खुद से मिलना चाहती हूं : Khud Se Milna Chahti Hun Poetry by Ritu Verma

Dr. Mulla Adam Ali
0

Khud Se Milna Chahti Hun Kavita : Ritu Verma Poetry

हिंदी कविता, कविता कोश

खुद से मिलना चाहती हूं

एक अरसा हो गया,

अब खुद से मिलना चाहती हूं।

भूल गई थी खुद को अब खुद से मिलना चाहती हूं।

माना कि हर इंसान जरूरी है,

पर खुद से ज्यादा जरूरी कोई नहीं 

मैं य़ह समझना चाहती हूं।

मैं अब खुद से मिलना चाहती हूं। 

औरों को हम लाख समझ ले

 वो हमें समझ नहीं पाते।

दूसरों के समझने के चक्कर मे 

न जाने हम कब खुद से ही मिल 

नहीं पाते ।

समझ में तो तब आता है ,

जब हम बहुत अकेले होते हैं।

और जब तक हम ये बात समझते 

तब तक न जाने कब खुद को खो दिए होते हैं।

इसलिए समय रहते समय से पहले 

मै खुद को समझना चाहती हूं ।

औरों से मिलने से पहले मै खुद से मिलना चाहती हूं। 

- रितु वर्मा

छत्तरपुर (दिल्ली)

ये भी पढ़ें; नौशीन अफशा की कविता आज की स्त्री का स्वर

Ritu Verma Poetry in Hindi, Hindi Poetry, Hindi Kavitayein, Kavita Kosh, Poem on Women in Hindi, Heart touching poetry in Hindi...

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top