The village of dreams : Mere Sapno Ka Gaon
सपनों का गाँव कविता : कविता कोश में गाँव के बारे में लिखी गई प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र की खूबसूरत कविता "सुधियों का गाँव", पढ़े और साझा करें।
सुधियों का गाँव!
सब कुछ खो गया, बची बरगद की छाँव
मेरा मन ढूँढ रहा सुधियों का गाँव।।
चंचल हिरनी जैसे बड़े-बड़े नैन
शहर के सवालों से डरे-डरे नैन
लाख बार पूछा तो जान सका 'नाँव'
मेरा मन ढूँढ रहा सुधियों का गाँव।।
अंग-अंग थामे संकोचों का भार
जैसे हो गदराई जामुन की डार
गुड़हल में रँगे अधर, मेहंदी में पाँव
मेरा मन ढूँढ़ रहा सुधियों का गाँव।।
यहाँ नहीं बिकते ईमानों का शोर
यहाँ नहीं झूठे अनुबंधों का जोर
छू जाती कानों को कभी 'काँव-काँव'
मेरा मन ढूँढ रहा सुधियों का गाँव।।
'पुनर्नवा' लगती इस माटी की गंध
बौने हैं यहाँ सभी कंचन संबंध
ऋजुता से हारे यहाँ 'शकुनी' के दाँव
मेरा मन ढूँढ रहा सुधियों का गाँव।।
नियति है हतप्रभ सी, ठहरा है काल
आये बहुतेरे, पर गली नहीं दाल
हर हारे को मिलती यहीं ठौर-ठाँव
मेरा मन ढूँढ रहा सुधियों का गाँव।।
- प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र
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