Ashok Srivastava 'Kumud' "Sondi Mahak" Book Review in Hindi : Manorama Jain Pakhi
बुधवार-18-01-2023
वर्ष 2023, जनवरी में मिली पुस्तक सौंधीमहक मात्र काव्य सृजन नहीं हैं, अपितु गाँवों में फैले भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, अवैतनिक कार्य के साथ सामाजिक अव्यवस्था, पंचायत, अस्पताल, विद्यालय, पर्यावरण, पीढ़ी अंतराल जैसे विषयों के साथ गाँवों में नववर्ष, कोरोना, चुनाव, होली अकाल आदि मुद्दों को भी बेहतरीन ढंग से काव्य में गढ़ा गया है। गाँव की सौंधी महक लेखक को उनके बचपन की ओर ले जाती है जहाँ किसान विपरीत परिस्थितियों में भी जिजीविषा नहीं छोड़ते। हर सँभव हालात का सामना करते हुये व्यवस्था का एक अंग बन जाते हैं। परिवार का भरण पोषण, बच्चों की पढ़ाई, शादी व रोजगार मूल भूत जरूरतें हैं जिस के लिए वह हर तरह के मौसम से जूझता है।
बुधिया जैसे पात्र का चरित्र चित्रण.. ताटंक छंद व कुछ छंद मुक्त गीतों के माध्यम से जिस तरह उकेरा है.. प्रभावित करता है। पुस्तक प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक बाँधे रखती है। एक नया पृष्ठ नये चित्र को सजीव करता महसूस होता है। ग्राम्य अंचलों में राहत आपदा के समय ग्रामीणों के लिए आई सामग्री किस तरह लूट ली जाती है, पीडि़त व्यक्ति पर क्या बीतती है.. लगता है इस दृश्य से लेखक परिचित है तभी वह लिखता है ....
बदल आपदा अवसर अब
मौका सबहिं भुनाने में।
सरकारी आदेश हुआ बा
राहत बँटत जमाने में।
राहत बाँट रहा है अफसर
बहुत भीड़ गँउवा वाले।
साफ दिखत बा दूर हवेली
लाइन में मड़ई वाले।
इससे बेहतर दुखद मार्मिक व्यंग क्या होगा?
प्रयागराज निवासी लेखक आद. अशोक श्रीवास्तव कुमुद जी की यह तीसरी पुस्तक है जो मुझे प्राप्त हुई है। उप महाप्रबंधक (इ.पी.सी.) से अवकाश प्राप्त अशोक जी के लगभग दस साझा संकलन, अंतर्नाद (छंद सृजन) सुरबाला, सौंधीमहक तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। चौथी पुस्तक प्रकाशनाधीन है। लेखन हेतु अनेक सम्मान प्राप्त अशोक जी की सौंधी महक। बहुत से प्रश्न उठाती है। सरस्वती वंदना व गणेश वंदना के बाद प्रमुख पात्र बुधिया का परिचय इन पंक्तियों में दिया है.... देखते हैं बुधिया की दशा.....
"कबौं फटा बा जूता बुधिया
चश्मा टूट कमानी बा।
डोरी से लटकावै चश्मा
नजर करै मनमानी बा।
देख देख बुधिया ललचावै
सुन्दर माल बजारे में।
मगर जेब में पैसा नाही,
लहकै बीच बजारे में।"
विपन्नता को व्यक्त करती पंक्तियाँ ..
साल भरे का अन्न न उपजे,
सूखा बाढ़ कहानी में।
अश्रु उगावै अन्न जगह अब,
बुधिया खेत किसानी में।
सहज ग्राम्य भाषा में लिखी पूरी पुस्तक जैसे बुधिया की जीवन की पूरी कहानी है।
लेखन में क्या समाहित करना है और कितना करना है अशोक जी बेहतर समझते हैं।
बेवजह विस्तार नहीं देते न घटना को अति बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया है। भाषा भी पढ़ते समय मन को संतुष्ठ करती है। शैली भी अप्रतिम है। मुक्तक छंद को पढ़ते वक्त गेयता स्वयं ही महसूस होती है।
औरत शीर्षक से ग्रामीण महिलाओं की स्थिति को स्पष्ट बताते हुये भी मर्यादा बनाये रखी हैं। अन्यथा महिला पात्र के लिए तो सिर्फ खूबसूरती पर छंद लिखे जाते हैं,उनकी तीखी चितवन ही घायल करती है। पर सौंधी महक की नारी की उस स्थिति का वर्णन किया गया है जो लोक लाज, रीति, संस्कार के नाम पर है.... बिजली पहुँचने के बाद...
चूल्हा चक्की भई विरासत,
ताना सुनत पुराना बा।
घर के भीतर कैद रखै का
लाजो शरम बहाना बा।
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सुनना ही संस्कार हुआ जब
लगा हुआ मुँह ताला बा
रोम रोम में अश्क भरा अब ,
खाली अँखियन प्याला बा।...
निःसंदेह उच्चकोटि का काव्य है। पूरी पुस्तक में मुख्यपात्र की कल्पना के साथ उसके परिवेश, हालात, समस्याओं का चित्रण पद्य में पहली बार देखा है। अन्यथा अलग अलग रचनायें काव् संग्रह म़े गुंथी रहती हैं।
बहुत बहुत बधाई आद. आपको। रोचक भाषा में पढ़ना मानों आँखों के आगे दृश्य उभर रहे हों।
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Ashok Srivastava 'Kumud' Kavya Sangrah Sondhi Mahak Book Review in Hindi, Pustak Samiksha in Hindi।