Poem on Azadi Ka Amrit Mahotsav : Har Ghar Tiranga Poem in Hindi
Azadi ka Amrit Mahotsav par Kavita : मित्रों मेरी (मानवेन्द्र सुबोध झा) आज की कविता हमारी अखंड एकता के सन्दर्भ में है। हम सभी परेशान हैं बात तो एकता की करते है परन्तु किसी प्लेटफार्म पर देख लो कहने की आवश्यकता नहीं है, हम भिन्न भिन्न कतारों में खड़े दिखाई देते हैं और ग्रुपवाजी करते नजर आते है, यह हमारे आने वाले समय के लिए अच्छा नहीं है, तो आइये आपके समक्ष प्रस्तुत है मेरी रचना ''भारत की आजादी का अमृत महोत्सव''
भारत की आजादी का अमृत महोत्सव
एकाकी हैं हम आज सभी,
आओ मिल एक काम करें
स्वयं को बदले जग बदलेगा।
अपने अभिमान का त्याग करें।
नफरत का तूफ़ान ले उड़ा,
संपत्ति मेरी जो अपनी थी।
हम चढ़ा रहे थे अपनी हांड़ी
ग्रुप बाजी हमने कर रखी थी।
गर एकता के सूत्र में बंधे होते
तो देश के टुकड़े न होते।
निज स्वभाव में भरा लालच था
इसलिए बिखंडित किये गये।
उचित को अवश्य ही मानो,
पथ आसान हो जायेगा।
परिवर्तन का संकल्प तभी
अपना रूप दिखायेगा।
अंखंड एकता हो मेरी।
गंभीर विषय है गौर करो
पूरा देश अपना हो जाये
कर प्रयोग यह सिद्ध करो।
नेतृत्व करने की क्षमता
बच्चों को अपने सिखलाओ।
केवल रोटी और मकान की
सीमा में न रह जाओ ।
समय चाहें परिवर्तन को
भेदभाव से दूर रहो।
मातृ वत्सला के आंगन को
उज्जवल कर दो परिवर्तन से।
जाति पाति को ईश्वर ने
क्या वेदों में लिख कर भेजा है।
नहीं है ऐसा कोई प्रमाण
तो अभिमान फिर कैसा है।
शिक्षा और योग्यता को
आचरण और अलंकृत करता है।
गौरव अभिमान न बनने पाए
रेखा इसके बीच खीचों।
हम योग्य ऋषि की संताने,
है राग अलापा करतें है।
क्या कर्म हमारे उन जैसे है,
नहीं चिंतन इसका करते।
हमारी दुर्दशा हुई तभी से
जब से अभिमान को पाला है।
अपने मूल्य भूल गये,
सिर्फ दूसरों के घर में झाँका है।
अभी समय है चेत जाओ,
अभिनय को शीघ्र करो बंद।
बैठे हो जिस पद पर तुम ,
शुरू वही से न्याय करो।
भ्रष्टाचार की दुकानों का
सभी मिलकर विरोध करों।
अमृत महोत्सव है भारत में
जन जन को यह सन्देश कहो।
सच में आजादी का अमृत महोत्सव होगा,
सभी मिल एक स्वर में गायेंगे।
हम हिन्द के वासी हैं।
एक हमारा नारा है।
जो टकराएगा हमारे भारत से
उसका अवशेष नहीं बच पायेगा।
उसका अवशेष नहीं बच पायेगा।
जय हिन्द जय भारत
- मानवेन्द्र सुबोध झा
शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश
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