गिद्ध के हितों का ध्यान रखा जाए
- संजय वर्मा "दृष्टि"
कुछ दिनों पूर्व अखबारों में खबर पढ़ने को आई कि कानपुर के ईदगाह कब्रिस्तान में एक सफेद हिमालयन गिद्ध मिला है, जिसे पुलिस के हवाले कर दिया गया है। इस गिद्ध के पंख लगभग पांच-पांच फीट के हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस गिद्ध की उम्र सैकड़ों वर्ष है। इसी तरह की गिद्ध की अन्य प्रजाति की खबर पिछले वर्ष पूर्व सुर्ख़ियों में पढ़ने को आयी थी कि पन्ना के जंगल से उड़कर चीन पहुंचा। प्रदेश में गिद्धों की संख्या 9408 है।वन्यजीव संस्थान देहरादून के सहयोग से फरवरी 2022 में 25 गिद्धों की जीपीएस टैगिंग की गई थी। इनमें से एक गिद्ध हिमालयन ग्रिफिन प्रजाति का चीन पहुंच गया।जीपीएस प्रणाली का खोजने का तरीका प्रशंसनीय है। कुछ दिनों पूर्व दरभंगा जिले के बेनीपुर में एक खेत में कमजोर हालत में बैठे इस पक्षी को 13 नवंबर को भागलपुर बर्ड रिंगिंग स्टेशन के कर्मियों ने पकड़ा था। अधिकारियों ने कहा कि इस गिद्ध का गायब होना नेपाल के वन्यजीव अधिकारियों के लिए चिंता का विषय था।
बिहार के मुख्य वन्यजीव वार्डन पीके गुप्ता ने कहा कि सफेद पूंछ वाले गिद्ध (जिप्स बेंगालेंसिस) को 2000 से आईयूसीएन सूची में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, क्योंकि इसकी आबादी में तेजी से गिरावट आई है।म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और दक्षिण वियतनाम के अलावा भारतीय उपमहाद्वीप में इस नस्ल के गिद्ध बहुत आम थे।बिहार के मुख्य वन्यजीव वार्डन पीके गुप्ता ने कहा कि सफेद पूंछ वाले गिद्ध (जिप्स बेंगालेंसिस) को 2000 से आईयूसीएन सूची में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, क्योंकि इसकी आबादी में तेजी से गिरावट आई है। म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और दक्षिण वियतनाम के अलावा भारतीय उपमहाद्वीप में इस नस्ल के गिद्ध बहुत आम थे।सफेद पूंछ वाला गिद्ध ज्यादातर जमीन पर भोजन करता है, लेकिन पेड़ों और चट्टानों में बसेरा करता है और घोंसला बनाता है और अपना अधिकांश समय उड़ान भरते हुए सफेद पूंछ वाला गिद्ध मध्यम आकार का होता है। उसकी गर्दन उजली और पीठ के निचले हिस्से के अलावा पूंछ का ऊपरी भाग सफेद होता है, जबकि बाकी शरीर काले रंग का होता है। वयस्क पक्षी किशोरों की तुलना में अधिक गहरे रंग का होता है। उसके घोंसले आमतौर पर जमीन से दो से 18 मीटर ऊपर होते हैं। एक वयस्क सफेद पूंछ वाला गिद्ध 75 से 85 सेंटीमीटर लंबा होता है, जिसके पंखों की लंबाई 180 से 210 सेंटीमीटर और वजन 3.5 से 7.5 किलोग्राम तक होता है। नर और मादा पक्षी आकार में लगभग बराबर होते हैं। उन्होंने कहा कि गिद्ध के लापता होने की खबर पिंजौर (हरियाणा) में जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और सैंडी (इंग्लैंड) स्थित रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स के साथ साझा की गई थी। गुप्ता ने कहा कि गिद्ध को अभी दरभंगा में बर्ड रिंगिंग एंड मॉनिटरिंग स्टेशन की निगरानी में रखा गया है और कुछ दिनों के बाद इसे खुले आसमान में छोड़ दिया जाएगा। पुरानी दुनिया का भारतीय गिद्ध है जो दुनिया के गिद्धों से अपनी सूंघने की शक्ति में भिन्न हैं। यह मध्य और पश्चिमी से लेकर दक्षिण भारत तक पाया जाता है। प्रायः यह जाति खड़ी चट्टानों में अपना घोंसला बनाती है, परन्तु राजस्थान में यह अपना घोंसला पेड़ों पर बनाते हुये भी पाए गए हैं। अन्य गिद्धों की भांति यह भी मुर्दाखोर होता है और यह ऊँची उड़ान भरकर इंसानी आबादी के नज़दीक या जंगलों में मुर्दा पशु को ढूंढ लेते हैं और उनका आहार करते हैं। इनके चक्षु बहुत तीक्ष्ण होते हैं और काफ़ी ऊँचाई से यह अपना आहार ढूंढ लेते हैं। यह प्रायः समूह में रहते हैं। भारतीय गिद्ध का सिर गंजा होता है, उसके पंख बहुत चौड़े होते हैं तथा पूँछ के पर छोटे होते हैं। इसका वजन ५.५ से ६.३ कि. होता है। इसकी लंबाई ८०-१०३ से. मी. तथा पंख खोलने में १.९६ से २.३८ मी. की चौड़ाई होती है। यह जाति आज से कुछ साल पहले अपने पूरे क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पायी जाती थी। १९९० के दशक में इस जाति का ९७% से ९९% पतन हो गया है। इसका मूलतः कारण पशु दवा डाइक्लोफिनेक है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको भारतीय गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। गिद्ध का वर्णन भारत के पौराणिक महाकाव्य रामायण में किया गया है जहां रावण की चंगुल से सीता को बचाने के दौरान गिद्धों के राजा जटायु ने अपनी जान गंवा दी थी। गिद्ध 7,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं और एक बार में 100 किलोमीटर से भी अधिक की दूरी बहुत आसानी से उड़कर लक्ष्य स्थान की और आसानी से जा सकते हैं।एक जानकारी के मुताबिक भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से चार लुप्तप्राय हैं। बियर्डेड वल्चर, सिनसेस वल्चर, इजिप्शियन वल्चर, ग्रिफ्फॉन वल्चर, हिमालयन वल्चर, इंडियन वल्चर, बंगाल का गिद्ध, लाल– सिर वाला गिद्ध, लंबी– चोंच वाला गिद्ध। गिद्धों के लिए विषमुक्त भोजन, स्वच्छ पानी, बोन चिप्स और सुरक्षा एवं स्वतंत्रता हेतु तार से घेरे हुए खुली छत वाले बसेरों के माध्यम से गिद्ध फीडिंग स्टेशन की स्थापना करने की जरूरत है।
आसमान में मंडराते गिद्ध को देखते हुए अंदाजा लगा सकता है कि जमीन पर कोई मरा जानवर पड़ा होगा। उनकी पैनी निगाह उड़ते हुए जमीं पर पड़े मृत जानवर को पहचान लेती है। वर्तमान में गिद्ध दिखाई नहीं देते|ना दिखाई देना गिद्धों की कमी दर्शाता है। गिद्धों की रक्षा में हर व्यक्ति, संस्थाओं को सहयोग हेतु आगे आना होगा ताकि गिद्धों के संरक्षण एवं पर्यावरण स्वच्छता का लाभ के साथ गिद्धों की संख्या में वृद्धि होकर उनके आवासीय स्थल सुरक्षित हो सके। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है की गिद्धों की संख्या में कमी का कारण प्रदूषण, घटते जंगलो, विषैले पदार्थ खा लेने के चलते इनका जीवन प्रभावित हुआ है। पर्यावरण हितेषी गिद्ध धरती पर जहाँ संक्रमण को रोकते है वही स्वच्छता में हमारे सहयोगी रहे है। गिद्धों के हितों का ध्यान रखा जाए ताकि गिद्ध विलुप्ति की कगार पर ना पहुंचे। वर्तमान में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के क्षेत्रो में सफ़ेद गिद्धों की संख्याओं में कमी हुई है जोकि चिंतनीय। क्योकि ये पर्यावरण प्रेमी प्रदूषण को दूर करके धरती को स्वच्छ रखते है। पिछले वर्षो में मुरैना जिले में गिद्धों की गणना की गई थी। ट्रेचिंग ग्राउंड एक अलग सेक्शन गिद्धों के लिए बनाया जाना चाहिए ताकि उसमे रखे मृत जानवरों को ये खाकर अपना पेट भर सकें। इन्हें प्रायप आहार निर्धारित स्थान पर न मिलने से इनकी संख्या में कमी व् रासायनिक चीजों को भी फेंकने से गिद्ध खा लेते जिनसे उनकी संख्या में कमी हो रही है। अतः प्लास्टिक, रासायनिक चीजों को मृत जानवरों के साथ ना रखा जाए।पक्षी विशेषज्ञों का मानना है की गिद्धों की संख्या में कमी बढ़ते प्रदूषण, घटते जंगलो, विषैले पदार्थ खा लेने के चलते इनका जीवन प्रभावित हुआ है। पर्यावरण हितैषी गिद्ध धरती पर संक्रमण को रोकते है वही स्वच्छता में हमारे सहयोगी रहे है। गिद्धों के हितों का ध्यान रखा जाए ताकि गिद्ध विलुप्ति की कगार पर न पहुंचे।
Sanjay Verma Drishti
मनावर (धार), मप्र
9893070756
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