Poem for childrens : Mela - Nandanvan by Ashok Srivastava 'Kumud'
(अशोक श्रीवास्तव "कुमुद" की काव्य कृति "चंचल चुनमुन" से बच्चों के लिए रचना)
मेला - नंदनवन
सोमवार की संध्या बेला,
लगा हुआ जंगल में मेला,
रंग बिरंगी रोशनियों से,
जगमग जगमग करता मेला
खेलकूद सब हैं अलबेला,
खान पान का सुंदर ठेला,
ऊँचे झूले खेल नाटिका,
कोयल गाना नृत्य मुरैला।
शेर शेरनी साथ गदेला,
भालू बंदर मोर कुहेला,
चीता चीतल लोमड़ आए,
मेला हुआ भीड़ का रेला।
हिरन झुलाये सबको झूला,
हाथी झूल खुशी से फूला,
देख नाटिका शेर मगन है,
चीता नृत्य देख सब भूला।
चाट बेचता बंदर कालू,
आलू टिक्की और दमालू,
दही जलेबी बेचे तीतर,
चटखारे ले खाता भालू,
चील घोषणा करे बराबर,
हाथ पकड़ सब चलो बिरादर,
खोये बच्चों को पहुँचाओ,
भूले भटके डेरा अंदर।
अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
राजरूपपुर, प्रयागराज
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