Hindi Lekhakon Par Mahatma Gandhi Ka Prabhav
20 वीं शती के हिंदी लेखकों पर गांधी जी का प्रभाव
महात्मा गाँधी जी स्वभावतः एक मृदुभाषी, सौम्य, सहनशील और सिद्धान्तवादी महापुरुष थे, जिन्होंने भारत-भूमि की स्वाधीनता के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। गाँधी जी ने अपने विचारों, अपने व्यक्तित्व, अपनी भाषा, अपने कार्यक्रमों, विशेषकर अपने भाषणों एवं लेखन के सशक्त माध्यम से देशवासियों में मूलतः लेखकों, साहित्यकारों. पत्रकारों के मानस में सत्य अहिंसा, प्रेम एकता, शान्ति- सदभावना जागृत किये। गाँधी जी का सर्वप्रमुख राजनतिक सिद्धांत था सर्वोदयी व्यवस्था की स्थाना। उनके अनुसार सर्वोदय व्यवस्था वह है, जिसका हर व्यक्ति सब की भलाई में अपनी भलाई मानता है। इस व्यवस्था की स्थापना के लिए गांधी जी रचनात्मक कार्यक्रमों का पालन आवश्यक मानते हैं। जिसके अंतर्गत सांप्रदायिक एकता, अस्पृश्यता, मद्य निषेध, ग्रामोद्योग का विकास, गाँवों की सफाई में सुधार, बुनियादी शिक्षा, आर्थिक समानता, स्वास्थ्य व्यवस्था, नारी का सम्मान आदि 'सर्वोदय' के अनिवार्य कार्यक्रम हैं। किसी भी देश की राजनैतिक स्वतंत्रता के लिए ही नहीं, उसके सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक जीवन के विकास के लिए भी रचनात्मक कार्यक्रमों का अनुपालन अत्यंत आवश्यक है।
महात्मा गाँधी जी महान साहित्यकार नहीं थे, लेकिन भारत के लगभग सभी साहित्यकार, सन् बीस से चालीस तक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उनसे प्रभावित हुए। उनमें से कई गाँधी जी के संपर्क में आए। कई ने उनके रचनात्मक कार्यक्रम में 'राष्ट्रीय भाषा' सूत्र यह वाक्य अपनाया था "अगर हमें अपने देश की आत्मा से सच्चा प्रेम है, तो हमें कम-से-कम उतने महीने हिन्दुस्तानी सीखने में लगाने ही चाहिए जितने वर्ष हमने अंग्रेजी सीखने में बिताए हैं।'
प्रेमचंद जी गोरखपुर में 1923 में गाँधी जी का भाषण सुनकर इस तरह प्रभावित हुए कि उन्होंने 23 बरस की अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। फलतः हिन्दी साहित्य जगत में उपन्यास सम्राट बने । राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त जी ने भी, गाँधी जी के भाषा से प्रभावित होकर, 'उपेक्षिता उर्मिला' साकेत की रचना के बारे में गाँधी जी से पत्र व्यवहार किये। इस प्रकार गाँधी जी की प्रेरणा से भारतीय साहित्य में बोलचाल की सरल- सहज भाषा, कहानी और कविता का माध्यम बनी। पहले जो संस्कृत और बोझिल पंडिताऊ भाषा लिखी जाती थी. वह एक तरह से कालबाह्य हो गई।
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महात्मा गाँधी जी का कथन था कि समाज के वंचित- मंचित दलित-शोषित, दरिद्रनारायण की सेवा करो फलस्वरूप कई काव्य और उपन्यास अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर लिखे गए। सन बीस से लेकर चालीस के बीच पचासों उपन्यास इस दिशा में अग्रसर हुए। मैथिलीशरण गुप्त के 'किसान' और 'अछूत' खंडकाव्य, रवीन्द्रनाथ की 'चांडालिका', शरतचंद्र चटर्जीका 'पल्ली समाज' इसी कोटी के हैं। गाँधी जी ने सेवा, संयम एवं अहिंसा का जो पाठ पढ़ाया था, उसी तथ्य पर आधारित व्यंग्य नाटक 'बकरी' श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का है। श्री नरेंद्र कोहली का 'शबुक की हत्या' भी इसी कोटा की है। हिन्दी साहित्यकारों के साथ-साथ, दक्षिण भारत के साहित्यकारों में भी गाँधी जी के भाषण का अद्वितीय प्रभाव रहा।
गाँधी जी का कथन था "गाँवों की ओर चलो।" विकेंद्रीकरण के इस नारे का ही प्रभाव था कि हिन्दी में 'देहाती दुनिया', 'गोदान' और 'मैला आंचल' तक, ग्राम और ग्रामीण जीवन कहानियों और उपन्यासों का विषय बना। महात्मा गाँधी जी के सिद्धांतों का प्रभाव केवल राष्ट्रीय आंदोलन पर ही नहीं, विश्वशांति के लिए अहिंसा की प्रेरणा देने में भी था। इस विषय को लेकर कई काव्य हिन्दी में लिखे गये प्रायः हर हिन्दी भाषा- भाषी प्रदेशों में राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं और प्रेमियों ने आत्मकथाएँ लिखी हैं। जिसमें गाँधी जी का देश को एक सूत्र में बाँध रखने की तड़प के दर्शन मिलते हैं। राजेन्द्र प्रसाद हों या जयप्रकाश नारायण, द्वारिका प्रसाद हों या सेठ गोविन्द दास, सभी में 'एक जगत' और 'मानव-मानव सब हैं समान' की भावना ही मिलती है। गाँधी जी के जिन भाषा विषयक विचारों से भारतवासी प्रभावित हुए, उनमें उन लेखों का स्थान प्रमुख था, जो 'यंग इंडिया', 'हरिजन सेवक', 'हरिजन बंधु' आदि में प्रकाशित हुए थे। इसके अतिरिक्त गाँधी जी के द्वारा लिखी गई 'इंडियन होमरूल', 'हिन्दी स्वराज और होमरूल' जैसी पुस्तकों और तत्कालीन विभिन्न व्यक्तियों के नाम पर लिखे गये पत्रों आदि से भी प्रभावित हुए थे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई साहित्यकारों ने कहानियों, उपन्यासों और नाटकों के माध्यम से गाँधी दर्शन से संबंधित विभिन्न विचार व्यक्त किये। साहित्यकारों ने अपने ओर से समाज हित के लिए बहुत कुछ करने के प्रयास किये और इस दिशा में काफी हद तक वे सफल हुए। गाँधी जी ने जिस मंगल भारत की कल्पना की थी, उसे स्वर्ग तुल्य बनाने में हमें गाँधी जी की मूल्य-मर्यादाओं को पालन करना आवश्यक है।
- जे. के. एन. नाथन
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