Poem on Mahakavi Ramdhari Singh Dinkar : Kalam Ke Sipahi Dinkar
महाकवि रामधारी सिंह दिनकर पर कविता : आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि दिनकर पर कविता, राष्ट्रकवि' दिनकर पर कविता, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिंदी के राष्ट्रीय कवि दिनकर पर कविता, poem on Dr. Ramdhari Singh Dinkar, Dinkar Par Kavita...
कलम सिपाही दिनकर का
उद्बोधन हमें जगाता है।
वीरों के उस सिंहनाद की
दिनकर याद दिलाते हैं
धर्मयुद्ध के लिए सतत
संजीवन हमें पिलाते हैं।
पापमयी सेना को पथ से
पल में रुद्र डिगाता है।
कुरुक्षेत्र है निखिल विश्व यह
युद्ध निरंतर चलता है।
स्फुलिंग उठ रहे स्वार्थ के
अपनापन भी खलता है।
ओजस्वी स्वर वाला कवि
मन का भय शीघ्र भगाता है।
तन के बल पर लड़ने वाला
निजी मनोबल भूल गया।
अहंकार और मद से भरकर
गुब्बारों सा फूल गया।
राह का पुरुष वही यहाँ पर
हिंसा-फसल उगाता है।
हृदय-पक्ष का ध्यान नहीं कुछ
वैज्ञानिक उन्नति करता।
प्रतिपल है देवत्व उपेक्षित
पशुता से जीवन भरता।
आकर्षक आसुरी सभ्यता
जिससे भवन रंगाता है।
यदि जनमानस जग जाये
प्रश्नों का हल मिल जायेगा।
दानव जो आतंकवाद का
पलभर में हिल जायेगा।
तेजस्वी को कोई दानव
क्या फिर कभी ठगाता है?
- डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी
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