Nani Ke Ghar : Children's Poem by Dinkar Swaroop
नानी के घर
बचपन में बच्चों की बातें
ऊहा - पोह भरी वो बातें
कभी चाँद थाली में, लखना,
कभी ताल जल तल पर लखना,
कभी चाँद बिल्कुल ना दिखना -
नानी के घर चला गया वो !
-----------------------------------
सूरज धरनि कोर से दिखना,
संध्या धरनि छोर जा छुपना,
सिर्फ हमें ही क्यों प्रकाश दे-
नानी के घर चला गया वो !
-----------------------------------
वर्षा आई बूँदें लायी, पवन बही
ठंड लगी बहती पुरवाई हं हं हं
तन भींगा मन उमग भयी तो--
नानी के घर चली गयी वो !
---------------------------------
नभ के आँगन झुण्ड पखेरू ,
इक दूजे से बहलाते मन ,
कभी पंख से पंख मिलाकर -
नानी के घर चले गये वो !
----------------------------------
दूर देश परियों के घर हैं -
बहुत सजीले उन के पर हैं,
नानी के घर में रहतीं वो --
पलक झपकते आ जातीं वो !
---------------------------------
देखो-देखो परियाँ आयीं
नानी का संदेशा,,, लायीं
दे कर हम को सभी दुआऐं-
नानी के घर चलीं गयीं वो !
--------------------------------
बचपन में बच्चों की बातें
ऊहा-पोह भरी वो बातें
------------------------------------
रामस्वरूप दिनकर
आगरा
ये भी पढ़ें; Bal Kavita : नानी फिर कह नयी कहानी - चंचल चुनमुन काव्य संग्रह से बच्चों के लिए रचना
Nani Ke Ghar Bal Kavita, Ramswaroop Dinkar Ki Kavitayen, Dinkar Swaroop Poetry in Hindi, Kavita Kosh, Bal Kavita Hindi, Hindi Children's Poem, Poem for Kids, Hindi Bal Kavitayen, Hindi Poetry, Children's Poems...