जल संरक्षण पर निबंध : Jal sanrakshan Per Nibandh | Save Water Essay in Hindi
Essay on Water conservation : जल संरक्षण पर निबंध
कई बार यह पढ़ने को मिला है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा यानि पानी की इतनी कमी हो जाएगी कि हम पानी के लिए लड़ेंगे। लेकिन किसी ने भी यह नहीं बताया कि लड़ाई किस रूप में होगी क्या दूसरे देश के लोग ड्रम लेकर आएँगे और पानी भरकर ले जाएँगे या किसी देश की नदियों को अपने देश में बहने के लिए विवश कर देंगे अथवा पाइप लाइन के द्वारा एक देश का पानी अपने देश में खींच लेंगे। कितना हास्यास्पद लगता है यह कहना कि विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। सारा विश्व पानी से घिरा हुआ है और हम हैं कि पानी की कमी के लिए लड़ रहे हैं। आये दिन सुनने को मिलता है कि दिल्ली में अथवा बम्बई में और महानगरों में पानी की आपूर्ति पूरी नहीं है। छोटे-छोटे शहरों में भी पानी की आपूर्ति पूरे 24 घंटे नहीं होती। कुछ निश्चित समय पानी आता है और फिर सारे दिन पानी गायब रहता है। यदि हम भरकर ना रक्खे तो पीने के पानी की भी दिक्कत पड़ जाती है।
भाषण दर भाषण हो रहे हैं और अखबारों में लेख छप रहे हैं कि धरती का जल स्तर घट रहा है। जल संरक्षण और जल संचय की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है। अखबारों में कागजी कार्यवाही और मंचों पर घोषणाएँ हो रही हैं, लेकिन कोई ठोस कार्यक्रम ना सरकार की ओर से चलाया गया है और ना ही जनता में किसी प्रकार जागृति आयी है। धरती का घटता जल स्तर चिन्ता का विषय है, लेकिन उससे भी अधिक चिन्ता का विषय है हमारा निष्क्रिय होना, यदि हम सक्रिय हों और समस्याओं की ओर ध्यान देते हुए कदम उठाएँ तो कोई समस्या ऐसी नहीं जिसका हल ना हो सके। जल संचय की बात करने वाले केवल जबानी जमा खर्च कर रहे हैं। यदि इस दिशा में ठोस कार्यक्रम आरम्भ किये जाएं तो जल समस्या हल हो सकती है।
प्रत्येक नगर, शहर, गाँव में आबादी के हिसाब से और नालियों से जल निकासी देखते हुए तालाब खुदवाये जाने चाहिए। प्रत्येक महानगर के चारों तरफ कम से कम बीस तालाब खुदवाये जाये और शहर की तमाम नालियाँ उन तालाबों से जोड़ दी जाए, इसी प्रकार छोटे शहरों में दस तालाब और गाँव में दो तालाब खुदवाये जाये। इन तालाबों में जो शहर भर का पानी आकर गिरेगा, वह खेतों में पानी देने के काम भी आ सकता है और जानवरों के प्रयोग में भी आ सकता है। फैक्ट्रियों से निकलने वाला पानी पहले प्रदूषण मुक्त कराया जाये और फिर तालाबों में डाला जाये। जो फैक्ट्री प्रदूषित जल को तालाबों में डाले उस पर कठोर दण्ड की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस कार्यक्रम से नदियों में गिरने वाला प्रदूषित जल नहीं गिरेगा और नदियाँ गंदी होने से बच जाएँगी। जिस प्रकार से गंगा, गोमती, यमुना में शहरभर की गंदगी के नाले आकर मिलते हैं और फैक्ट्रियों का प्रदूषित जल आकर मिलता है, उससे भी छुटकारा मिल जाएगा। नगरपालिकाओं को, ग्राम पंचायतों को, नगर परिषदों को कड़े निर्देश दिये जाने चाहिए और धन भी आबंटित किया जाना चाहिए ताकि वह तुरन्त तालाबों का निर्माण कर सके। जो आवंटित धन का प्रयोग तालाब बनाने में नहीं करते हैं, उनको भी दण्डित किया जाना चाहिए।
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सारी जिम्मेदारी सरकार पर छोड़ना भी मूर्खता है। बड़े-बड़े गाँवों में, शहरों में पानी की टंकियाँ बन गई हैं, जिनसे घरों में पानी जाता है, यह पानी बरबाद नहीं होना चाहिए। टंकी से आने वाली पानी की टोटियों बन्द रहनी चाहिए। परों में नहाते समय और नित्य कर्म करते समय टोटी को खुला रखना पानी के साथ अत्याचार करना जैसा है। इसी प्रकार प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि सड़कों के किनारे और सार्वजनिक स्थान पर लगाई गई पानी की टोटियाँ बन्द कर दें। यदि कोई टोटी खुली रहती है तो उसका पानी नाली में ही जाता है और व्यर्थ हो जाता है। यदि हम चाहते हैं कि जल हमारे काम आये तो हमें भी जल के काम आना चाहिए।
नदियों के किनारे साफ-सुथरे रहने चाहिए। नदियों के अंदर शौच करना, कुल्ला करना, प्रतिबंधित होना चाहिए और ऐसा करने वाले पर दण्ड की व्यवस्था भी होनी चाहिए। नदियों में कपड़े धोना वर्जित होना चाहिए। ये सब कार्य नदी के अंदर से जल भरकर बाहर किनारे पर किये जा सकते हैं, इससे जल का प्रदूषण रुकेगा और नदियों का जल साफ-सुथरा रहेगा। जो लोग नदियों को माँ मानते हैं, उनके लिए तो यह एक पाप कर्म के समान है। नदियों को तो साफ-सुथरा और प्रदूषण मुक्त रखना हमारी संस्कृति में सम्मिलित है। हमारे संस्कारों में नदियों को माँ का दर्जा दिया गया है। इसलिए उनमें थूकना, कपड़े धोना, शोच करना पाप के समान है।
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इतिहास बताता है कि सभी बड़े राजाओं ने नहरें खुदवाई, कुएँ बनवाए, तालाब खुदवाये व सड़कें बनवाई लेकिन हमारे देश में क्या पूरे विश्व में कुछ ऐसा माहौल बन गया है कि हम व्यर्थ के कामों पर पैसा खर्च कर रहे हैं। जैसे अंतरिक्ष में चन्द्रमा और मंगल पर यान भेजना और उसमें अरबों रुपये खर्च करना । व्यर्थ ही क्रिकेट जैसे खेल पर करोड़ों रुपये खर्च करना। यदि यह पैसा नगर और शहर के चारों तरफ तालाब खोदने में लगाया जाये नहरों का निर्माण किया जाए। जहाँ पानी की कमी है वहाँ कुएँ खोदे जाए। बुन्देलखण्ड में पानी की बहुत कमी है। किसी ने आज तक वहाँ ध्यान नहीं दिया और वहाँ पर नहरों और कुओं का निर्माण नहीं हुआ। यदि एक साल क्रिकेट के खेल पर पाबंदी लगा दी जाए तो उसमे खर्च होने वाले पैसे को रेगिस्तान में नहरें बनाने और पक्के तालाब बनाने में खर्च किया जाए तो हजारों मील लम्बा रेगिस्तान नखलिस्तान बन सकता है। लेकिन हमारी सोच को लकवा मार चुका है। आज कल आईपीएल आरंभ हो रहा परिणामस्वरूप सरकारी कार्यालयों में काम ठप हो गया है। लोग टेलीविजन से चिपककर बैठ गये हैं। दुर्घटनाएं बढ़ जाएँगी। यह आईपीएल वरदान नहीं शाप सिद्ध हो सकता है। कार्यालयों में काम नहीं होगा, लोक कुंठाग्रस्त हो जाएँगे, परिवारों में झगड़ा होगा, बच्चों की पढ़ाई ठप हो जाएगी और वह सब कुछ होगा जो नहीं होना चाहिए। लेकिन सत्ता की भूखी सरकार को केवल वोट दिखता है, कुर्सी दिखती है, देशहित कहीं नहीं दिखता।
बम्बई में हर साल बाढ़ आती है। आधा शहर पानी में डूब जाता है और साथ ही घरों में जल आपूर्ति ठप हो जाती है। यानि सारा शहर जल में और पीने का जल उपलब्ध नहीं । महासागर के किनारे बसे हुए शहर में पानी की कमी। जो वैज्ञानिक चन्द्रयान बनाने में लगे हुए हैं उनकी प्रतिभा का उपयोग यदि समुद्र के खारे जल को मीठे पानी में परिवर्तित करने में लगाया जाये तो देशहित हो सकता है। लेकिन देशहित की चिन्ता किसे है सब मौके का फायदा उठाकर नोबल पुरस्कार पाने में लगे हुए हैं। बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली जैसे नगर जो नदी के किनारे या समुद्र के किनारे बसे हुए हैं उनमें पानी की कमी होनी ही नहीं चाहिए। लेकिन हम बाढ़ के पैसे का रुख मोड़ देते हैं। वह बाढ़ रोकने के बजाय कुछ घरों में बाढ़ लाने का काम करता है। सूखे के लिए आबंटित धन देश के सूखाग्रस्त इलाकों में काम नहीं आता। बल्कि कुछ घरों का सूखा दूर करने में काम आता है।
राष्ट्रीय चरित्र समाप्त हो चुका है। व्यक्तिगत स्वार्थ हावी है। जब तक पुन: सरदार पटेल, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, लाल बहादुर शास्त्री अथवा किदवाई जैसे व्यक्ति पैदा नहीं होंगे, तब तक स्वार्थ से राष्ट्रहित हारता रहेगा और हम भिन्न-भिन्न मुद्दों पर स्वयं को मंच पर स्थापित करते रहेंगे।
जो बातें प्राकृत नहीं है हम उनकी ओर ध्यान देते हैं। लेकिन जो होना चाहिए उस ओर हमारा ध्यान नहीं होता। सरकारी ट्यूबवैल का पानी खेत की मेंढ़ तोड़कर बहता रहता है और पानी पूर्ति हो जाने के पश्चात पानी का आपूर्ति बन्द करने वाला व्यक्ति उपलब्ध नहीं होता। नहरों का पानी आवश्यकता से अधिक खेतों में घुस जाता है। जिसका मन चाहे नहरों को काटकर पानी अपने खेत में ले लेता है और वहाँ वाँछित से अधिक पानी बहता रहता है।
आवश्यकता है देशहित सोचने की। स्वार्थ से ऊपर उठने की सत्ता का लालच छोड़कर जनता की भलाई सोचने की।
- हितेश कुमार शर्मा
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