वाल्मीकि रामायण में प्रक्षेपित है उत्तर कांड : कपोल कथा है शंबूक वध और सीता निर्वासन

Dr. Mulla Adam Ali
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वाल्मीकि रामायण में प्रक्षेपित है उत्तर कांड

Valmiki Ramayana Uttarakanda

वाल्मीकि रामायण में प्रक्षेपित है उत्तर कांड

Kapol Katha : Shambook Vadh and Sita Nirvasan

कपोल कथा है शंबूक वध और सीता निर्वासन

- शिवचरण चौहान

वाल्मीकि रामायण में उत्तरकांड बाल्मीकि का लिखा हुआ नहीं है। यह कांड बाद में जोड़ा गया है ताकि राम और रामायण को बदनाम किया जा सके।कमियां गिनाई जा सकें। ऐसा ही कभी अंग्रेजों ने जर्मन विद्वान मैक्स मूलर के माध्यम से करवाया था। कहा गया था कि मैक्स मूलर संस्कृत और हिंदी का विद्वान है किंतु मैक्स मूलर ने भारतीय संस्कृत ग्रंथों / पुराणों की जो गलत व्याख्यायें प्रस्तुत की उसका बहुत गलत असर भारतीय समाज पर पड़ा। जिन लोगों ने वास्तविक ग्रंथ नहीं पढ़े उन्हें लगा कि मैक्समूलर ने जो लिखा है वही सही है। महाभारत केवल वेदव्यास की रचना नहीं है इसे तीन विद्वानों ने पूरा किया था। वेदव्यास की महाभारत का नाम तो जय था।

हिंदी में एक पुस्तक - गोसाई चरित्र मिलती है! इस पुस्तक के माध्यम से तुलसीदास के बारे में न जाने कितनी भ्रांतियां फैलाई गई हैं जो सत्य नहीं है।

बृज में एक कहावत है कुछ बनाइन सूरदास कुछ बनाइन भक्तन। ऐसा कई ग्रंथों के साथ हुआ है कि उनके शिष्यों ने बाद में अपने गुरु की रचना में कुछ ना कुछ जोड़ दिया है। और वितं डा वाद खडा किया है।

वरना बाल्मीकि शंबूक वध क्यों करवाएंगे और सीता को वनवास क्यों भेजेंगे! यह बहुत विचारणीय प्रश्न है। इस पर शोध होना चाहिए और लांछन दूर किए जाने चाहिए। जो राम शबरी के आश्रम में उसके हाथ से बेर खाते हैं वह दलित शंबुक का वध क्यों कराएंगे?

गोस्वामी तुलसीदास के समय तक यह बात जगजाहिर हो चुकी थी की उत्तरकांड बाल्मीकि की रचना नहीं है इसीलिए तुलसीदास ने सीता बनवास धोबी प्रसंग , शंबूक वध चित्रित नहीं किया है।

रामचरितमानस में राम स्पष्ट करते हैं

सुर महिसुर हरिजन अरु गाई।

हमरे कुल इन पर न सुराई ।।

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रामायण धारावाहिक में लव कुश कांड जोड़कर रामानंद सागर ने इन सब बातों को हवा दे दी जिन पर पूर्ण विश्वास कभी नहीं किया गया।

कुछ लोग तुलसीदास के निधन के बाद रामचरित मानस में लव-कुश कांड जोड़ देने का कुत्सित प्रयास करते रहे हैं।

जब तुलसीदास की रामचरितमानस में छेड़छाड़ करने का प्रयास किया गया तो बाल्मीकि रामायण में कुछ दुष्ट लोगों ने ऐसा नहीं किया होगा ऐसा कैसे कहा जा सकता है?

जब छापाखाना का प्रचार हो गया और पुस्तकें मुद्रित रूप में उपलब्ध हो गई तब महान ग्रंथों के साथ छेड़छाड़ बंद हुई है।

 अपने वनवास के समय राम दलित शबरी के जूठे बेर खा सकते हैं और निषाद जैसे दलित को अपना मित्र घोषित करके उसे बराबरी का दर्जा दे सकते हैं, वे शंबूक जैसे तपस्वी का उत्तरकांड में वध करते हैं। फिर जिस सीता वनवास को लेकर लोग राम के आदर्श चरित्र पर उंगली उठाते हैं, उसी मैथिली जानकी रावण की, वध के पश्चात अग्नि-परीक्षा होती है और जब सीता अग्नि की कसौटी पर खरी उतरती हैं तो राम स्वयं कहते हैं-

-विशुद्धा त्रिषु लोकेषु मैथिली जनकात्मजा न विहातुं मया शक्या कीर्तिरात्मकता यथा ।

अर्थात मैथिली जानकी तीनों लोकों में पवित्र हैं। जिस प्रकार मनस्वी कीर्ति का त्याग नहीं कर सकते, उसी प्रकार मैं अपनी भार्या का त्याग नहीं कर सकता। 

 राम इस प्रकार का वचन देकर सीता का त्याग कैसे कर सकते हैं यह विचारणीय है।

राम , लक्ष्मण को ऐसा ही करने के लिए कहते हैं

शापिता हि मया यूयं पादाभ्यां जीवितेन च ये मां वाक्यांतरे ब्रयुरनुनेतं कथंचन। (उत्तरकांड, 45 वा सर्ग, श्लोक सं.21)

 उत्तरकांड में गुप्तचर द्वारा राम के समक्ष प्रजाजनों के बीच चल रही चर्चा को जिस रूप में प्रस्तुत किया गया, ऐसी अभद्र भाषा कम से कम महर्षि वाल्मीकि की तो ही नहीं सकती-

कीदृशं हृदये तस्य सीता संभोगजं सुखम् अङ्कमारोप्यतुपुरा रावणेन बलाबद्धताम्।

 और यही कारण था कि मंगलाचरण में रामचरित मानस के परिचय में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा कि नाना पुराण निगमागम सम्मतं यत्... वही तुलसी राम के जीवन की इस अति महत्त्वपूर्ण घटना पर लेखनी उठाने का साहस नहीं जुटा सके क्योंकि उस समय तक लोग जान गए थे कि यह प्रसंग झूठा है।

वेदव्यास भी महाभारत में रामोपाख्यान तब लिखते हैं जब जयद्रथ द्वारा पांचाली का अपहरण किया जाता है। यद्यपि अर्जुन द्वारा पांचाली (द्रौपदी) मुक्त करा ली जातीं है किंतु बंदीवध करना नियम विरुद्ध है इस नियम से युधिष्ठिर विवश हो जाते हैं कि अर्जुन से जयद्रथ को मुक्ति दिलाई जाए, परंतु स्वयं द्रौपदी के इस भयंकर अपमान से शोकग्रस्त हो जाते हैं। इस समय मार्कंडेय उन्हें राम की कथा सुनाते हैं लेकिन उसमें भी कहीं सीता वनवास की चर्चा नहीं मिलती। तुलसीदास ने संपूर्ण रामायण का वर्णन कर डाला और यहां तक लिख दिया कि-

दुइ सुत सुंदर, सीता जाए।

लव कुश वेद पुरानन गाए।।

दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे।

भये शील गुन रूप घनेरे।।

पर तुलसी दास सीता वनवास का कही उल्लेख नहीं करते। 

 तुलसीदास के समय तक यह स्पष्ट हो गया था कि राम के जीवन की यह कथा मनगढ़ंत है। 

 शंबूक-वध व सीता-वनवास मिथ्या और कल्पनिक हैं। जो राम के चरित्र को बदनाम करने के लिए रचा गया।

उत्तर काण्ड को वाल्मीकि रामायण में षड्यंत्र करके बहुत बाद में जोड़ा गया है।ध्यान से देखने पर यह बात पूरी-पूरी साफ भी हो जाती है क्योंकि उत्तरकांड के चतुर्नवतितम् (94 वें) सर्ग के सत्ताइसवें श्लोक में उत्तरकांड यहां लिखा मिलता है 

- आदि प्रभृति वै राजन् पंच सर्ग शतानि च कांडानि षटकृतानीह सोत्तरणि महात्मना।

अर्थात् राजन! उन महात्मा ने आदि से लेकर अंत तक पांच सौ सर्ग तथा छह कांडों की रचना की है। इस श्लोक से ऐसा लगता है कि इसे महर्षि ने युद्धकांड के अंत में लिखा था किंतु मूल श्लोक चतुर्थ पद में थोड़ा फेर बदल करके उत्तरकांड के इस रचनाकार ने इसे उत्तरकांड में स्थापित कर दिया।

उत्तरकांड का यह रचनाकार बार-बार घोषित करता है कि उत्तरकांड भी वाल्मीकि की रचना है। यह घोषणा एक प्रकार की सफाई है क्योंकि उसे भलीभांति यह ज्ञात था कि उत्तरकांड विद्वानों के गले नहीं उतरेगा, इसलिए एक ही सर्ग में उसे यह सफाई कभी-कभी दो-दो बार देनी पड़ती है। जैसे कि उत्तरकांड का एक सौ ग्याहवां सर्ग और क्रमशः श्लोक सं.) और श्लोक सं. 11 में मिलता है

एतावदेतदाख्यानं सोत्तर ब्रह्मपूजितम्

रामायणमितिख्यातं मुख्यं वाल्मीकिनाकृतम्।

एतदाख्यानमायुष्यं सभविष्यं सहोत्तरम्

कृतवान् प्रचेतसः पुत्रस्तद ब्रह्माप्यन्वमन्यत्त।

अर्थात् महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित यह रामायण नामक श्रेष्ठ आख्यान उत्तरकांड सहित इतना ही है जिसका आदर ब्रह्मा जी ने किया है। ऐसा लिखने के प्रयोजन को एक साधारण पाठक भी समझ सकता है। जहां बालकांड से लेकर युद्धकांड तक कहीं भी किसी श्लोक द्वारा ऐसा नहीं कहा गया कि अमुक रचना महर्षि वाल्मीकि की ही है, वहीं उत्तरकांड के एक ही सर्ग में बार-बार ऐसा लिखने का कारण क्या हो सकता है। इसका उत्तर यह है कि उत्तरकांडवमूल वाल्मीकि रामायण का अंग नहीं है। इसके लिए एक और उदाहरण भी द्रष्टव्य है। युद्धकांड में जब रावण का एक पराक्रमी योद्धा महापार्श्व रावण को यह मंत्रणा देता है कि वह सीता को पाने के लिए क्यों न सीता से बलात्कार ही कर डाले, तब रावण उसे ऐसा करने में स्वयं को असमर्थ बताता है और एक कथा सुनाता है-

पूर्वकाल में रावण ने एक अप्सरा पुंजिकस्थला से बर्बरतापूर्वक बलात्कार किया था, जिससे कुपित होकर पितामह ब्रह्मा ने उसे शाप दिया था कि अब वह यदि भविष्य में किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध बलात्कार करेगा तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे-

अद्य प्रभृतियामन्यां बलान्नारी गमिष्यसि

तदाते शतधामूर्धा फलिष्यति न संशयः ।

यदायकामां कामार्तो धर्षयिष्यति योषितम्

मूर्धा तु सप्तधा तस्य शकली भविता तदा।

भाषाविभाषा(युद्धकांड, त्रयोदश सर्ग, श्लोक सं. 14)

इस अवसर पर रावण को वह कथा भी सुनानी चाहिए थी जो उत्तरकांड के छब्बीसवें सर्ग में उत्तरकांड के रचनाकार ने लिखा है जिसमें कुबेर पुत्र नलकूबर की प्रेमिका अप्सरा रंभा से रावण ने बलात्कार किया था और उसे नलकूबर ने शाप दिया था।  (उत्तरकांड, षडविंश सर्ग, श्लोक सं. 55) 

 रावण युद्धकांड के तेरहवें सर्ग के साथ इस कथा को महापार्श्व को नहीं सुनाता जो यह प्रमाणित करता है कि उत्तरकांड मूल रामायण का अंग नहीं है।

अनेक विद्वानों ने बाल्मीकि रामायण का गहन अध्ययन करने के बाद यह पाया है कि उत्तरकांड की भाषा और वाल्मीकि की मूल रामायण की भाषा में बहुत अधिक अंतर है।

तुलसीदास ने तो लिखा ही है

रामायण सत कोटि अपारा।

अनेक लोगों ने राम के चरित्र पर रामायण लिखी है और अपने अपने तरह से व्याख्या की है। तुलसी ने भी अपनी बुद्धि से राम का चरित्र गाया है।

बाल्मीकि रामायण का उत्तरकांड बाल्मीकि की रचना नहीं है यह प्रमाणित हो जाता है जो विद्वान गहराई से बाल्मीकि की रामायण का अध्ययन करता है। भाषा शैली की दृष्टि से उत्तर कांड रामायण यह बता देती है कि वह बाल्मीकि की भाषा नहीं है।

उत्तरकांड राम के चरित्र और वाल्मीकि को बदनाम करने का एक कुत्सित प्रयास भर है। सीता का निर्वासन और तपस्वी शंबूक का वध जबरदस्ती जोड़ा गया है।

शिवचरण चौहान
कानपुर
shivcharany2k@gmail.com

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