Stuti Rai Poetry in Hindi
बसंत उतर रहा है
बसंत उतर रहा है
आज,
वो उतर चुका है
आम के पेड़ों पर
आम बौंरा गए हैं
मैं देख रहीं हूं
पलाश के फूलों को
बसंत में पूरा पेड़ हीं
लाल हो गया है,
बसंत अब गुलमोहर को
रंग रहा है
गहरा सुर्ख लाल
वो दुल्हन बनी बैठी
इतरा रहीं हैं,
बसंत ने रंग दिया है
शिरीष को
वो पीले फूलों से लदा
हैं, जैसे हल्दी
लगी हों
बसंत खेतों में भी
उतर आया है
सरसों ने
पीली चुनर ओढ़ ली है,
बसंत उतर आया है
कोयल के हृदय में
वो प्रेम के गीत
गाने लगी है,
बसंत अब
उतर गया है
मेरे गमलों में
अब वो भी
अंगड़ाई ले रहें हैं
उनमें भी कलियां आ गई हैं,
बस मुझे इंतज़ार हैं
खुद में बसंत के
उतरने का।
स्तुति राय
शोध छात्रा,
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ
वाराणसी
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