Bal Kahani In Hindi - बाल कहानी हिंदी में हाथीदादा बुरे फंसे

Dr. Mulla Adam Ali
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Hathi Dada Bal Kahani In Hindi - Children's Story in Hindi Hathi Dada

Hindi Bal Kahani Hathi Dada

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हाथी दादा बुरे फंसे बाल कहानी : Hindi Bal Kahani Hathi Dada

हाथी दादा बुरे फंसे

एक दिन हाथीदादा अपनी लंबी सूंड और पंखे जैसे कान झुलाते चले जा रहे थे। साथ में उनके पोते टिंकू और मिंकू भी कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे। तभी अचानक हाथीदादा के दाहिने कान में तेज दर्द उठा और वह जोर से चिंघाड़ने लगे।

    टिंकू और मिंकू परेशान हो उठे। वे दौड़े-दौड़े डॉक्टर चूहामल के पास जा पहुंचे और उनको सारी बात बताई। उन्होंने झटपट अपना कोट पहना, आला गले में लटकाया और अपना बैग लेकर चल पड़े टिंकू और मिंकू के साथ।

हाथी दादा ने चीख-चीखकर सारा जंगल सिर पर उठा रखा था। चूहामल ने हाथी दादा से पूछा, "आपके कान में दर्द कब से है?"

हाथी दादा रोते हुए बोले, "जब से मैं सुबह खेत पर से गन्ने खाकर आया हूं, तभी से हल्का-हल्का दर्द था लेकिन अब दर्द अचानक काफी तेज हो गया है। "

चूहामल ने फिर पूछा, "आपको जुकाम तो नहीं था?"

हाथीदादा बोले, "नहीं डॉक्टर साहब, मुझे जुकाम नहीं था। आप मुझे जल्दी कोई दवा दीजिए वरना मैं चीख-चीखकर सबकी नाक में दम कर दूंगा।"

डॉक्टर चूहामल ने हाथीदादा को सांत्वना देते हुए कहा, "कृपया आप शांत रहें। आपके कान का दर्द ठीक हो जाएगा। मुझे आपके कान का चेकअप करना पड़ेगा। पर समस्या यह ज है कि मैं आपके कान तक पहुंचूंगा

कैसे? आप अगर बैठ जाएं तो शायद मैं आपके कान तक पहुंच सकूं?"

हाथीदादा बोले, "नहीं डॉक्टर साहब, मैं बैठ नहीं सकता, मेरे घुटनों में दर्द है।"

डॉक्टर चूहामल कुछ सोचते हुए बोले, "ठीक है, आप खड़े ही रहिये, सीढ़ी मंगवाता हूं।"

टिंकू झट से दौड़ कर सीढ़ी ले आया।चूहामल डरते-डरते सीढ़ी पर चढ़कर हाथीदादा के कान तक जा पहुंचे। उन्होंने अपने बैग से टॉर्च निकालकर हाथी दादा के कान में जलाई और बोले, "हाथीदादा आपके कान ...!'

इससे पहले कि वह आगे कुछ कह पाते, हाथीदादा ने समझा कि वह कान में कुछ गड़ा रहे हैं। इसलिए उन्होंने एक जोरदार झटका दिया। बेचारे चूहामल दूर जा गिरे। उनकी टॉर्च टूट गई। बैग दूर जा गिरा, आला भी अलग जा गिरा। सीढ़ी भी धड़ाम से गिर पड़ी, चूहामल की पीठ की हड्डी टूट गई थी। वह जोर-जोर से रोने-चिल्लाने लगे। हाथीदादा भी दर्द से कराह रहे थे।

टिंकू-मिंकू को लेने के देने पड़ गए थे। मिंकू दौड़ा-दौड़ा गया और डॉक्टर भालूराम को बुला लाया। इसके बाद उन्होंने डॉक्टर चूहामल को हाथों में उठा लिया और उन्हें उलट-पुलटकर देखने लगे।

चूहामल घबरा गए। उनका दिल धक धक करने लगा। उन्होंने समझा कि भालूराम अभी उसकी गर्दन दबा देंगे। उन्होंने आव देखा न ताव, झट से अपने तीखे और नुकीले दांत भालूराम के हाथ में गड़ा दिए।

भालूराम ने चीखकर उन्हें दूर फेंक दिया। डॉक्टर चूहामल नीचे जा गिरे और बेहोश हो गए। डॉक्टर भालूराम के हाथ से खून की धार बह चली। वह भी रोने-चिल्लाने लगे। दर्द के मारे चीख-चीखकर हाथीदादा का भी अब बुरा हाल था। कोई उनका दर्द नहीं समझ रहा था।

बेचारे टिंकू और मिंकू पहले से भी ज्यादा मुसीबत में फंस गए। वे फिर दौड़े-दौड़े गए और डॉक्टर गैंडासिंह को बुला लाए। गैंडासिंह ने भालूराम की मरहम पट्टी की। भालूराम को कुछ आराम मिला।

बेचारे डॉक्टर चूहामल अभी तक बेहोश पड़े थे। टिंकू अपनी सूंड में पानी भरकर लाया और पानी की बौछार चूहामल पर डाली तो उन्हें होश आया। डॉक्टर भालूराम और डॉक्टर गैंडासिंह ने मिलकर डॉक्टर चूहामल की पीठ पर प्लास्टर चढ़ाया और दवा की कुछ गोलियां भी खाने को दी। जब उनकी हालत कुछ सुधरी तो डॉक्टर गैंडासिंह ने उनसे पूछा, "हाथीदादा के कान में दर्द क्यों हो रहा है डॉक्टर चूहामल? यह आप ही बता सकते हैं क्योंकि आप कान के स्पेशलिस्ट हैं।"

डॉक्टर चूहामल गुस्से में बोले, "मैं हाथीदादा को यही तो बताने जा रहा था कि उन्होंने मुझे जोर से धक्का देकर दूर फेंक दिया और इतनी बड़ी मुसीबत हो गई।"

डॉक्टर भालूराम ने उत्सुकतावश पूछा, 'अब बताओ तो सही कि हाथीदादा के कान में दर्द क्यों हो रहा है? "

चूहामल ने रहस्य खोला, "दरअसल हाथी दादा के काम में चिंची चींटी घुस गई है, वही उन्हें काट रही है। और कोई बात नहीं है।"

डॉक्टर चूहामल की बात सुनकर सभी सन्न रह गए। एक नन्हीं सी चींटी ने इतने लोगों को हिलाकर रख दिया था। उसी की वजह से तीन-तीन डॉक्टर इकट्ठा हो गए थे और इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया था।

फौरन चिंची की मां को बुलाया गया और उन्हें सारी बात बताई गई। मां ने फौरन हाथीदादा के कान के पास पहुंचकर चिंची को पुकारा, "चिंची, ओ चिंची, तुम कहां हो? जल्दी बाहर निकलो।"

चिंची अपनी मां की आवाज सुनकर चुपचाप रेंगती हुई हाथीदादा के कान से बाहर आ गई और अपनी मां से लिपटकर रोने लगी। मां ने उसके आंसू पोंछे और बोली, "तू हाथी दादा के कान में कैसे घुस गई थी, पगली! वह बेचारे सुबह से बहुत परेशान हैं।?"

चिंची रोते हुए बोली, "हाथी दादा के मुंह पर लगा गन्ने का रस पीकर मैं भटककर उनके कान में पहुंच गई थी।"

हाथी दादा मुस्कराते हुए बोले, 'चलो यह अच्छा हुआ कि हुआ तुम मेरे कान में घुस गई थी। अगर कहीं मेरी सूंड में घुस जाती तो मेरी तो अर्थी ही उठ जाती।"

हाथी दादा की बात सुनकर सभी खिलखिला पड़े लेकिन चिंची शर्म से पानी-पानी हो गई।

डॉ. फहीम अहमद
असिस्टेंट प्रोफेसर,हिंदी विभाग,
महात्मा गांधी मेमोरियल पीजी कॉलेज,
सम्भल (उत्तर प्रदेश) 244302
drfaheem807@gmail.com

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