स्वतंत्रता दिवस पर कविताएं 15 अगस्त 2024 : Swatantrata Diwas Par Kavita | Independence Day Poem In Hindi

Dr. Mulla Adam Ali
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Poem On Independence Day in Hindi : Desh Bhakti Kavita Hindi 2024

Poem On Independence Day in Hindi

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स्वतंत्रता दिवस पर डॉ. फहीम अहमद की देशभक्ति कविताएं 1. स्वतंत्रता दिवस पर कविता देश हुआ आजाद 2. स्वतंत्रता दिवस पर बाल कविता देश के लिए 3. पंद्रह अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर कविता सबको हो आज़ादी पढ़े और शेयर करें।

स्वतंत्रता दिवस पर कविताएं 15 अगस्त 2024 : Swatantrata Diwas Par Kavita | Independence Day Poem In Hindi

Swatantrata Diwas Par Kavita

Poem on Independence Day Desh Hua Azad : स्वतंत्रता दिवस पर देशभक्ति कविता देश हुआ आज़ाद

1. देश हुआ आजाद


जाने कितने बलिदानों से

देश हुआ आजाद !

जिन्दाबाद !!


हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई,

सबने मिलकर लड़ी लड़ाई,

तब हमने आजादी पाई,

जो भी हुए शहीद वतन पर

उनको कर लें याद !

जिंदाबाद !!


झंडा रहे हमारा ऊँचा,

देश-प्रेम हो कूँचा-कूचा,

हर पल चहके देश समूचा,

समरसता यह रहे सलामत।

देश रहे आबाद !

जिंदाबाद !!


सब मिल अपना देश सँवारें,

आओ इसका रूप निखारें,

तन-मन-धन सब इस पर वारें,

जीवन में हो खुशी हर तरफ,

रुक जाए उन्माद !

जिंदाबाद !!


15 अगस्त आजादी दिवस पर बाल कविता देश के लिये : Swatantrata Diwas Par Kavita 2024 Desh Ke Liye

Desh Ke Liye independence day poem

2. देश के लिये


काम करें कुछ ऐसे देश के लिये।

एक रहें, नेक रहें सब हों भले।

दूर करें द्वेष सभी मिलकर गले।

नफरत की आंधी कभी न चले।

दुःख का हर सूरज जल्दी ढले।

खुशियों के साए में जन-जन पले।

मस्त मगन पंछी सा देश यह जिये।

चन्दा की थाली से चांदनी झरे।

फूलों से सबका दामन भरे।

सूखे जो खेत वे फिर हमें हरे।

दहशत से कोई यहां न डरे।

रात दिन देश यह तरक्की करे।


Desh Bhakti Kavita in Hindi  Sabko Ho Azadi : Patriotism Poems in Hindi | देशभक्ति के विषय पर बेहतरीन कविता सबको हो आज़ादी

Desh Bhakti Kavita in Hindi  Sabko Ho Azadi

3. सबको हो आजादी


दुनिया के इस खुले गगन में

हमें परिंदों-सी आजादी।


वे बच्चे जो कैद घरों में

उनको भी बाँटें मुस्कानें।

करते हैं जो झाडू-पोंछा

आजादी की कीमत जानें।


फिरे तितलियों सी दुनिया में

बच्चों की पूरी आबादी।


हम मिलकर आवाज उठाएँ

रहे न अनपढ़ कोई बच्चा।

कलम, कापियाँ और किताबें

इनसे बढ़कर मित्र न सच्चा।


नहीं रहेगा अब कोई भी

बंदिश में, हम करें मुनादी।


मनचाही खुशियाँ हों हासिल

मिले काम की कीमत पूरी।

सब मिलकर मुस्कान बिखेरें

दूर हटे सबकी मजबूरी।


बाल न बाँका कर पाएगा

कोई, यदि हम हों फौलादी।


- डॉ० फहीम अहमद

असिस्टेंट प्रोफेसर हिन्दी, एमजीएम कॉलेज,

संभल, उत्तर प्रदेश

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