Father's Day 2024 Short Story in Hindi
पितृ दिवस पर मार्मिक लघुकथा : रविवार 16 जून, 2024 पितृ दिवस पर विशेष डॉ. जयकुमार जलज जी द्वारा लिखी गई लघुकथा "पिता", पढ़े और शेयर करें।
पिता
- डॉ. जयकुमार जलज
पितामह तो उसके बहुत धनी थे। उनका बड़ा कारोबार था। धन बढ़ा तो धार्मिक कार्यों में जी खोलकर खर्च किया। उन दिनों धर्म का क्षेत्र ही ऐसा था जिसमें लोग पैसा लगाते थे। लेकिन शीघ्र आई विश्वव्यापी मन्दी ने कारोबार की कमर तोड़ दी। जिन लोगों ने पितामह के यहाँ रुपये जमा कर रखे थे वे उन्हें वापस माँगने लगे। अपने रहवासी मकान का सौदा अपने ही एक सम्बन्धी से करके उन्होंने इस संकट से मुक्ति तो पा ली पर उनका देहान्त हो गया।
और पिता? वे और असहाय, और परेशान हो गए। एक मामूली -सी किराना दुकान और थोड़ी बहुत ट्यूशन्स उनकी नियति बन गई।
इस पृष्ठभूमि में पढ़ाई के ऊँचे इरादे लिए वह घर से बाहर निकला।
तय किया, पिता पर अधिक बोझ नहीं आने देगा। कम से कम में काम चलाएगा और वह भी यथासम्भव खुद कमाएगा।
पिता तीस रुपये मासिक भेजते थे। थोड़ा बहुत वह खुद कमा लेता था। गाड़ी ठीकठाक चल रही थी। लेकिन परीक्षाओं के पूर्व संकट खड़ा हो गया। परीक्षा शुल्क और आगे के महीनों का इकट्ठा शुल्क जमा करना था। कैसे होगा! हारकर पिता को लिखा। पत्र पाते ही एक तीस रुपये का एम.ओ. शीघ्र आया। पर वही तीस रुपये का। कूपन पर कुछ लिखा नहीं था। उसका खून खौल गया। सोचा, मैंने ही कम रुपये मंगाते रहकर पिता की आदत बिगाड़ दी है।
छात्रावास में ज्यादातर छात्र ठाठ से रहते थे। उनके पिता उन्हें नियमित और पर्याप्त रुपये भेजते थे। उससे बर्दाश्त नहीं हुआ। वह छात्रावास में ही अपने एक मित्र के कमरे में पहुँचा। मित्र को सब कुछ कह देने का इरादा था। घर का भेद खुलने का डर अब दूर हो गया था। पर, वहाँ कुछ और छात्र बैठे थे। लौट आया। कह लेता तो शायद हल्का हो जाता। अब तो वह गुस्से से भरा हुआ था। रुपयों की चिंता और पिता के व्यवहार ने नींद छीन ली थी।
तीन दिन बाद डाकिये ने फिर दरवाज़ा खटखटाया। पिता का भेजा एक सौ रुपये का एम.ओ. था। कूपन पर लिखा था- 'तुमने रुपये शीघ्र मंगाये थे। उस दिन तीस ही रुपये थे। सो, झट भेज दिए थे। अब एक सौ भेज रहे हैं। परीक्षाएं आ रही हैं। अतिरिक्त तीस रुपयों से दूध का बन्दोबस्त करना।"
- डॉ. जयकुमार जलज
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