Ji Chahta Hai Poetry by Sunanda Bhave
आज आपके समक्ष कविता कोश प्रस्तुत है सुनंदा भावे जी की कविता "जी चाहता है", पढ़े और शेयर करें।
जी चाहता है
लौटकर न आए जहाँ से कोई
न जाने क्यों आज
वहीं चले जाने को जी चाहता है।
नहीं है कोई जो पोंछे आँसुओं को मेरे
फिर भी न जाने क्यों, आज
ज़ार-ज़ार रो लेने को जी चाहता है।
न है कोई हमराज़, न हमज़ुबां कोई
फिर भी न जाने क्यों,
किसी से मन की बात कह देने को जी चाहता है।
नहीं है मिलने वाला, न आनेवाला कोई
फिर भी बहुत शिद्दत से आज
किसी की राह में आँखें बिछाने को जी चाहता है ।
न कासिद है कोई, न पढ़ने वाला
फिर भी आज किसी को
छुप-छुपकर ख़त लिखने को जी चाहता है।
क्रोध का मेरे असर नहीं है कोई
फिर भी आज जो सामने आए उसी को
जी भरके डाँटने, लताड़ने को जी चाहता है ।
मनाने वाला कोई भी तो नहीं है
फिर भी आज न जाने क्यों
सारी दुनिया से रूठ जाने को जी चाहता है ।
कंठ में मेरे सुर है न ताल कोई
फिर भी आज ऊँचे स्वर में
कोई राग आलापने को जी चाहता है ।
कद्र करने को मेरी, फुरसत नहीं किसीको
फिर भी, बेमुरव्वत इस दुनिया में
कुछ कर गुजरने को जी चाहता है ।
मर-मिटे मुझ पर ऐसा नहीं है कोई
न शिकवा है, न शिकायत, बस मौत के आने तक
जी भर के जी लेने को जी चाहता है।
सुनंदा भावे
मो. : 9998980866, 8849383186 sunandabhave@yahoo.com
ये भी पढ़ें; सुनंदा भावे द्वारा अनुवादित हिमांशी शेलत की कहानी "उनका जीवन" हिंदी में
Ji Chahta Hai Kavita, Sunanda Bhave Poetry in Hindi, Hindi Poetry, Hindi Kavita, Kavita Kosh, Best Poetry in Hindi...