Anoop Kumar Shukla "Anoop" Poetry : Hindi Bal Geet
कहो रेल पानी क्यों पीती...?
शहर कनौज से मुन्नी घर न्योता था आया,
रानी की शादी मे सब घर गया बुलाया।
मुन्नी को भी नये -गये कपड़े पहिनाये,
रंग - विरंगे बढ़िया सुन्दर सजे सजाये।
हुई तैयारी चले सभी स्टेशन आये,
अम्मा दादा और साथ मुन्नी को लाये।
स्टेशन देखा मुन्नी ने तो वो चकराई,
पथरी - पटरी सिगनल सब मुन्नी को भाई।
एक जगह थी हाथी जैसी सूँड लटकती,
बूंद - बूंद पानी की उससे धार टपकती।
मुन्नी लगी चौंक कर कहने दादा हाथी-हाथी,
मगर दीखता नहीं महावत उसका साथी।
दादा बोले बिटिया हाथी नही य़हाँ हैं,
इंजन के पानी पीने का पाइप लटकता हैं।
मुन्नी बोली इंजन क्यों पानी पीता हैं?
होता हैं ज़ड़ य़ा कि कही वो भी जीता हैं।
दादा बोले इंजन मे पानी भरते हैं,
और जला कर आग भाप उसकी करते हैं।
वही भाप इंजन के पहिये रहे घुमाती,
जिससे चलती रेल हमें इत - उत पहुँचाती।
भीड़ देखती जब आगे तो सीटी देती,
उसी भाप से रेल काम सब अपने करती।
धन्य "अनूप" विग्यान कि जिसने रेल बनाई,
ज़ड़ को भी चैतन्य बना बुद्धि चकराई।
अनूप कुमार शुक्ल 'अनूप'
सुनो कहानी गाओ गीत - सम्पादक : जगन्नाथ वर्मा "जगत" सरस्वती प्रकाशन, 868 कल्याणी, सिविल लाइन्स, उन्नाव (उ.प्र.) प्रथम संस्करण- 2008.
(इस कविता का बीज वर्ष - 1992-93 मे कानपुर से बिल्हौर की दैनिक य़ात्राओ के दौरान बर्राजपुर (शिवराजपुर) स्टेशन की घटना से हैं ज़िसे अपने मित्र डॉ. उमाशंकर शुक्ल "उमेश" की प्रेरणा से कविता रूप मे प्रस्तुत किया था)
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