Stuti Rai Hindi Poetry : Ek Shahar Basaya
एक शहर बसाया
दिल में
एक शहर बसाया
और शहर बसते हीं
एक शोर शुरू हो गया
तपती सड़कें
आग उगलती गाड़ियां
शोर मचाता ट्रैफिक
ना ही कोई पेड़ है
ना कोई नदी
बस भागते हुए लोग हैं
लिपे - पूते चेहरे पर
ज़बरदस्ती की रौनक
लाए हुए,
हंस और मुस्कुरा रहें हैं
जैसे खुद पर एक
एहसान कर रहें हों ,
नज़रें हर व्यक्ति को
तौल रहीं हैं
फायदे के कायदे
गिन रहीं हैं,
इन सब से
मैं बेतरतीब हों चुकी हूं
और अब समझ आया
शहर कहीं भी हों
वो सुकून नहीं बन सकता।
स्तुति राय
शोध छात्रा,
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ
वाराणसी
ये भी पढ़ें; Ek Nadi Ka Dard : एक नदी का दर्द - स्तुति राय
Stuti Rai Poetry, Ek Shahar Basaya Hindi Kavita, Kavita Kosh, Hindi Poetry, Hindi Poem by Stuti Rai, Poetry Lovers, Hindi Poetry Collection, Hindi Kavitayein...