Poem On Guru Ki Mahima Par Kavita In Hindi : Manvendra Subodh Jha Poetry
Guru Mahima Poem in Hindi : कविता कोश में गुरु महिमा पर मानवेन्द्र सुबोध झा की सर्वश्रेष्ठ हिंदी कविता "गुरू महिमा", पढ़े और शेयर करें।
गुरु महिमा
जग में नहीं कोई गुरु समान
धरो सभी नित गुरु का ध्यान।
गुरु पथ द्रष्टा गुरु है छाँव,
गुरु पतवार गुरु ही नाँव।
ज्ञान का दीप है गुरु जलाते
सब अंधियारे नष्ट हो जाते।
गुरु कृपा जिस पर है होती
उसे ऐश्वर्य की कमी न होती।
नाम गुरु का जो नित जपते
उनके कष्ट प्रभु हर लेते।
गुरु की महिमा मंगलकारी,
मिटती जीवन की दुश्वारी।
प्रभु से मिलने का पथ बतलाते
जीवन की शंका सुलझाते।
गुरु बिना ज्ञान न मिलता,
जग में कोई मान न मिलता।
गुरु से कपट कभी मत करना,
उनके चरणों में नित झुकना।
गुरु ज्ञान का उदगम स्थल
करो नित उनका वंदन पूजन।
गुरु जीवन का सार बताते,
संकल्प सिद्ध करना सिखलाते।
गुरु चरित्र का दर्शन समझो,
उचित अनुचित का अंतर समझो।
गुरु ज्ञान का मंथन नित करते,
जीवन के मूल्यों को गढ़ते।
उनका रूप दिनकर सा होता,
जो अनंत तम को है हरता।
जो अनंत तम को है हरता।
- मानवेन्द्र सुबोध झा
शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश
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