लघु कविता संग्रह : आनंद के आंसू - निधि मानसिंह

Dr. Mulla Adam Ali
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Anand Ke Aansu Short Poetry Collection by Nidhi Mansingh

कविता कोश में आज आपके समक्ष निधि 'मानसिंह' जी का लघु कविता संग्रह "आनंद के आंसू" से 10 लघु कविताएं पढ़े और आनंद लें, अगर आपको ये हिंदी लघु कविताएं अच्छी लगी तो अपनी राय कॉमेंट करें।

आनंद के आंसू

(लघु कविता संग्रह)

1. जीवन का साज

आओं मिलकर बनायें

जीवन का नया साज।

जो कभी नहीं हुआ

वो प्यार कर ले आज ।

तुम सामने बैठकर

बोलते रहो ।

मै सुनती रहुं तुम्हारी

आवाज।

थोड़ा सा तुम बदल जाओ

और थोड़ा सा अलग

हो जाये मेरा

अंदाज।


2. प्रेम

न जाने कितने बार

प्रेम अपरिचित की भांति

हमारे आस-पास ही

रहता है।

कभी हल्की सी मुस्कान देता है

कभी मीठी सी तान देता है।

और हम उसे देखकर भी

अनजान से, आगे बढ

जाते हैं।

क्योंकि हम इंसान प्रेम को

खोजते रहते हैं।

लेकिन! पहचानते नही।


3. जिम्मेदारियां

वो हंसता था तो

उसकी आंखे चमक

जाती थी ।

उसे देखकर मेरे चेहरे

पर भी रौनक आती थी ।

गुम हो गये दोनों,

जिम्मेदारियों की भीड़ मे

फिर ना मै उसे मिली

और ना वो मिलता है मुझे।

लेकिन! सुकून होता है ये देखकर कि वो,

आज भी पढता है मुझे ।


4. तेरा अहसास

सुना है आज

तेरे शहर में

बारिश गजब की हुई।

यहां मेरे साथ भी बात

कुछ अजब सी हुई।

तेरे शहर के सारे बादल

मेरे शहर में आ गये।

तेरी खुशबू, तेरी चाहत

और तेरे अहसास से

मुझे भिगा गये ।


5. न जाने क्यूँ?

न जाने क्यूँ? अब खुद से ही

रूठने लगी हूं मै!

कह दो बुलंद हौसलों से

कि अब टूटने लगी हूं मै!

सब निगाहों ने मुझको देखा

एक - एक सवाल ने

मुझको घेरा है ।

लेकिन! अब वक्त से जवाब पूछने

लगी हूं मै!

जीने की आरज़ू थी

हसरतों को समेटकर ।

क्यूँ? अब अपना ही दिल

फूंकने लगी हूं मै!


6. ढली शाम

तुम सूरज की किरणों जैसी

मै ढली शाम सा ओझल ।

तुम विदेशी सामान का लेबल

मै रेल नीर की खाली बोतल।

तुम्हें देखकर मन मयूर सा नाचै

तो परी सी सुन्दर

क्यूँ ना बोलू?

लगती हो तुम स्नो व्हाइट

मै! गांव का भोला भोलू।


7. दिया बारे

नील गगन में

चांद भी आधा और

रात भी आधी

हो गई।

जितनी रातें तुमने,

जाग के काटी

वो सब तुम्हारी

आंखों के नीचे

इकट्ठी हो गई ।

बस! तुम ही जागती

दिया बारे

इन प्यारी किताबों

के सहारे।

ये सारी दुनिया

सो गई।


8. तुम्हारे बिन

ये गुमसुम सी रातें

और सर्द ठंड के दिन।

इतवार भी चला गया

पूरा हफ्ता गिन - गिन।

तुम्हें याद करते-करते

लो! एक और चाय

पी लेते हैं हम

तुम्हारे बिन।


9. गांव का आंगन

ये सुंदर सा मेरा गांव

और गांव के घर के

आंगन में।

शांत खड़े उस घने पेड पे

एक छोटा सा झूला हो।

मिट्टी से उठती

सोंधी खुशबू और

लीपा हुआ चूल्हा हो ।

जिसमें थोड़ी-थोड़ी

आग जले।

और थोड़ा थोड़ा

धुंआ हो ।


10. तन्हा सी जिंदगी

आज तुमसे कुछ

कहना है।

रूक जाती हूँ मै!

कहती हुई हर बार।

दोस्त भी तुम हो मेरे

और तुम ही मेरा प्यार।

मेरे लिए तो एक भी

तुम हो ।

और तुम ही एक हजार।

मेरा गुस्सा भी तुम हो

मेरी माफी भी तुम हो।

मेरी इस तन्हा सी

जिंदगी के लिए

काफी भी तुम हो।

निधि 'मानसिंह'

कैथल, हरियाणा
nidhisinghiitr@gmail.com

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