Shahanshah Alam Poetry : Alas Hindi Kavita
आलस के विषय पर शहंशाह आलम की बेहतरीन कविता : Shahanshah Alam Poetry in Hindi, Hindi Poetry Alas, Kavita Alas, Poem on Alas.
आलस
जीवन का कौन-सा कोना है
जहाँ आलस नहीं है
जहाँ सुस्ती नहीं है
जहाँ शिथिलता नहीं है
जहाँ उत्साहहीनता नहीं है
हमारे जूते हमारे पाँव काटते हैं
हम हैं कि उन्हीं जूतों को पहने घूम आते हैं
तक़रीबन पूरा बाज़ार जाली मुस्कान बिखेरते
जो तौलिया फट चुका होता है हर तरफ़ से
उसी से रोज़ देह पोंछते हैं आँखें मूँदे
जो शब्द पुराने पड़ चुके होते हैं घिसकर
उन्हीं शब्दों को उच्चारते हैं आनंदित
जो भंगिमा किसी को आकर्षित करने के काम नहीं आती
उसी हाव-भाव को दुहराते रहते हैं कला की पूर्णता देते
आलस का बसाव इतना ज़्यादा हो गया है
कि मुफ़्त राशन पाने की चाहत में राजा के आगे
नतमस्तक नम्र विनीत झुक जाते हैं
जो राजा मुफ़्त राशन के एवज़ में आपसे पड़ोसी की
हत्या चाहता है उसकी बेइज़्ज़ती चाहता है अक्सर
सच में इतना आलस भर गया है
कि जो जूता हमारे पाँव काटता है
जो तौलिया हमारी देह नहीं पोंछ पाता
जो शब्द प्रेम नहीं बाँट सकता
उसे ही अपने जीवन का हिस्सा बनाए रखते हैं
या जो राजा भय, भूख, बेरोज़गारी, महँगाई की सौग़ात देता है
उसे ही सौंप आते हैं सत्ता की सबसे ऊँची कुर्सी आलस में पड़कर।
- शहंशाह आलम
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