Poetry by Kirti Mallick : तुमको लगता है सफर में मैं अकेली हूँ
तुमको लगता है सफर में मैं अकेली हूँ!
तुमको लगता है सफर में मैं अकेली हूँ!
देखो ना,।रोशनी बिखेरता सूरज
चिड़ियों की चहचहाहट
खेत और खलिहान
फूलों के कितने झुरमुट
नदियों में बहता पानी
मन का मधुर संगीत
तस्वीर तुम्हारी दिल में
बीते लम्हों की कितनी यादें
अंजान कितने साथी
सभी तो मेरे साथ हैं।
कीर्ति मल्लिक
शोध छात्रा
दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली
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