Poem on Women's Day in Hindi
महिला दिवस पर कविता "मैं वो नारी हूं"
मैं वो नारी हूं
आओ सुनाऊं अपनी कहानी,
अपनी व्यथा है बहुत पुरानी।
बचपन नहीं यह मेरा,
मिट्टी से नहाना है,
कहता मुझसे हर सवेरा।
कौन जाने कड़ी धूप की चुभन क्या होती है?
कौन जाने मिट्टी की सुगंध क्या होती है?
लादे शीश पर पत्थरों की धार,
कौन जाने होगी कितनी यह भार?
न मैं पुरुष हूं,न मैं नारी हूं,
मैं झांसी की रानी हूं।
लड़ती थी वीर-योद्धाओ से,
वो झांसी वाली रानी थी।
लड़ती हूं मैं ईंट- पत्थरों से,
यही मेरी कहानी थी।
फिर भी नहीं है मुझमें कोई ग़म,
मुस्कुराना हैं मुझे हर दम।
बढ़ते चलेंगे मेरी यह कदम,
हो गई अपनी कहानी खत्म।
जे. सुगंधा,
नेल्लौर, आंध्र प्रदेश
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