Childrens poem "Dant dapat" by Dr. Faheem Ahmad
बाल कविता
डांट - डपट
मुझे नहीं अच्छी लगती है
गुस्से वाली डांट-डपट।
पापा अक्सर बेमतलब ही
कान खींचते मेरे।
उठने में जो देर हुई तो
आंखें रहें तरेरे।
किस थाने में होती गुस्से
की मैं कर दूँ जहाँ रपट।
मम्मी कहतीं शोर करो मत
वरना दूंगी चांटे।
टूट-टूट जाता नन्हा दिल
जब भी दीदी डांटे।
नन्हे मन में नहीं किसी के
लिए ज़रा भी रहे कपट।
लिखने में हो ग़लती टीचर
जी हो जाते गुस्सा।
डांट पिलाते सभी मुझी को
यही रोज़ का क़िस्सा।
कोई परी सभी का ग़ुस्सा
ले उड़ जाए छीन -झपट।
डॉ. फ़हीम अहमद
485/301, जेलर्स बिल्डिंग, बब्बू वाली गली,
लकड़मंडी, डालीगंज,
लखनऊ (उ.प्र.)226020
मो. 8896340824
ई मेल- hadi.faheem@yahoo.com
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