Laghu Kavita Sangrah by Nidhi Mansingh
हिंदी लघु कविता संग्रह
कारवां
1. सपनों का समंदर
सपनों का समंदर बहुत
गहरा होता है।
जो ना तो डूबने देता है
और ना उभरने देता है।
भटकाता रहता है हमे
दिशाहीन सा
इधर से उधर।
2. परेशां
सुन ऐ! जिंदगी
तुम तो आंसूओं से
परेशां हो गई।
यकीन मानों हर आंसू
के साथ मुस्कुराना और
भी मुश्किल है।
अगर तू मुस्कराने की
कीमत बता दे तो,
मै! तुझे भी गिरवी
रख दूं ऐ! जिंदगी।
3. उम्र
सारी उम्र निकाल दी
जिंदगी ने मुझे।
गम और खुशी से
डराते - डराते।
सुन ऐ! जिंदगी
आ मेरे पास बैठ
दो बात करते हैं हम।
तू भी थक गई होगी
मुझे भगाते - भगाते।
4. अनपढ मां
वो अनपढ मां
जिसे पता नहीं।
स्कूल क्या होता है?
फिर भी बडे ही
प्यार और सलीके से,
अपने बच्चों की किताबें
सभांलती हैं।
मानो! इन किताबों में
उसके सपने बसते है।
5. सुकुन
इंसान बडे प्यार से
अपने लिए घर
बनाता है।
और सजाता है।
लेकिन न जाने क्यूँ?
उस घर की कोई
एक जगह या कोना,
उसके लिए इतनी
खास हो जाती है।
जिसमे उसे बहुत
सुकुन मिलता है।
6. कारवां
जिंदगी के कारवां मे
न जाने कितने,
लोग आते हैं।
उनमें से कुछ लोग ही
अपनापन छोड़कर
जाते हैं।
7. दोस्तों का प्यार
ना ताप चढा, ना खांसी
ना जुकाम।
फिर भी हकीम वैदो ने
हमे बीमार लिख दिया।
ना कोई जडी दी ना बूटी
उपचार में दोस्तों का
प्यार लिख दिया।
8. बुढापा
बुडढा होना कोई पाप नहीं
और ना ही बुढापा,
कोई सजा है।
ये तो हमारा बचपन है
जो हमारे जीवन में,
दोबारा दस्तक देता है।
फर्क, सिर्फ इतना है
वो बचपन अल्हड
मस्त और बेपरवाह था।
और ये बचपन जीवन के
तमाम उतार - चढाव और
तजुर्बा से भरा है।
9. फुलका
हम औरतें भी
बडी अजीब होती है।
दुख मे तो रोती है
खुशी हो तब भी रोती है
बात - बात मे,
मुंह तो ऐसे फुला लेती है
जैसे तवे पर फुलता
हुआ फुलका।
10. कोठरी
कभी जिसके नाम से
उस घर में सूरज
निकलता और ढलता था।
वो! आज उस,
अन्धेरी कोठरी मे
अकेली पडी रोती है।
क्योंकि?
अब उसके अपनों को
उसकी जरूरत नही।
- निधि 'मानसिंह'
कैथल, हरियाणा
nidhisinghiitr@gmail.com
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