Desh Bhakti Kavita 2024 Poem : Watan Ke Vaaste Kavita in Hindi
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वतन के वास्ते कविता : Hindi Kavita Watan Ke Vaaste in Hindi
वतन के वास्ते
अक्सर आदमी ही आदमी को सताता है।
बस अपनी ओछी हरकतो को बताता है।
जाने क्यों मृत्यु का भव, नही रहा उसे अब
बिना कारण लोगों के ही, दिलो को 'दुखाता है
आंसमा को छूने की कोशिश, करता हैं दिन रात
जमीन से क्या नाता हमारा यह भी भूल जाता है
इस कदर दुनिया से नफरत हो गई आज उसे
स्वयं तो हंसता है लेकिन, औरो को रुलाता है।
ध्यान रखो जगत में सिर्फ, उसी का नाम होगा
वतन के वास्ते जो यहां, सब कुछ लुटाता है।
इस जिन्दगी में कभी, आ नही सकती खुशी
छल कपट से जो हमेशा, काला धन कमाता है।
सही अर्थो में सेवा तो भाई, वही कहलाती है।
समय पे प्यास को पानी, भूखे को खाना खिलाता है
सदगुरु की शरण में जाकर, संभल जायेगा यार तू
क्योंकि वही तो अज्ञान अंधकार, पल में मिटाता है।
तुम्हारे आंगन में भी मित्र, खुशी के फूल खिलेंगे
अपने आप को जानो 'यादव' बस यही समझाता है।
- रामचरण यादव 'याददाश्त'
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