Dohe of Rajendra Verma
Rajendra Verma Ke Dohe : राजेन्द्र वर्मा जी द्वारा स्वरचित दोहे आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है, पढ़िए और प्रतिक्रिया दीजिए।
राजेन्द्र वर्मा के दोहे हिन्दी में : Hindi Dohe
1
उनका ही टी.वी. हुआ, उनका ही अख़बार।
अब ख़बरें वे ही चलें, जो चाहें सरकार॥
2
ऐसा आया है समय, अचरच में हैं सार्थ।
तत्त्वज्ञान के बाद भी, मोहग्रस्त हैं पार्थ॥
3
ऐसा जंगलराज है, मची हुई है लूट।
शाह-लुटेरों में हुईं, नित संधियाँ अटूट॥
4
उद्योगों से बढ़ रही, गो कि देश की शान।
नदी-नदी दूषित हुई, पशु-पक्षी हैरान॥
5
औने-पौने बिक रही, निर्धन की श्रमशक्ति।
धनिक साधने में लगा, धन-देवी की भक्ति॥
6
औरों का हक़ छीनकर, जो भी बनें महान।
उनके ही घर में पलें, भाग्य और भगवान॥
7
कठिन तपस्या से मिला, हमको ऐसा राज।
कुछ को छप्पन भोग तो, कुछ को सड़ा अनाज॥
8
कहने को कहला रही, जनता की सरकार।
रीति-नीति में है मगर, जनता ही पर भार॥
9
कहने को जनतंत्र है, तंत्र मगर स्वच्छंद।
जनगणमन की भावना, संविधान में बंद॥
- राजेन्द्र वर्मा
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