंचमी में पौधों से पत्ते पीले पढ़कर झड़ रहे होते हैं और पेड़ों पर नई कोंपल आनी शुरू हो जाती है। आम के पेड़ों में बौर निकलने लगते हैं। फूल मुस्कुराने रखते हैं। नर नारियों के चेहरे का रंग खिल जाते हैं। जानवर नए रोएं प्राप्त करते हैं। रंग बिरंगी तितलियां पौधों पर फूलों पर थिरकने लगती हैं और काले भंवरे गुंजन करने लगते हैं। पलाश में कोयले जैसी काली कलियां आने लगती हैं। अमराई में कोयल कुहू कने लगता है तब जाकर बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। फागुन की मस्ती और होली का रंग हमें बसंत ऋतु आ गई है की सूचना देते हैं।
पता नहीं क्यों अध्ययन के अभाव में हमारे तमाम चैनल हिंदी के अखबार पत्रिकाएं बसंत पंचमी से ही बसंत ऋतु की शुरुआत बताने लगते हैं जबकि बसंत पंचमी से एक माह बाद बसंत ऋतु प्रारंभ होती है। वर्ष 2021 को 16 फरवरी बसंत पंचमी के दिन बहुत से अखबारों पत्रिकाओं और चैनलों ने यही गलती दोहराई है। बसंत पंचमी जो शिशिर ऋतु में मनाई जाती है उसे बसंत ऋतु की शुरुआत बता दिया है।
लोक में कहावत है। एक मास रितु अग्रिम धावा। भारतीय उपमहाद्वीप में ऋतु यें छह होती हैं। और मौसम के बदलाव के कारण कोई भी रितु अपने आने की सूचना एक माह पहले ही दे देती है।
रोज-रोज हो रहे जलवायु परिवर्तन। बिगड़ते पर्यावरण। दूषित जल दूषित वायु के कारण विश्व के ऋतु चक्र में बहुत बड़े परिवर्तन हो रहे हैं। मनुष्य द्वारा प्रकृती से खिलवाड़ करने के कारण कभी भूकंप तो कभी जल प्रलय ग्लेशियर खिसकना सुनामी और नई नई बीमारियां आपदा के रूप में आ रही हैं।
हमें अगर सभी छह भारतीय ऋतु ओं का आनंद लेना है और ऋतुराज का स्वागत करना है तो हमें अपने पर्यावरण में सुधार करना होगा। जंगल बा ग लगाने होंगे। पशु पक्षियों और ऋतु चक्र में सहायक कीट पतंगों को प्रश्रय देना होगा। वरना हम एक दिन किताबों में पड़ेंगे और टीवी चैनलों के डॉक्यूमेंट्री में देखेंगे की कभी भारत में ऋतुराज बसंत आया करता था। हजारों किस्म के फूल खिल जाते थे खुश्बू हवा में बिखरने लगती थी चिड़िया चह चहाने लगती थीं और मनुष्य प्रकृति के रंग में ऋतुओं के रंग में रंग जाता था। अब गांव गांव होने वाली फाग ध्रुपद धमार सब गायब हो गए हैं। बंगाल की दुर्गा पूजा सरस्वती पूजा धूमिल पड़ गई है। बसंत आने पर उल्लास उत्साह गायब हो गया है होली के रंग फीके पड़ गए हैं। हमें सिर्फ फिल्मी गीतों में ही होली के गीत सुनने को मिल पाएंगे। बजरंग ऋतुओं के बीच हम हम ऋतुराज को कैसे पहचान पाएंगे? यह चिंतनीय विषय है।
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