कुम्हार को समर्पित बाल कविता : कुम्हार की चाक पर कविता - Kumhar Ka Chak

Dr. Mulla Adam Ali
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Kumhar Ka Chak Bal Kavita : Children's Poem on Potter in Hindi 

Kumhar Ka Chak Bal Kavita

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बाल कविता कुम्हार का चाक : Bal Kavita Kumhar Ka Chak - Kids Poem on Potter

कुम्हार का चाक

बीच धुरी पर सरर-सरर-सर

चला रहा है चाक कुम्हार।


नाच रहा है लटूटू जैसा

चाक बड़ा अलबेला।

घूम रहा है साथ-साथ

गीली मिट्टी का ढेला।

कुम्हार दोनों हाथों से

मिट्टी को क्या-क्या आकार।


जादू भरी उँगलियाँ उसकी

हैं मशीन से बढ़कर।

कुल्हड़, मटका और सुराही,

रख देती हैं गढ़कर।

गमला, प्याला, गुल्लक देता

मिट्टी वाला राजकुमार।


चलता चाक हमें बतलाता

बढ़ते जाओ आगे।

पल-पल कदम बढ़ाने से ही

सोई किस्मत जागे।

जीत सकोगे मेहनत करके

दुनिया में इज्जत व प्यार।


बीच धुरी पर सरर-सरर-सर

चला रहा है चाक कुम्हार।


- डॉ. फहीम अहमद

असिस्टेंट प्रोफेसर हिन्दी, एमजीएम कॉलेज,

संभल, उत्तर प्रदेश

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