Satyamev Jayate Poem in Hindi : सत्यमेव जयते
सत्यमेव जयते कविता: मित्रों! आज जो कविता आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं, यह कविता जीवन के आदर्शों को जीने वाले एक पथिक की कहानी को इंगित करती है। एक सीधा साधा पथिक जो बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ था वह केवल मानवता के मूल्यों को ही श्रेष्ठ मानकर अपने जीवन के सफर को तय कर रहा था। इस पथ पर चलते हुए उसे जो दर्द मिलता है वह दर्द एक दिन उसकी आँखों से छलक जाता है।
सत्यमेव जयते
नीम किनारे खड़ा पथिक,
शायद पथ था भूल गया।।
आहों का दर्द न छिपा सका,
आँखों से उसकी छलक गया।
सोच रहा था जाऊं कहाँ,
पथ की मुझको पहचान नहीं।
जीवन प्रत्यंचा जिसने खींची,
साथी वह मेरे साथ नहीं।
उद्विग्न दृष्टि की बेचैनी,
उससे यह कह रही थी मानो।
सत्य पथ के अनुगामी का,
परिणाम यही निश्चित जानो।
पथिक चिंतित बेचारा था ,
आदर्शवादिता का मारा था।
निज मूल्य गढ़े जो उसने थे,
उससे ही आज वह हारा था।
वह आत्मदृन्द का हुआ शिकार
पग उसके शिथिलता ने जकड़ लिए।
आशाओं के विपरीत लगा धरातल,
निज स्वर लोगो ने बदल लिए।
पर सत्य अजेय है सर्वथा सदा,
कितना धूमिल हो जाये वह।
नहीं परिमाण उसका घटता,
कितनी परीक्षाओं से गुजरे वह।
देवालय के घंटे का स्वर
उसके कर्णों में जा गूँजा।
मन की उलझन दूर हुयी
नव स्फूर्ति का संचार हुआ।
पग उसके बढ़ गए पथ पर
आश उसे फिर जाग गयी।
उन्नति के निज द्धार खुले
रात तिमिर की खत्म हुयी।
रात तिमिर की खत्म हुयी।
रचना : सत्यमेव जयते
रचनाकार : मानवेंद्र सुबोध झा
शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश
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