Hindi Literature : हिंदी साहित्य की प्रमुख पंक्तियाँ - हिंदी साहित्य के महत्त्वपूर्ण कथन

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Literature : हिंदी साहित्य की प्रमुख पंक्तियाँ - हिंदी साहित्य के महत्त्वपूर्ण कथन - Hindi Sahitya

Hindi Sahitya Ke Pramukh Panktiyaan : हिंदी साहित्य की प्रमुख पंक्तियाँ

UGC NET Hindi Sahitya : यूजीसी नेट हिंदी साहित्य में हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण कथन हमेशा पूछे जाएंगे। यूजीसी नेट हिंदी साहित्य के महत्त्वपूर्ण कथन - Hindi Sahitya Ka Itihas Pramukh Panktiyaan - 1. Bhakti Kaal : हिंदी साहित्य भक्तिकाल काव्य पंक्तियां। आधुनिक कवियों की प्रमुख काव्य पंक्तियां 2. Ritikal : हिंदी साहित्य रीतिकाल काव्य पंक्तियां। आधुनिक कवियों की प्रमुख काव्य पंक्तियां 3. Adhunik kal : हिंदी साहित्य आधुनिक काव्य पंक्तियां। आधुनिक कवियों की प्रमुख काव्य पंक्तियां। Slogans Of Hindi Literature Writers. 

हिंदी साहित्य के महत्त्वपूर्ण कथन : हिंदी की सुप्रसिद्ध काव्य पंक्तियाँ

1. मो सम कौन कुटिल खलकामी - सूरदास

2. माधव हम परिनाम निरासा - विद्यापति

3. भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो - सूरदास

4. खुल गए छंद के बंध - पंत

5. धुनि ग्रमे उत्पन्नो, दादू योगेंद्रा महामुनि - रज्जव

6. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी - रैदास

7. देखे मुख भावै अनदेखे कमल चंद ताते मुख मुरझे कमला न चंद - केशवदास

8. केशव कहि न जादु का कहिए - तुलसीदास

9. पुष्टिमार्ग का जहाज जात है सो जाको कछु लेना हो सो लेउ - विट्ठलनाथ

10. यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक चुना हुआ गुलदस्ता - आचार्य शुक्ल

11. राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज

जगत के सम्मुख एक वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित - सुमित्रा नंदन पंत

12. निराला से बढ़कर स्वच्छंदतावादी कवि हिंदी में कोई नहीं है - हजारीप्रसाद द्विवेदी

13. छोड़ो मत यह सुख का कण है - जयशंकर प्रसाद

14. प्रयोगवाद बैठे-ठाले का धंधा है - नंददुलारे वाजपेयी

15. यदि इस्लाम न भी आया होता तो भी भक्ति साहित्य का बारह आना वैसा ही होता जैसा आज - हजारीप्रसाद द्विवेदी

16. साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है - बालकृष्ण भट्ट

17. भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर आया हो- हजारीप्रसाद द्विवेदी

18. मैं मजदूर हूँ, मजदूरी किए बिना मुझे भोजन करने का अधिकार नहीं - प्रेमचंद

19. सूर अपनी आँखों से वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए हैं - रामचंद्र शुक्ल

20. उत्तर अपभ्रंश ही पुरानी हिंदी है - चंद्रधर शर्मा गुलेरी

21. यह प्रेम को पंथ कराल महा तरवारि की धार पर धावनो है - बोधा

22. हरि हू राजनीति पढ़ि आए - सूरदास

23. इन मुसलमान जनन पर कोटिन हिंदू बारिह - भारतेंदु हरिश्चंद्र 

24. तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है -  हजारीप्रसाद द्विवेदी

25. काव्य आत्मा की संल्पनात्मक अनुभूति है - जयशंकर प्रसाद

26. सखा श्रीकृष्ण के गुलाम राधा रानी के - भारतेंदु हरिश्चंद्र 

27. एक नार ने अचरज किया

साँप मार पिंजरे में दिया - अमीर खुसरो

28. देखिल बअना सब इन मिट्ठा

तैसन जपऔ अवहट्ठा - विद्यापति

29. जाहि मन पवन न संचरई रवि ससि नहिं पवेस - सरहपा

30. अवधू रहिया हाटे वाटे रूप बिरष की छाया

तजिबा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया - गोरखनाथ

31. भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि म्हारा कंतु लज्जेजं तु वयंसिअहू जइ मग्गा घरु संतु - हेमचंद्र

32. पुस्तक जल्हण हाथ टै चलि गज्जन नृप काज - चंदबरदाई

33. मनहु कला ससमान कला सोलह सो बन्निय - चंदबरदाई

34. बारह बरस लौं कूकर जिए, अरू तेरह लै जिए सियार

बरिस अठारह छत्री जिए, आगे जीवन को धिक्कार - जगनिक

35. गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग - तुलसीदास (कवितावली से)

36. झिलमिल झगरा झूलते बाकी रही न काहु

गोरख अटके कालपुर कौन कहावै साहु - कबीर दास

37. दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना

राम नाम का मरम है आना - कबीर

38. अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम - मलूकदास

39. विक्रम धँसा प्रेम का बारा

सपनावती कहँ गयऊ पतारा - मंझन (मधुमालती से)

40. कब घर में बैठे रहें, नाहिंन हाट बाजार

मधुमालती, मृगावती पोथी दोउ उचार - बनारसीदास जैन

41. बालचंद बिज्जावई भाषा, हिन दुहु नहि सम्पई दुज्जन हासा - विद्यापति

42. यह सिर वे न राम कू नाहीं गिरयो टूट

आन देव नहि परसिये, यह तन जायो छूट - चरनदास 

43. मुझको क्या तू हे बंदे

मैं तो तेरे पास में - कबीर

44. रुकमिनि पुनि वैसहि परि गई कुलवंती सत सो सति भई - कुतुबन

45. बलंदीप देखा अँगरेजा, वहाँ आई बेहि कठिन करेजा - उसमान (चित्रावली से)

46. जानत है वह सिरजनहारा, जो किछु है मन मरम हमारा । हिंदू मग पर पाँव न राखेऊ, का जो बहुतै हिंदी भाखेऊ-नूरमुहम्मद

47. सुरतिय, करतिय नागतिय, सब चाहत अस होय

गोद लिए हुलसी फिरें तुलसी सो सुत होय - रहीम

48. मो मन गिरिधर छवि पैं अटक्यो

ललित त्रिभंग चाल पै चलि कै, चिबुक चारु गड़ि ठटक्यो - कृष्णदास

49. कहा करौ बैकुंठहिं जाय जहाँ नहिं नंद, जहाँ न जसोटा, नहिं जहँ गोपी, ग्वाल न गाय - परमानंद दास

50. संतन को कहा सीकरी सों काम

आवत जात पनहियाँ टूटी बिसरि गयो हरि नाम - कुभनदास

51. जाके प्रिय न राम वैदेही सो नर तजिए कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही - तुलसीदास (विनयपत्रिका से)

52. बसो मेरे नैनन में नंदलाल मोहनि मूरत, साँवरि सूरत, नैना बने रसाल - मीराबाई

53. जदपि सुवाति सुलच्छनी सुवरन सरस सुवृत भूषण दिनु न विराजई कविता बनिता मित्त - केशवदास

54. लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल - होलराय

55. आँखिन मूदिबे के मिस आनि अचानक पीठि उरोज लगावै - मतिराम

56. कुंदन को रंग फीकी लगे - मतिराम

57. अभिधा उत्तम काव्य है मध्य लक्षणा लीन

अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन - देव

58. अमिय, हलाहल, मदभरे, रोत, स्याम, रतनार जिवट, मरत, लुकि लुकि परत, बेहि चितवत एक बार - रसलीन

59. भले बुरे सम, जौ लौं बोलत नाहि

जानि परत है काक पिक, ऋतु बसंत के माहि - वृंद

60. कनक छुरी सी कामिनी काहे को कटि छीन - आलम

61. नेही महा ब्रजभाषा प्रवीन और सुंदरतानि के भेद को जानै - बजना

 62. अति सूधौ सनेह को मारग है।

जहँ नैकू सयानपन बाँक नहीं- घनानंद

63. एक सुधान के आनन पै कुरबान जहाँ लगि रूप जहाँ को - बोधा

64. आलम नेवाज सिरताज पातसाहन के

गाज ते दराज कौन नजर तिहारी है - चंद्रशेखर

65. आठ मास बीते जजमान

अब तो वे दच्छिना दान - प्रतापनारायण मिश्र

66. कलि कुटिल जीव निस्तार हित वाल्मीकि तुलसी भयो - नाभादास जी

67. साखी सबदी दोहरा, कहि कहिनी उपखान भगति निरूपहिं निन्दहिं बेद पुरान - तुलसी दास 

68. मात पिता जग जाइ तज्यो विधिहू न लिख्यो कछु भाल भलाई - तुलसी दास 

69 निर्गुण ब्रह्म को कियो समाधु

तब ही चले कबीरा साधु - दादू दयाल 

70. अपना मस्तक काटिकै बीर हुआ कबीर- दादू दयाल 

71. सब मम प्रिय सब मम उपजाये सबतै अधिक मनुज मोहि भाये - तुलसी दास 

72. सो जागो जाके मन में मुद्रा

रात-दिवस ना करई निद्रा- कबीर दास 

73. पढ़ि काय कीन्हों कहा हरे देश कलेश जैसे कक्षा घर रहे तैसे रहे विदेस - प्रतापनारायण 

74. पराधीन सपनेहु सुख नाहीं - तुलसी

75. मैं हिंदुस्तान की तूती हूँ, अगर तुम वास्तव में मुझसे कुछ पूछना चाहते हो तो हिंदवी में पूछो - अमीर खुसरो

76. काहे री नलिनी तू कुम्हलानी

तेरे ही नालि सरोवर पानी - कबीर साहब 

77. मैं मरूंगा सुखी

मैने जीवन की धज्जियाँ उड़ाई हैं - अज्ञेय

78. काव्य की रीति सीखि सुकवीन सों देखी सुनि बहुलोक की बातें - भिखारीदास

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