Poem on Mother's Day in Hindi : Manju Rastogi Poetry
मातृ दिवस पर माँ के लिए एक खूबसूरत कविता
मेरी मौन साधिका
जानती हो माँ...
आजकल सभी संबंधों के दिन मनाने लगे हैं
अपने भावों को विशेष ढंग से बताने लगे हैं
सोचती हूँ तूने भी तो चाहा होगा कभी
कि गलबहियाँ डाल बच्चे तुझे भी दुलारें
देकर कोई उपहार खुशी से भर डालें
पर तेरे समय में यह तरीका कहाँ था
प्यार जताने का यह सलीका कहाँ था
न ही शब्दों का लिबास भावों को ओढ़ाना आता था
बस नरम-गरम अहसासों को दिल से निभाना आता था
अजीब तो लगता है
संबंधों को समेट देना एक दिन में
और निश्चिंत हो जाना वर्ष भर के लिए
पर देख कर दुनिया का चलन
मन मेरा भी अब चाहने लगा है
कि काश तू होती मेरे पास...
तो जड़ देती एक चुंबन तेरे गाल पर
और कर देती इज़हार अपने प्यार का
खिलखिला उठती मैं...
जब तू सुर्ख गालों को कसकर पोंछते हुए
धकेल देती खुद से परे
यह कहते हुए...'चल हट बेशर्म',
काश दिखा पाती मेरी मौन साधिका
कि तेरी चुप्पी और सरलता ने
कितना विस्तार दिया है मुझे।
पर न जाने कौन देश चली गई तू माँ
तेरी कमी बड़ी शिद्दत से खलती है।
पहले तूने पाला था मुझको
अब मेरे भीतर तू पलती है।
- डॉ. मंजु रुस्तगी
चेन्नई, तमिलनाडु
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