8 March - International Women's Day 2024
महिलाएँ सशक्त राष्ट्र की आधारशिला हैं
पुरानी परंपराएँ, रूढ़ियाँ, अंधविश्वास अब नारी के पाँव की बेड़ियाँ नहीं हैं बल्कि वह आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक सभी क्षेत्रों में अपने अधिकारों के प्रति सचेत होकर राष्ट्र निर्माण में एक महती भूमिका निभा रही है।
वर्तमान में महिलाएँ स्वयं निर्णय लेने की क्षमता का विकास कर राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक परिवर्तन ला रही हैं जो कि एक सशक्त राष्ट्र की नींव होते हैं। राष्ट्र के तन पर फैली कोढ़ सदृश प्रथाओं-- दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, कन्या भ्रूण हत्या, पर्दा प्रथा, बाल मजदूरी, बाल विवाह आदि को वे अपने बौद्धिक चातुर्य रूपी मरहम से मिटा कर स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में अग्रसर हैं।
नारी स्वयं सिद्धा है, वह गुणों की संपदा है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक काल तक स्त्रियों ने सभी क्षेत्रों में अपनी कर्तव्य परायणता से राष्ट्र निर्माण में अपनी श्रेष्ठता ही प्रदर्शित की है। वर्तमान में नारी शक्ति के संपर्क से कोई क्षेत्र अछूता नहीं है।
विधि, अकादमिक, साहित्य, संगीत, नृत्य, मीडिया, उद्योग, आईटी,विज्ञान सहित विभिन्न क्षेत्रों में नारियों के सशक्त योगदान को भला कौन भुला सकता है---कल्पना चावला, किरण बेदी,गीतांजलि श्री,मीरा चानू, टेसी थॉमस,सोनाली मानसिंह,माधुरी कनिटकर आदि। वे अपनी उपस्थिति, योग्यता एवं उपलब्धियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की गौरव पताका फहरा रही हैं। महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी से लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं यही कारण है कि संसद में 33 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने की योजना है।आज देश के सर्वोच्च पद से लेकर( राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी), गाँवों में सरपंच पद तक सभी पर कार्य कर महिलाएँ राष्ट्र को समृद्ध करने में संलग्न हैं।
भारतीय जनजीवन की धुरी ही नारी है। समाज में सकारात्मक बदलाव और नई पीढ़ी को राष्ट्र व समाज सेवा के लिए उसे संस्कारित करने में भी उनका योगदान सबसे अधिक है। संस्कृति, परंपरा या विरासत नारी के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रही हैं। नारी अब भय के साँचे से निकलकर हौंसले के खाँचे में परिणत हो अपनी सशक्तता का प्रमाण दे रही है। नेपोलियन बोनापार्ट का कथन कि -- "मुझे एक योग्य माता दे दो, मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूँगा" इस बात का साक्षी है कि उन्नत राष्ट्र की कल्पना तभी यथार्थ का रूप धारण कर सकती है जब महिलाएँ सशक्त होकर राष्ट्र को सशक्त करें। अतः निश्चित ही नारी सशक्तिकरण राष्ट्र सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण सोपान है क्योंकि एक सशक्त महिला ही एक सशक्त राष्ट्र की शिल्पकार होती है।
डॉ. मंजु रुस्तगी, चेन्नई
Poem on International Women's Day
हर घर की अब बनी मनौती
भावों की अंजुरि हूँ मैं ही,
घर परिवार की धुरी हूँ मैं ही।
मैं ही नवजीवन का आधार,
माँ बन देती जग को विस्तार।
विश्वास हूँ मैं, अहसास हूँ मैं
सृष्टि की सौंधी सुवास हूँ मैं।
जो रुकूँ, तो पृथ्वी थम जाए
चलूँ तो, प्रकृति रास रचाए।
पंख हैं मेरे, परवाज़ है मेरी,
साज़ कोई हो, आवाज़ है मेरी,
बाँध पाओगे न बन्धन में मुझे,
अंत भी मैं हूँ, आगाज़ भी मेरी।
मैं हूँ हौंसला, मैं ही चुनौती
न कहलाऊँ अब कोई पनौती।
जल, नभ, थल अब मेरे हाथ में
हर घर की अब बनी मनौती।
इस जगत का मैं मेरुदंड,
कभी शांत और कभी उद्दंड।
कभी न्याय की गुहार लगाती
न मिलने पर देती दंड।
न हूँ सामान कोई श्रृंगार का
माद्दा रखती दुष्ट संहार का।
युग परिवर्तन को दिशा मैं देती
मैं हूँ इस नए युग की बेटी।
न अबला हूँ, न हूँ दासी,
न भोग्या, न कोई त्रासदी,
मैं नारी हूँ, मुझे गर्व है
मेरे लिए हर दिन ही पर्व है
डॉ. मंजु रुस्तगी, चेन्नई
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